Ek Saal Tak Ghayab Rahi Bus No. 375... Phir Wapas Aayi Ek Darawani Kahani Ke Saath!

Route 375

क्या आप उन अनकही, अनसुलझी कहानियों में यकीन रखते हैं जो हकीकत की सरहदों को धुंधला कर देती हैं? सुनिए एक ऐसी ही दास्तान, जो बीजिंग की एक सर्द रात से शुरू होकर आज भी रहस्य के साये में लिपटी हुई है…

अध्याय 1: एक अनदेखी शिकायत और गायब होती बस

आधी रात की दस्तक

उस रात, बीजिंग के एक पुलिस स्टेशन में एक घबराई हुई अधेड़ महिला और एक सहमा हुआ लड़का दाखिल हुए। उन्होंने एक अजीब दास्तान सुनाई – एक बस, रूट नंबर 375, जिसमें कुछ भी सामान्य नहीं था। उन्होंने बताया कि बस में तीन रहस्यमयी लोग सवार हुए थे, जो इंसान कम, कुछ और ज़्यादा लग रहे थे। शायद भूत? पुलिस वालों ने उनकी कहानी सुनी, लेकिन बातें कुछ ऐसी थीं जिन पर यकीन करना मुश्किल था। उन्हें लगा कि यह शायद उनका वहम है, और उन्हें चलता कर दिया गया। लेकिन जाने से पहले, एहतियातन उनके नाम, पते और नंबर दर्ज कर लिए गए थे।

जब हकीकत बनी ख़ौफ़नाक

अगले दिन, उसी रूट नंबर 375 बस के गायब होने की आधिकारिक रिपोर्ट पुलिस स्टेशन पहुंची। रिपोर्ट आते ही ड्यूटी पर मौजूद पुलिसकर्मियों को पिछली रात आई वह महिला और लड़का याद आ गए। अब उनके कान खड़े हुए। जो कहानी कल तक अविश्वसनीय लग रही थी, अब एक गायब हुई बस की हकीकत से जुड़ गई थी। फ़ौरन उन दोनों, महिला और लड़के, को दोबारा बुलाया गया। इस बार मामला गंभीर था, और उनसे पूरी संजीदगी से पूछताछ शुरू हुई।

अध्याय 2: उस रात की अनसुनी कहानी

बस का डरावना सन्नाटा और वो तीन अजनबी

महिला और लड़के ने वही कहानी दोहराई जो उन्होंने पहली बार सुनाई थी। कैसे बस में अजीब सा सन्नाटा पसरा था, गिनती के ही मुसाफिर थे। फिर सुनसान रास्ते में तीन लोग बस में चढ़े। उनके हाव-भाव, उनका पहनावा, सब कुछ अजीब था। महिला ने डरते हुए बताया, “मैंने उनके पैर नहीं देखे… वो इंसान नहीं लग रहे थे।” बस में और कोई यात्री नहीं था, सिवाय उस लड़के के। महिला को लगा कि न सिर्फ उसकी, बल्कि उस लड़के की जान भी खतरे में है।

जान बचाने का नाटक

अचानक, उस महिला ने एक तरकीब सोची। उसने लड़के पर चोरी का इल्जाम लगाकर बस में हंगामा खड़ा कर दिया। उसका मकसद सिर्फ ड्राइवर पर दबाव बनाना था ताकि वह बस रोक दे। काफी चीख-पुकार और हंगामे के बाद, ड्राइवर को मजबूरन अगले स्टॉप पर बस रोकनी पड़ी। मौका देखते ही वह महिला और लड़का फ़ौरन बस से उतर गए, अपनी जान बचाकर।

अध्याय 3: मीडिया में सनसनी और गहराता रहस्य

जब कहानी बनी सुर्खी

पुलिस जांच कर ही रही थी कि यह कहानी किसी तरह मीडिया में लीक हो गई। एक पूरी की पूरी बस का ड्राइवर और कंडक्टर समेत गायब हो जाना अपने आप में बड़ी खबर थी। 15 नवंबर की शाम तक, बीजिंग के स्थानीय अखबार ‘बीजिंग इवनिंग न्यूज़’ ने इस खबर को फ्रंट पेज पर छापा, जिसमें गायब हुई बस के साथ-साथ उस महिला और लड़के की रहस्यमयी कहानी भी शामिल थी।

