पत्रकारिता बनाम प्रोपेगेंडा: भारत, पश्चिम और मीडिया की समझ

भारत अगर बोले तो 'प्रोपगैंडा', पश्चिम बोले तो 'पत्रकारिता'?
भारत अगर बोले तो 'प्रोपगैंडा', पश्चिम बोले तो 'पत्रकारिता'?

जब पश्चिमी मीडिया भारत पर रिपोर्ट करता है, तो अक्सर सवाल उठते हैं — क्या ये पत्रकारिता है या एजेंडा?

भारत अगर बोले तो 'प्रोपगैंडा', पश्चिम बोले तो 'पत्रकारिता'?

नमस्कार! आप देख रहे हैं ‘CNN भाई-भतीजा’। यह एक ऐसा चैनल है जहाँ पत्रकारिता और जियोपॉलिटिक्स में फर्क उतना ही है जितना बर्गर और तंदूरी नान में। मतलब, दिखता तो फैंसी है, पर पेट नहीं भरता!

भाइयों, बहनों, और उन लोगों को खास नमस्कार जो “फ्री प्रेस” के नाम पर “फी-बेस्ड परसेप्शन” यानी पैसे लेकर राय बनाने का काम बेचते हैं।

जब इंडिया कुछ अच्छा करे… तो चुप्पी का कीर्तन!

जब भी इंडिया कुछ अच्छा करता है, तो इनकी तरफ से चुप्पी का कीर्तन शुरू हो जाता है! कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि कुछ विदेशी मीडिया हाउस इंडिया को देखने नहीं, बल्कि स्कैनिंग मशीन लेकर आते हैं। और वह मशीन भी ऐसी है जो संस्कृति नहीं, सिर्फ कैलेंडर स्कैन करती है – आजादी का दिन नहीं, बल्कि चुनाव की तारीखें देखती है। आजकल कौन सी विचारधारा ट्रेंडिंग में है, बस उसी के हिसाब से “फिट हेडलाइंस” बना दी जाती हैं।

मंगलयान से लेकर चीन तक: चुनिंदा रिपोर्टिंग

मान लीजिए, इंडिया मंगल पर पहुँच जाए और NASA भी तारीफ कर दे। लेकिन नहीं भाई, New York Times को तो पगड़ी और गाय ही याद आती है। उन्हें ऐसा लगता है जैसे ISRO ने नहीं, बल्कि दूधवालों और पुजारियों को रॉकेट में भेजा था।

दूसरी तरफ, चीन अपने मुसलमानों को कैंपों में बंद कर रहा है – वहाँ उनसे जबरन मजदूरी करवाई जा रही है, उन पर निगरानी रखी जा रही है। लेकिन BBC की रिपोर्टिंग देखकर ऐसा लगता है जैसे वहाँ सिर्फ WiFi स्लो हो गया हो। वे कहते हैं, “ब्रेकिंग न्यूज़: शिनजियांग में बफरिंग चल रही है…”

अब इसे पत्रकारिता कहेंगे? अरे भैया, यह तो “मेक-अप वाली पत्रकारिता” है। नाम तो निष्पक्ष पत्रकारिता का है, पर काम है अपनी पसंद की कहानी गढ़ना। और इंडिया? इंडिया तो इनके लिए एक रेडी-मेड पुतला बन गया है।

अपराध की रिपोर्टिंग: भारत बनाम पश्चिम

यहाँ, भारत में, अगर कोई अपराध होता है तो हेडलाइन बनती है – “Hindu Mob Attacks.” यानी “हिंदू भीड़ का हमला।”

पर वही घटना अगर UK में हो, तो हेडलाइन हो जाती है – “Community tensions rise.” यानी “सामुदायिक तनाव बढ़ गया।”

क्यों भैया, वहाँ की भीड़ क्या योगा करती है?

वैक्सीन पर भी भेदभाव

जब इंडिया वैक्सीन बनाता है तो सवाल उठते हैं – “Trust issues, safety doubts!” यानी “विश्वास की कमी, सुरक्षा पर संदेह!”

लेकिन जब Pfizer वैक्सीन बनाता है तो कहा जाता है – “Stock rises! Wall Street reacts!” यानी “शेयर चढ़ गए! वॉल स्ट्रीट में हलचल!”

