पुलवामा हमला: साजिश, अंजाम और पर्दाफाश की कहानी

उस दिन वेलेंटाइन डे था, लेकिन भारत के लिए वह मातम का दिन बन गया। कैसे रची गई Pulwama Attack की साजिश, और कैसे एक छोटी सी भूल ने सब उजागर कर दिया? आइए जानते हैं उस हमले की पूरी कहानी, जिसने देश को झकझोर कर रख दिया था।
मसूद अज़हर की रिहाई और जैश–ए–मोहम्मद का उदय
साल 1999, 31 दिसंबर। कंधार विमान अपहरण कांड के कारण भारत को मसूद अज़हर को अफगानिस्तान में छोड़ना पड़ा। रिहाई के महज़ दो महीने बाद, मार्च 2000 में, मसूद अज़हर पाकिस्तान के बहावलपुर पहुँचा। वहाँ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने उसका भव्य स्वागत किया, एक रैली भी निकाली गई। इसी रैली में खड़े होकर मसूद अज़हर ने आधिकारिक तौर पर ‘जैश-ए-मोहम्मद’ (JeM) नाम के आतंकी संगठन को शुरू करने का ऐलान किया और कहा कि जैश के लोग ही कश्मीर को भारत से अलग करके दिखाएंगे।
कश्मीर में जैश के पैर और बुरहान वानी का दौर
संगठन बनने के बाद अगले पाँच सालों तक, जैश-ए-मोहम्मद ने कश्मीरी युवाओं की भर्ती की, उन्हें ISI से ट्रेनिंग दिलवाई और कई हमले किए, जिनमें संसद पर हुआ हमला भी शामिल था। आने वाले सालों में जैश ने कश्मीर में काम करने का अपना तरीका बदला, लेकिन उसकी प्राथमिकता हमेशा कश्मीरी युवाओं को भर्ती कर, ट्रेनिंग देकर भारत में हमले करवाना ही रही। वो यह दिखाना चाहते थे कि कश्मीरी खुद भारत के खिलाफ खड़े हैं और इसमें पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं है। धीरे-धीरे जैश-ए-मोहम्मद ने कश्मीर में अपनी जड़ें जमा लीं।
साल 2015 आते-आते एक नई चीज़ हुई। पहले के आतंकी कमांडर छिपकर रहते थे, लेकिन इसी समय बुरहान वानी नाम का एक आतंकी सामने आया, जो छिपने के बजाय सोशल मीडिया पर खुलेआम अपनी तस्वीरें पोस्ट करता था, भारतीय सेना को चुनौती देता था और हमले से पहले ऐलान कर देता था। इस नए तरीके ने उसे कश्मीर में बहुत जल्दी मशहूर कर दिया और उसने कई कश्मीरी युवाओं को आतंकवाद की तरफ धकेला।
बुरहान की मौत और मसूद अज़हर का बदला
जैश-ए-मोहम्मद को बुरहान वानी का यह तरीका बहुत पसंद आया। लेकिन इससे पहले कि जैश कुछ सोच पाता, 8 जुलाई 2016 को भारतीय सेना ने बुरहान वानी को मार गिराया। इस घटना से कश्मीर में माहौल बहुत बिगड़ गया। मसूद अज़हर को लगा कि यही कश्मीर में और हमले करने का सबसे सही समय है।
पाकिस्तान में बैठे मसूद अज़हर के पाँच सबसे भरोसेमंद लोग थे: उमर फारुख, उस्मान हैदर, तलहा रशीद (तलहा मसूद नहीं, जैसा मूल पाठ में लिखा गया हो सकता है, अक्सर उसे तलहा रशीद कहा जाता है), इस्माइल अल्वी (जिसे लंबू भाई भी कहते हैं) और अब्दुल रशीद गाजी। इनमें से तलहा, उस्मान और उमर तो मसूद अज़हर के रिश्तेदार (भतीजे) ही थे।