टेलीविज़न पर गवाह

देखते ही देखते यह खबर आग की तरह फैल गई। बीजिंग के स्थानीय टीवी चैनलों पर उस महिला और लड़के के इंटरव्यू की बाढ़ आ गई। हर कोई उनकी ज़ुबानी उस खौफनाक रात की कहानी सुनना चाहता था। वे दोनों वही सब दोहरा रहे थे जो उन्होंने पुलिस को बताया था – खाली बस, तीन रहस्यमयी सवारियां, डर, और बस से उतरकर जान बचाना। कहानी कुछ यूं बन गई थी – एक बस चली, उसमें तीन अजीब लोग सवार हुए, एक चश्मदीद महिला ने उन्हें देखा, उसने अपनी और एक लड़के की जान बचाई, और उनके उतरने के कुछ स्टॉप बाद बस डिपो पहुंचने से पहले ही गायब हो गई।

अध्याय 4: नदी में मिली बस और लाशों का राज़

फ्रैग्रेंट हिल्स के पास बरामदगी

14 नवंबर की रात बस गायब हुई थी। दो दिन बीत गए, 16 नवंबर आ गया। तभी अचानक खबर मिली कि जिस बस स्टॉप पर महिला और लड़का उतरे थे, उससे करीब सौ किलोमीटर दूर, फ्रैग्रेंट हिल्स के पास एक नदी में, एक बस डूबी हुई मिली है। पुलिस टीम मौके पर पहुंची। क्रेन से बस को बाहर निकाला गया। यह वही रूट नंबर 375 बस थी।

लाशों का भयानक सच

बस के अंदर कुल पांच लाशें मिलीं – एक ड्राइवर की, एक महिला कंडक्टर की, और तीन अन्य लाशें। लेकिन लाशों को निकालते ही वहां मौजूद पुलिसकर्मी, डॉक्टर और अन्य लोग सिहर उठे। ड्राइवर और कंडक्टर की लाशें तो सामान्य हालत में थीं, मानो मौत हाल ही में हुई हो। लेकिन बाकी की तीन लाशें! वे बुरी तरह सड़ चुकी थीं, गल गई थीं, जैसे उनकी मौत हुए ज़माना बीत गया हो। यह कैसे मुमकिन था? बस सिर्फ दो दिन पहले गायब हुई थी। 14 नवंबर को गायब हुई बस 16 नवंबर को मिल गई।

मौसम और विज्ञान के परे

इतनी भीषण ठंड (नवंबर का महीना) और पानी के अंदर होने के बावजूद, दो दिनों में लाशें इस हद तक सड़ नहीं सकती थीं। अगर सड़नी ही थीं, तो पांचों लाशें क्यों नहीं सड़ीं? सिर्फ उन तीन रहस्यमयी यात्रियों की लाशें ही क्यों गलीं, जिनकी कहानी वह महिला और लड़का सुना रहे थे?

अध्याय 5: फोरेंसिक जांच और अनसुलझे सवाल

पोस्टमार्टम की पहेली

जब पोस्टमार्टम हुआ, तो फोरेंसिक विशेषज्ञ भी हैरान रह गए। उनका कहना था कि ये तीन लाशें हाल की मौतों की नहीं हैं, ये काफी पुरानी हैं। अब सवाल यह था कि क्या वो लोग लाश के रूप में ही बस में चढ़े थे? क्या वे वाकई इंसान नहीं थे, कोई भूत-प्रेत थे? आज के दौर में इन बातों पर यकीन करना मुश्किल है, लेकिन जो सबूत सामने थे, वे किसी और ही कहानी की तरफ इशारा कर रहे थे।