मतलब, हमारी दवाई में शक और उनकी दवाई में शेयर मार्केट का चमत्कार।

यह फ्री प्रेस नहीं, बल्कि फिल्टर प्रेस है। यहाँ खबर छपती नहीं, खबर को छाना जाता है। तय किया जाता है कि किसका नाम लेना है, किसका दर्द छुपाना है, और किसकी गलती को “पश्चिमी संदर्भ” में समझाना है।

नैरेटिव की जंग: हेडलाइंस बनती हैं गोलियाँ

इंडिया अब युद्धभूमि नहीं है जहाँ बंदूकें चलती हैं। इसके बजाय, इंडिया अब एक नैरेटिव वॉर ज़ोन है, जहाँ हेडलाइंस गोलियों से भी तेज़ चलती हैं। और सबसे खतरनाक हथियार? वह है चुनिंदा गुस्सा और चुनिंदा चुप्पी।

तो आइए, इस सीरीज़ में हम गहराई से पड़ताल करेंगे कि पश्चिमी मीडिया ने पत्रकारिता की डिग्री छोड़कर परसेप्शन डिजाइनिंग, यानी राय बनाने के काम में PhD कैसे कर ली। हम यह भी देखेंगे कि क्यों इंडिया उनके लिए एक ग्लोबल पंचिंग बैग बन चुका है – और हम अब भी सोच रहे हैं कि यह सब उनकी संपादकीय नीति है।

“To be continued… Truth loading… but only in Indian servers.”

पश्चिमी मीडिया के दोहरे मापदंड और भारत की प्रतिक्रिया)

बस अब बहुत हुआ!

अब बस! बहुत हो गया। इंडिया कोई बैकअप कॉलोनी नहीं है, और आप लोग कोई नैतिक अधिकार के फ्रेंचाइजी मालिक नहीं हो।

जब इंडिया में कुछ गड़बड़ हो, तो फुल वॉल्यूम पर माइक ऑन हो जाता है!

अब ज़रा इनका पत्रकारिता का सुनहरा नियम सुनिए। अगर इंडिया में कुछ बुरा हो, तो उसे स्टेरॉयड पर चढ़ा दो, यानी बढ़ा-चढ़ाकर दिखाओ। और वही बुरा अगर पश्चिम में हो जाए, तो उसे लैवेंडर कैंडल के साथ “संदर्भ में समझाओ”। मतलब, हमारे यहाँ हिंसा हो तो वह ब्रेकिंग न्यूज़, और उनके यहाँ हो तो… ब्रीदिंग एक्सरसाइज!

दिल्ली दंगे बनाम UK के झड़पें: रिपोर्टिंग में फर्क

साल 2020 में दिल्ली में दंगे हुए। यह सच है, वे दुखद थे, गंभीर थे। पर पश्चिमी मीडिया ने हेडलाइन बनाई – “Hindu mobs attacking minorities. Police were complicit.” यानी “हिंदू भीड़ अल्पसंख्यकों पर हमला कर रही है। पुलिस की मिलीभगत थी।”

उसी समय UK में हिंदू-मुस्लिम झड़पें हुईं, तो BBC ने क्या लिखा? “Community tensions flared.” यानी “सामुदायिक तनाव भड़क गया।”

वाह! इसका मतलब, इंडिया में तुम खोजी पत्रकार बन जाते हो, और UK में अचानक HR मैनेजर। यह पक्षपात कोई दुर्घटना नहीं है, जनाब – यह तो संपादकीय कलाबाजी है। यहाँ प्रेस नहीं है, वहाँ प्रेस रिलीज है।

मध्य-पूर्व और यूक्रेन: सहयोगी बनाम दुश्मन

अब आइए मध्य-पूर्व चलते हैं। अगर इज़राइल गाजा पर मिसाइल छोड़ दे, इमारतें गिर जाएं, बच्चे मारे जाएं – तो हेडलाइन होती है: “Israel responds to Hamas.” यानी “इज़राइल ने हमास को जवाब दिया।” मतलब, जैसे कोई पड़ोसी घर जला दे और कहे – “मैं तो बस जवाब दे रहा था यार।”

लेकिन जब रूस यूक्रेन पर हमला करता है – तो वह “क्रूर आक्रमण” होता है। क्यों? क्योंकि रूस “दुश्मन” है, और इज़राइल “सहयोगी”। इसका मतलब, पत्रकारिता अब सिर्फ कलम से नहीं चलती – बल्कि डिप्लोमेटिक सर्कल से रिमोट कंट्रोल होती है।

भारत का स्वतंत्र रुख और पश्चिमी बौखलाहट

अब जब इंडिया निष्पक्ष रवैया अपनाता है, तो पश्चिम परेशान हो जाता है – “रूस की आलोचना करो, रूस की आलोचना करो!” जैसे अगर हमने नहीं किया तो… अगले दिन हमारा ब्रॉडबैंड कट जाएगा!