बुरहान वानी की मौत के बाद, मसूद अज़हर ने 2017 की शुरुआत में अपने भतीजे तलहा रशीद को पाकिस्तान से कश्मीर भेजा और उसे दक्षिण कश्मीर का कमांडर बना दिया। तलहा को काम सौंपा गया कि वह ज्यादा से ज्यादा कश्मीरी युवाओं को जैश में शामिल करवाए और ओवर ग्राउंड वर्कर (OGW) नेटवर्क को मजबूत करे। OGW वे स्थानीय लोग होते थे जो सीधे हथियार नहीं उठाते थे, लेकिन आतंकियों को छिपने की जगह देना, भारतीय सेना की लोकेशन बताना, सामान पहुँचाना और सेफ हाउस का इंतजाम करना जैसे काम करते थे। जैश इस नेटवर्क को और बढ़ाना चाहता था, क्योंकि मजबूत OGW नेटवर्क हमले करना आसान बना देता था। जैश अक्सर स्थानीय ड्राइवर, दुकानदार जैसे लोगों को OGW बनाता था, क्योंकि इन पर शक कम होता था।
आदिल डार: एक छात्र से आत्मघाती हमलावर तक
इसी साल, 2017 में, कहानी में एंट्री होती है आदिल अहमद डार की, जो पुलवामा हमले की मुख्य कड़ी बना। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले के काकापोरा इलाके के गुंडीबाग गाँव का रहने वाला आदिल, गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल में बारहवीं कक्षा में पढ़ता था। तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि यह लड़का आगे चलकर इतना बड़ा हमला करेगा। इसी स्कूल में आदिल के दो दोस्त भी थे – तौसीफ और वसीम। तौसीफ पूरी तरह से ब्रेनवॉश था; उसके बड़े भाई ने भी आतंकवाद का रास्ता चुना था और कुछ समय पहले ही भारतीय सेना की गोली से मारा गया था। तौसीफ ने आदिल और वसीम को यह समझाने में अहम भूमिका निभाई कि भारतीय सेना गलत कर रही है।
ये तीनों स्कूल में पढ़ रहे थे। एक दिन स्कूल से लौटते समय, आदिल को गलती से पत्थरबाजी के शक में भारतीय सेना पकड़ कर ले गई। कुछ दिन रखने के बाद उसे छोड़ दिया गया। दरअसल, बुरहान वानी के मारे जाने के बाद आदिल और उसके दोस्त रोज प्रदर्शन करने जाते थे और पत्थरबाजी करते थे। इस चक्कर में उन्हें कई बार पकड़ा गया, जेल में रखा गया और फिर छोड़ दिया गया। एक बार तो आदिल के पैर में गोली भी लग गई थी, जिस वजह से उसे कई महीने बिस्तर पर रहना पड़ा और उसका स्कूल छूट गया।
ठीक होने के बाद आदिल ने दो काम किए – पहला, स्कूल पूरी तरह छोड़ दिया और दूसरा, वह ‘अंसार गजवत-उल-हिंद’ नाम के एक अन्य आतंकी संगठन के संपर्क में आकर उसमें शामिल हो गया। घर चलाने के लिए उसने अपने पड़ोसी की लकड़ी काटने की मिल में काम करना शुरू कर दिया, जहाँ लकड़ी के बक्से बनते थे। अंसार गजवत-उल-हिंद के लोगों के संपर्क में आने के बाद उसका दिमाग पूरी तरह बदल चुका था।
कुछ दिन मिल में काम करने के दौरान उसकी मुलाकात मुदासिर खान नाम के एक इलेक्ट्रीशियन से हुई। मुदासिर असल में जैश-ए-मोहम्मद का OGW था। उसने आदिल को जैश में शामिल होने के लिए मना लिया, क्योंकि उस समय अंसार गजवत-उल-हिंद के पास हथियारों और संसाधनों की कमी थी। जिस दिन आदिल जैश में शामिल हुआ, उसी दिन मुदासिर ने जैश के कमांडरों को बता दिया कि आदिल उनके मिशन के लिए बहुत काम का लड़का है और उसके अंदर भारतीय सेना के लिए बहुत गुस्सा भरा है।
भतीजों की घुसपैठ और हमले की कमान
इधर ये सब चल रहा था, और उधर 6 नवंबर 2017 को भारतीय सेना ने तलहा रशीद का एनकाउंटर कर दिया। तलहा मसूद अज़हर का भतीजा था, और उसकी मौत से मसूद अज़हर को और ज़्यादा गुस्सा आ गया। उसने पाकिस्तान में रैलियां निकालीं और खुलेआम बदला लेने की धमकी दी। तलहा का बदला लेने के लिए मसूद ने अपने बाकी भरोसेमंद लोगों में से उस्मान और उमर को बुलाया। ये दोनों कंधार अपहरण कांड के मास्टरमाइंड इब्राहिम अतहर के बेटे और मसूद के भतीजे थे। मसूद ने कहा कि अब तलहा के बाद तुम दोनों को कश्मीर जाकर लड़ाई को आगे बढ़ाना है और बदला लेना है।