ईंधन टैंक का खूनी राज़

पुलिस ने बस डिपो से संपर्क किया। उन्होंने पूछा कि बस अपने रूट से 100 किलोमीटर दूर फ्रैग्रेंट हिल्स तक कैसे पहुंची? डिपो अधिकारियों ने कहा कि यह नामुमकिन है! बस में इतना डीज़ल या ईंधन था ही नहीं कि वह निर्धारित रूट पूरा करने के बाद 100 किलोमीटर और चल सके। मुश्किल से 20-30 किलोमीटर अतिरिक्त चलने लायक ईंधन होता है। तो बस वहां तक कैसे पहुंची? क्या ड्राइवर ने रास्ते में ईंधन भरवाया? लेकिन वह ऐसा क्यों करेगा, और कहां से? सरकारी बसों में ईंधन सिर्फ उनके अपने डिपो पर ही भरा जाता है। इस नई जानकारी ने जांच एजेंसियों को चौंका दिया। उन्होंने बस के फ्यूल टैंक को खोलकर जांच करने का फैसला किया।

जब फ्यूल टैंक खोला गया, तो उसमें डीज़ल का नामोनिशान नहीं था। पूरा टैंक खून से लबालब भरा हुआ था! अब खून से तो बस चल नहीं सकती। (हालांकि बताया गया कि बस गैस से भी चलती थी, पर आपातकाल के लिए फ्यूल टैंक में डीज़ल भी रखा जाता था)। यह खून किसका था और टैंक में कैसे आया?

सीसीटीवी कैमरों की अंधी गली

उस समय बीजिंग में कई जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगने शुरू हो गए थे। इत्तेफाक से, जिस जगह वह महिला और लड़का बस से उतरे थे, उससे पहले के कई सीसीटीवी फुटेज में वह बस गुजरती हुई कैद हुई थी। लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि उस स्टॉप के बाद, आगे के रास्ते पर लगे किसी भी सीसीटीवी कैमरे में वह बस फिर कभी नज़र नहीं आई, जबकि बाकी ट्रैफिक सामान्य रूप से रिकॉर्ड हुआ था। वह बस कहाँ गायब हो गई?

अध्याय 6: सालों बाद भी कायम रहस्य
अनुत्तरित प्रश्न

यह घटना 14 नवंबर, 1995 की है। आज इतने साल बीत जाने के बाद भी (मूल कहानी के अनुसार 26 साल), बीजिंग पुलिस इन सवालों के जवाब नहीं ढूंढ पाई है:

  • उस रात बस में सवार हुए वो तीन लोग कौन थे?
  • बस बिना पर्याप्त ईंधन के फ्रैग्रेंट हिल्स की नदी तक कैसे पहुंची?
  • फ्यूल टैंक में खून कहां से आया?
  • पांच में से तीन लाशें इतनी सड़ी-गली हालत में क्यों मिलीं, जबकि दो लाशें सामान्य थीं?
  • उस स्टॉप के बाद बस किसी भी सीसीटीवी कैमरे में क्यों कैद नहीं हुई?

खौफ की विरासत

इस घटना ने बीजिंग में सालों तक दहशत फैलाई। कई महीनों तक लोगों ने रात में उस रूट पर सफर करना बंद कर दिया था। रूट नंबर 375 का नाम सुनते ही लोग डर जाते थे और उस नंबर की बस में चढ़ने से कतराते थे। लोग कोशिश करते थे कि सूरज डूबने से पहले ही अपनी मंजिल तक पहुंच जाएं। धीरे-धीरे दहशत कम हुई, लेकिन सवाल और रहस्य आज भी वहीं के वहीं हैं। पुलिस रिकॉर्ड में यह मामला आज भी दर्ज है – बस की गुमशुदगी, महिला और लड़के के बयान, अखबारों में छपी खबरें, उनके इंटरव्यू, लाशों की बरामदगी, पोस्टमार्टम रिपोर्ट – सब कुछ एक कानूनी दस्तावेज़ के तौर पर मौजूद है।

बस जवाब नहीं है।

यह कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है – क्या हकीकत हमेशा वैसी ही होती है जैसी दिखाई देती है, या हमारी समझ से परे भी कुछ ताकतें मौजूद हैं? आखिर उस रात रूट 375 बस के साथ सच में क्या हुआ था?

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