और तब हमारे विदेश मंत्री का वह प्रसिद्ध डायलॉग आता है: “Europe has to grow out of the mindset that Europe’s problems are the world’s problems, but the world’s problems are not Europe’s problems.”

इसका सरल अनुवाद है: “तुम्हारा जुकाम तो महामारी, हमारा भूकंप भी बैकग्राउंड नॉइज़!”

भारत की सफलता और NYT का कार्टून

अब ज़रा देखिए, जब इंडिया कामयाब होता है – जैसे पहली ही कोशिश में मंगल पर पहुँच जाता है – तो New York Times क्या करता है? वह एक कार्टून छापता है – जिसमें एक आदमी पगड़ी पहने, एक गाय के साथ स्पेस क्लब के बाहर खड़ा दस्तक दे रहा है! भाई, यह मार्स मिशन था या गौशाला की मीटिंग?

और कोई पूछे कि NASA के लॉन्च पर तो कभी ‘बर्गर के साथ झंडा’ वाला कार्टून नहीं छापा ना? क्यों? क्योंकि जब इंडिया जीतता है – तो इनका हाजमा खराब हो जाता है।

संस्कृति पर हमला और नैरेटिव का खेल

साड़ी से लेकर करी तक: सांस्कृतिक पूर्वाग्रह

और फिर, इन्हें हमारी संस्कृति से भी समस्या होने लगती है। हाल ही में एक नया लेख छपा – “Indian women wearing sarees are promoting Hindu nationalism.” यानी “साड़ी पहनने वाली भारतीय महिलाएं हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे रही हैं।” क्या? अब साड़ी भी RSS की यूनिफॉर्म हो गई? भाई, अगला क्या होगा? क्या हल्दी से राष्ट्रवाद फैलता है? या फिर बटर चिकन से ब्रेनवाशिंग होती है?

“Western media now serving facts… medium rare, with bias sauce on top.” (पश्चिमी मीडिया अब तथ्य परोस रहा है… अधपके, ऊपर से पक्षपात की चटनी के साथ।)

अब क्या बचा है? क्या कढ़ी और चावल भी अब दक्षिणपंथी एजेंडा बन गए हैं? नहीं नहीं… “बनेंगे” नहीं – “बन चुके हैं!”

पश्चिमी इंटरनेट के कमेंट सेक्शन में अगर किसी को नस्लभेदी मज़ाक करना हो तो कहते हैं – “You Indians smell like curry.” (“तुम भारतीयों से करी की गंध आती है।”) मतलब, क्या ही मौलिकता है!

भाई, हमने तो कभी किसी ब्रिटिश टूरिस्ट को देखकर नहीं कहा – “Excuse me, do you smell like soggy hot dog?” (“माफ़ करना, क्या तुमसे गीले हॉट डॉग जैसी बदबू आ रही है?”) नहीं कहा ना? क्योंकि हमारे अंदर अभी भी कुछ संस्कार बाकी हैं!

धारा 370 और राम मंदिर: कानूनी फैसलों पर भी सवाल

अब मुद्दे पर आते हैं। जब इंडिया ने धारा 370 हटाई – जिसे संसद ने पास किया, और सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया – तब भी हेडलाइन क्या छपी? “Violence in Kashmir after revocation of Article 370.” यानी “धारा 370 हटाने के बाद कश्मीर में हिंसा।” मतलब, आप कानूनी काम भी करो, फिर भी विलेन वही – इंडिया।

यह पत्रकारिता नहीं, यह “भू-राजनीतिक अंधकार” है – जहाँ हर भारतीय नीति को ऐसे पेश किया जाता है जैसे हम कोई जेम्स बॉन्ड के विलेन हों।

अब चलिए राम मंदिर मुद्दे पर। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया, ASI ने पुरातात्विक साक्ष्य दिए। यह केस 70 साल तक चला और शांतिपूर्वक हल हुआ। पर पश्चिमी मीडिया की हेडलाइन? “India shifts towards authoritarianism.” यानी “भारत तानाशाही की ओर बढ़ रहा है।” ओह रियली करेन?