तय हुआ कि पहले उस्मान बॉर्डर पार करेगा, फिर उमर। वे अक्सर अमावस की रात को ही बॉर्डर पार करते थे। 11 जनवरी 2018 को, उस्मान हीरानगर सेक्टर से LOC पार करके कश्मीर पहुँच गया और दक्षिण कश्मीर का कमांडर बन गया। उस्मान एक बेहतरीन स्नाइपर था; वह रात में मोबाइल की लाइट के आधार पर भी निशाना लगा सकता था। उसके कश्मीर पहुँचते ही भारतीय सेना ने गौर किया कि जो अधिकारी रात में मोबाइल इस्तेमाल कर रहे थे, उन्हीं पर गोलियां चल रही थीं।
उस्मान के आने के तीन महीने बाद, 13 अप्रैल 2018 को, उमर भी कश्मीर भेज दिया गया। उमर – यह नाम याद रखिएगा, यही पुलवामा हमले का मुख्य मास्टरमाइंड था। उस समय आतंकी गहरे रंग के कपड़े पहनकर बॉर्डर पार करते थे, लेकिन उमर एक ग्रे रंग की केल्विन क्लेन टी-शर्ट पहनकर, पाकिस्तान के सुकमाल की तरफ से एक सुरंग का इस्तेमाल करके कश्मीर पहुँच गया।
आप सोच रहे होंगे कि ये लोग इतनी आसानी से LOC पार कैसे कर रहे थे? दरअसल, LOC का इलाका बहुत जटिल है। जैश ने LOC के नीचे कई सुरंगें बना रखी थीं – करीब 3 मीटर चौड़ी और 25 मीटर गहरी। इन्हें बीच-बीच में सीमेंट से पक्का किया जाता था ताकि ये धंसे नहीं, और एंट्री-एग्जिट पॉइंट पर पेड़-पौधे लगा दिए जाते थे, जिससे इन्हें पकड़ना बहुत मुश्किल था। कठुआ और सांबा जिले के बॉर्डर इलाके में जैश ने ऐसी कई सुरंगें बना दी थीं। इन्हीं सुरंगों का इस्तेमाल करके उमर कश्मीर के बनोला पहुँचा।
वहाँ अशोक अहमद नैनगुरु नाम का एक OGW पहले से ही आटे की बोरियों से भरा एक ट्रक लेकर उसका इंतज़ार कर रहा था, ताकि उमर बोरियों के बीच छिप सके। इस तरह उमर और उस्मान, दोनों कश्मीर पहुँच गए।
उस समय कश्मीर में अब्बास राथर नाम का एक OGW था, जिसका आतंकियों के लिए सेफ हाउस अरेंज करने का बहुत बड़ा नेटवर्क था। POK से आने वाले आतंकियों को रुकवाने और समय-समय पर उनके सेफ हाउस बदलवाने का सारा इंतजाम अब्बास ही देखता था। उस्मान और उमर का इंतजाम भी उसी ने करवाया। उमर कुछ दिनों तक दो-तीन सेफ हाउस बदलने के बाद शाकिर बशीर नाम के एक कश्मीरी के घर को अपना स्थायी ठिकाना बना लेता है। यहीं पर हमले की पूरी प्लानिंग हुई और सामान इकट्ठा किया गया।
सेफ हाउस बदलते समय एक बार उमर, पीर तारिक अहमद नाम के एक व्यक्ति के घर रुका। नियम के हिसाब से सेफ हाउस जल्दी-जल्दी बदलने होते हैं, लेकिन उमर को पीर तारिक की बेटी इंशा से प्यार हो गया और वह वहाँ ज्यादा रुकने लगा। उमर ने इंशा को एक रेडमी नोट 5 प्रो मोबाइल भी दिया था। थोड़े ही समय बाद, इंशा को भी इन लोगों ने अपने मिशन में शामिल कर लिया।
पुलवामा हमले की तैयारी: बारूद, गाड़ी और रेकी