मतलब, अगर किसी देश में लोग कानून से विवाद सुलझाएं, तो वह तानाशाही हो गया? इनके लिए लोकतंत्र तब तक ही लोकतंत्र है जब तक वह उनके नैरेटिव में फिट हो।

यूनिफॉर्म का नियम: भारत बनाम फ्रांस

अब यूनिफॉर्म नियम देखिए। जब कर्नाटक में स्कूल यूनिफॉर्म को लागू किया गया, तो हेडलाइंस आईं – “India curbs Muslim rights.” यानी “भारत मुस्लिम अधिकारों पर अंकुश लगा रहा है।”

लेकिन जब फ्रांस में हिजाब बैन होता है – तो कहा जाता है: “France stands for secularism.” यानी “फ्रांस धर्मनिरपेक्षता के लिए खड़ा है।”

भाई वाह! पाखंड को भी अब फ्रेंच कट मिल गया है – बड़े करीने से काटा हुआ, स्टाइलिश तरीके से पैक किया हुआ!

चीन के उइगर बनाम भारत में इंटरनेट बंदी

अब बारी है चीन की। जहाँ उइगर मुसलमानों को कैंपों में डाला गया है, उनसे जबरन मजदूरी करवाई जा रही है, उन पर निगरानी रखी जा रही है, और उनकी धार्मिक पहचान मिटाई जा रही है – पर हेडलाइंस कैसी आती हैं? “China faces scrutiny.” यानी “चीन जांच का सामना कर रहा है।” मतलब, ऐसा लग रहा है जैसे कोई सोमवार सुबह का HR रिव्यू चल रहा हो – नरसंहार नहीं।

लेकिन अगर इंडिया में इंटरनेट कुछ घंटों के लिए बंद हो जाए – तो हेडलाइंस बनती हैं: “India cracks down on dissent.” यानी “भारत असहमति पर नकेल कस रहा है।” अरे भाई! आप तो ऐसे दुखी हो जाते हो जैसे टिंडर ही बंद हो गया हो!

सऊदी अरब में सुधार बनाम भारत में महिला आरक्षण

अब आते हैं सऊदी अरब पर। 21वीं सदी में जब वहाँ महिलाओं को आखिरकार गाड़ी चलाने की इजाजत मिली, तो Washington Post ने लिखा: “Historic Reform.” यानी “ऐतिहासिक सुधार।” वाह! वाह! तालियाँ।

लेकिन जब इंडिया ने 2023 में महिला आरक्षण बिल पास किया – तो उनके मीडिया की प्रतिक्रिया: “…” चुप्पी इतनी गहरी थी कि एलेक्सा भी कंफ्यूज हो गई। क्यों? क्योंकि इंडिया से सिर्फ तेल नहीं – तर्क भी मिलते हैं।

“If hypocrisy had a passport, it would say – Press. And if bias had a language, it would be… selective silence.” (अगर पाखंड का कोई पासपोर्ट होता, तो उस पर लिखा होता – प्रेस। और अगर पक्षपात की कोई भाषा होती, तो वह होती… चुनिंदा चुप्पी।)

यह कोई गलती नहीं, एक डिज़ाइन है

वैश्विक नैरेटिव को नियंत्रित करने की रणनीति

तो, यह सब “गलती” नहीं है। यह कोई गलती से डिलीट हुआ नैरेटिव नहीं है। दरअसल, यह एक डिज़ाइन है। एक उचित, पेशेवर, भू-राजनीतिक मार्केटिंग रणनीति। और इंडिया इस ग्लोबल ब्रांड कैंपेन में विलेन बना हुआ है।

नियम नंबर 1 – वैश्विक कहानी पर नियंत्रण रखो।

अगर इंडिया दुनिया को साफ-सुथरा, आधुनिक और सक्षम दिखेगा, तो पश्चिम का श्रेष्ठता का भाव मिट्टी में मिल जाएगा। यदि इंडिया स्वच्छता, सद्भाव और सफलता में दिखेगा, तो निवेश इंडिया में आएंगे। और तब पश्चिम को अपनी निर्भरता खत्म होने का डर सताएगा। क्योंकि अगर इंडिया खुद फैसले लेगा, तो “आदेश” किसके चलेंगे?

नियम नंबर 2 – अपनी जनता का ध्यान भटकाओ।

जब न्यूयॉर्क में महंगाई बढ़े, जब लॉस एंजिल्स में बेघर होना और पुलिस की बर्बरता खबर बन जाए – तो क्या करें? आसान है – “Run India chaos coverage at full volume!” यानी “भारत में अराजकता की खबरें फुल वॉल्यूम पर चलाओ!”

ब्लैक लाइव्स मैटर? जलवायु विरोध? बंदूक हिंसा? सब पीछे डाल दो और हेडलाइन चलाओ: “Communal Clash in India.” यानी “भारत में सांप्रदायिक झड़प।”

आखिरकार, औपनिवेशिक आदतें इतनी आसानी से थोड़ी जाती हैं – वे तो क्रिकेट स्कोर की तरह हैं – सदियाँ लगती हैं।

नियम नंबर 3 – आक्रोश बेचो।

क्योंकि आक्रोश में व्यूज हैं, रेटिंग्स हैं, TRP है। “India in Chaos” (“अराजकता में भारत”) बिकता है, जबकि “India in Peace” (“शांति में भारत”) स्क्रॉल कर दिया जाता है।

सोचो, अगर इंडिया मंगल पर पहुँच जाए – तो पश्चिमी माइक अचानक म्यूट हो जाता है। अगर इंडिया वैक्सीन बना दे – तो सवाल आता है, “लेकिन स्टोरेज का क्या?” लेकिन अगर कहीं कोई हिंसा हो जाए – तो उनका माइक फुल डॉल्बी एटमॉस मोड में गूंजने लगता है।

यह कोई दुर्घटना नहीं है – यह है “Bias Management System v2.0” (पक्षपात प्रबंधन प्रणाली)। जहाँ संपादकीय नहीं, बल्कि भावनाओं से खेलने का काम हो रहा है।

औपनिवेशिक मानसिकता और आत्म-संदेह

अब सवाल यह है – क्या गलती सिर्फ उनकी है? नहीं। माफ कीजिए। कुछ गलती हमारी भी है। क्योंकि हम अब भी औपनिवेशिक मंजूरी के गुलाम हैं। हम उनके लिखे को ही अंतिम सत्य मान लेते हैं – क्यों? क्योंकि अंग्रेज़ ने लिखा है तो सही ही होगा!

हमारा अपना नैरेटिव कहाँ है? हमारे विद्वान, फिल्म निर्माता, प्रभावशाली लोग – कब उन्होंने इंडिया को गरीबी से परे दिखाया?

आज भी इंस्टाग्राम रील्स में अगर कोई विदेश में घूमेगा तो ऐसे मज़ाक करेगा – “Oh I’m Indian, I’m so confused yaar, we eat with hands hehehe.” (“ओह, मैं भारतीय हूँ, मैं बहुत भ्रमित हूँ यार, हम हाथों से खाते हैं हीहीही।”) मज़ाकिया है ना? मूल रूप से, तुम मज़ाक बनाओ – ताकि औपनिवेशिक मालिक हंस सकें।

हमारी सांस्कृतिक हीनभावना इतनी गहरी है कि हम चंद्रयान की सफलता से ज्यादा UK की शाही शादी को ट्रेंड करवा देते हैं।

“जब तक तुम खुद को कमतर समझते रहोगे, दुनिया तुम्हें कभी गंभीरता से नहीं लेगी।”

अब अपनी कहानी खुद कहने का वक्त

अब वक्त है अपनी कहानी वापस पाने का – माइक अनम्यूट करने का। क्योंकि अगर तुम अपनी कहानी खुद नहीं सुनाओगे, तो कोई और अपनी मर्ज़ी से तुम्हारा किरदार बना देगा – वह भी विलेन वाला।

Its Not Over Till I Say Its Over…………………………. (यह तब तक खत्म नहीं होगा जब तक मैं न कहूँ कि यह खत्म हो गया है।)

🎬 दूसरा सेगमेंट: “ब्रेकिंग न्यूज़: विदेशी मीडिया ने फिर बताया कि भारत में ऑक्सीजन की कमी से दिमाग नहीं चल रहा!”