दूसरी तरफ, आदिल डार भी जैश में शामिल हो चुका था। एक बड़े हमले के लिए जैश ने आदिल और उसके साथ 70 और कश्मीरी युवकों को ट्रेनिंग के लिए POK बुलाया। इन सबकी ट्रेनिंग बालाकोट और बहावलपुर में हुई। 19 मार्च 2018 को आदिल और उसके दोस्त अपने-अपने घरों से गायब हो गए। आदिल के घरवाले उसे ढूंढते रहे और फिर काकापोरा पुलिस स्टेशन में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी। अप्रैल के पहले हफ्ते में सोशल मीडिया पर आदिल की AK-47 के साथ तस्वीर सामने आई, जिसमें उसने जैश में शामिल होने का ऐलान किया और अपना कोडनेम ‘वकास कमांडो ऑफ़ गुंडीबाग’ बताया। भारतीय सेना ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और उसे आतंकियों की ‘C’ कैटेगरी में डाल दिया।
POK में आदिल और उसके साथियों की विशेष ट्रेनिंग शुरू हुई। उनका ट्रेनर था अब्दुल रशीद गाजी। ट्रेनिंग में दो कैटेगरी होती थीं – ‘इस्तिशादी’ (आत्मघाती हमलावर) और ‘इंगीमासी’ (लड़ाकू)। आदिल ने इस्तिशादी कैटेगरी चुनी। उसे IED बनाना, विस्फोटक से लदी गाड़ी चलाना सिखाया गया। अब्दुल रशीद गाजी को आदिल सबसे ज़्यादा पसंद आया क्योंकि उसके अंदर भारतीय सेना के लिए नफरत ज़्यादा थी, वह जान देने को तैयार था और जैश जहाँ हमला करना चाहता था, आदिल वहीं का स्थानीय निवासी था, जिसे इलाके का चप्पा-चप्पा पता था। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद आदिल भी जम्मू-सांबा सेक्टर के बॉर्डर से वापस कश्मीर आ गया।
अब उस्मान, उमर और आदिल, तीनों कश्मीर में थे और हमले की तैयारी शुरू हो गई। NIA की चार्जशीट के मुताबिक, बॉर्डर पार से आने वाले आतंकी अपने साथ बैग में थोड़ा-थोड़ा मिलिट्री ग्रेड RDX लेकर आए थे, जो खुले बाजार में नहीं मिलता। करीब 20-25 किलो RDX ऐसे ही लाया गया था, जिसे कश्मीर में अलग-अलग जगहों पर OGW संभाल रहे थे।
30 अक्टूबर 2018 को, भारतीय सेना ने स्नाइपर उस्मान को मार गिराया। यह एक बड़ा टर्निंग पॉइंट था, जिसने पुलवामा हमले की प्लानिंग को और तेज़ कर दिया। मसूद अज़हर के दो खास लोग – तलहा और उस्मान – मारे जा चुके थे। मसूद गुस्से में था और उसने उमर को 3 मिनट 49 सेकंड का एक रिकॉर्डेड वॉयस नोट भेजा, जिसमें कहा कि अब इंतज़ार नहीं करना है, जल्द से जल्द बदला लेना होगा। इसी वॉयस नोट में इस ऑपरेशन को ‘किसास ऑपरेशन’ (बदले का ऑपरेशन) नाम दिया गया।
इसके बाद मसूद अज़हर ने अपने करीबी बॉडीगार्ड मोहम्मद इस्माइल उर्फ लंबू भाई को भी कश्मीर भेज दिया। वह भी 11-12 किलो RDX लेकर कश्मीर पहुँचा। मसूद अज़हर ने एक VBIED (Vehicle-Borne Improvised Explosive Device) यानी गाड़ी से होने वाले फिदायीन हमले की मंजूरी ले ली। कश्मीर में छोटे-मोटे हमले करने के लिए आतंकियों को मंजूरी की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन बड़े सैन्य काफिले पर हमले के लिए जैश लीडरशिप और पाकिस्तानी ISI की मंजूरी ज़रूरी होती है।
मंजूरी मिलते ही ये लोग VBIED हमले की प्लानिंग में जुट गए। आदिल डार को इस हमले को अंजाम देने के लिए चुना गया। हमले के लिए पैसों की ज़रूरत थी, जो मसूद अज़हर ने दो बैंक अकाउंट (एलाइट बैंक और मीज़ान बैंक) से दस लाख रुपए जमा करके हवाला के ज़रिए उमर तक पहुँचाए।