परिचय: हम और हमारी प्रतिक्रियाएं

नमस्कार! स्वागत है आपका उस देश से, जो चाय भी खुद बनाता है, और मिसाइल भी खुद बनाता है। लेकिन, जब बात अपनी छवि की आती है तो हम विदेशी मीडिया से उधार लेते हैं!

आज की सबसे बड़ी ख़बर यह है कि New York Times ने फिर से बताया कि भारत में लोकतंत्र मर गया है, मानवाधिकार खत्म हो गए हैं, और लोग अब भी गोबर से इंटरनेट चला रहे हैं!

और हम? हम फिर से कह रहे हैं – ‘बिल्कुल ग़लत रिपोर्ट है!’… लेकिन सिर्फ ट्विटर पे। फिर निराशा में एक मीम बनाते हैं, और अगले दिन भूल जाते हैं। क्या बात है, देशभक्तों!

आत्म-नुकसान में हम भी माहिर

बताइए ज़रा… क्या कोई और देश है जो खुद अपनी मीम्स बनाकर खुद ही वायरल करता है? विदेशी मीडिया से ज़्यादा अपना ही नुकसान तो हम खुद कर लेते हैं! कभी-कभी तो लगता है CNN से पहले हम ही अपने देश की बुराई की ब्रेकिंग न्यूज़ दे देते हैं!

प्रतिक्रिया में विश्वगुरु, कार्रवाई में पीछे

लेकिन क्रेडिट देना पड़ेगा – हम प्रतिक्रिया देने में वर्ल्ड लीडर हैं। New York Times ने लिखा, ‘India is falling apart’ (भारत बिखर रहा है) – तो हमने तुरंत 10,000 ट्विटर पोस्ट कर दिए: ‘Shame on you!’ (शर्म करो!), ‘Propaganda!’ (प्रोपेगैंडा!), ‘You don’t know real India!’ (तुम असली भारत को नहीं जानते!) …और फिर अगले दिन, IPL मीम्स पर लौट आए।

अपना ग्लोबल मीडिया कहाँ है?

अब ज़रा सोचिए… क्या हमारे पास कोई ऐसा मीडिया है जो पूरी दुनिया को बता सके कि भारत क्या सोचता है? आप कहेंगे, ‘हमारे पास WhatsApp यूनिवर्सिटी है!’ …जहाँ हर आंटी जी अंतर्राष्ट्रीय मामलों का विश्लेषण करती हैं, और हर चाचा जी को लगता है कि वो अर्नब से बेहतर चिल्ला सकते हैं।

पालकी शर्मा जी Firstpost पर थोड़ा अंतर्राष्ट्रीय कंटेंट ला रही हैं – लेकिन पूरे देश के लिए सिर्फ एक पालकी थोड़ी न काफी है। हमें तो पूरी बारात चाहिए!

विचारों की लड़ाई को गंभीरता से लेना होगा

असल में समस्या यह है कि हम विचारों की लड़ाई को अभी भी ‘हल्का विषय’ मानते हैं। हम कहते हैं – ‘भाई, असली मुद्दे पर बात कर!’ या ‘मीडिया-वीडिया छोड़ो, बॉर्डर देखो!’ …लेकिन जनाब, बॉर्डर पर गोली चलती है, और मीडिया में शब्द चलते हैं – और कई बार शब्द गोलियों से ज़्यादा खतरनाक होते हैं।

निष्कर्ष: प्रतिक्रिया से आगे बढ़कर जवाब दें

तो, अगली बार जब कोई विदेशी मीडिया भारत को मध्ययुगीन देश बताए – तो सिर्फ प्रतिक्रिया देने से आगे बढ़िए। उन्हें जवाब दीजिए। उन आवाज़ों का समर्थन कीजिए जो भारत को वैश्विक मंच पर सही ढंग से प्रस्तुत कर रही हैं।

और हाँ… मीम्स ज़रूर बनाइए, पर दूसरों की नहीं – अपनी शर्तों पर।

“Let India be the narrator, not the news item.” (भारत को कहानीकार बनने दो, सिर्फ खबर नहीं।)

जय हिन्द।

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