प्लान के मुताबिक, आदिल कार का इस्तेमाल करके सेना के काफिले पर हमला करेगा। इसके लिए बम बनाने का सामान इकट्ठा करना शुरू किया गया। POK से लाया गया RDX एक जगह जमा किया गया। साथ ही, पुलवामा, कुन्नमो, अवंतीपोरा, लेथपोरा की सीमेंट खदानों से, जहाँ जिलेटिन स्टिक्स (एक तरह का कमर्शियल विस्फोटक) इस्तेमाल होती थीं, स्थानीय OGW की मदद से 500 जिलेटिन स्टिक्स (करीब 50-60 किलो) स्मगल करके इकट्ठी की गईं। इन पर ‘सुपर पावर 90’ लिखा था। इसके अलावा 30 किलो सिल्वर एल्युमिनियम पाउडर, एक वजन मशीन, 80 किलो अमोनियम नाइट्रेट भी जमा किया गया। काकापोरा बाजार से एक नीले रंग का प्लास्टिक ड्रम खरीदा गया और अमेज़न के ज़रिए अमोनियम पाउडर मंगवाया गया।
जब सारा सामान आ गया, तो तय करना था कि बम कहाँ असेंबल होगा। उमर ज्यादातर शाकिर बशीर के घर पर रहता था, इसलिए बम वहीं बनाने का फैसला हुआ। सारा सामान शाकिर के घर की छत पर बने स्टोर रूम में इकट्ठा किया गया। शाकिर की हाईवे पर एक फर्नीचर की दुकान भी थी। उमर ने शाकिर को दुकान पर बैठकर हाईवे से गुजरने वाले सेना के काफिलों की हर गतिविधि नोट करने का काम सौंपा। शाकिर रोज़ हर छोटी-बड़ी बात नोट करता, आसपास के इलाके की वीडियो बनाता और उमर को भेजता। उसे जल्दी ही सब याद हो गया – नीले ट्रक में सामान होता है, अफसर सफ़ेद जिप्सी में चलते हैं, सैनिक नीली बसों में सफर करते हैं, काफिले से पहले रोड ओपनिंग पार्टी (ROP) आती है, वगैरह।
27 जनवरी 2019 को शाकिर ने NH-44 हाईवे की एक लोकेशन की वीडियो उमर को भेजी। उमर को यह लोकेशन पसंद आई क्योंकि आसपास खाली सर्विस लेन थी, बैरिकेडिंग कम थी, और किसी अनजान गाड़ी को हाईवे पर लाना आसान था। यह लोकेशन हमले के लिए फाइनल कर दी गई।
खुफिया चेतावनियाँ और अनदेखे खतरे
जिस समय यह सब चल रहा था, भारतीय खुफिया एजेंसियों को लगातार इनपुट मिल रहे थे। 2 जनवरी 2019 को पहला इनपुट आया कि जैश-ए-मोहम्मद दक्षिण कश्मीर में कोई ‘किसास मिशन’ पर काम कर रहा है। यह जानकारी जम्मू-कश्मीर के DGP और IGP को भेजी गई। अगले दिन ‘इम्पेंडिंग डेंजर’ नाम से एक रिपोर्ट बनी, जिसमें CRPF कैंप पर बड़े हमले की आशंका जताई गई। फिर 4 दिन बाद लोकल युवाओं द्वारा IED हमले का इनपुट आया। 18 जनवरी को 20 आतंकियों के अवंतीपोरा पहुँचने और हमला करने का इनपुट मिला। 21 जनवरी, 24 जनवरी, और यहाँ तक कि हमले से एक दिन पहले भी इनपुट आया। कुल मिलाकर 11 बार खुफिया रिपोर्ट आईं कि कोई बड़ा हमला होने वाला है, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई।
हमले के लिए एक कार भी चाहिए थी। जनवरी के आखिरी हफ्ते में उमर ने सज्जाद भट्ट नाम के एक OGW को एक ऐसी कार खरीदने का काम दिया जिसमें दो बड़े कंटेनर फिट हो सकें। सज्जाद ने 1 लाख 85 हजार रुपए में एक 2011 मॉडल की पर्ल ब्लू ईको कार (नंबर JK03C1886) खरीदी और तुरंत उसका चेसिस नंबर मिटाकर शाकिर के घर लाकर खड़ी कर दी।
आदिल डार का आखिरी वीडियो
फरवरी की शुरुआत में उमर को अपने एक सूत्र से पता चला कि 6 फरवरी 2019 को CRPF का एक बड़ा काफिला आने वाला है। यह सुनते ही बम बनाने का काम तेज़ कर दिया गया। उमर ने अफगानिस्तान में VBIED बनाने की ट्रेनिंग ली थी, इसलिए उसी ने बम असेंबल किया। एक नीले और एक ऑरेंज कंटेनर में परत दर परत अमोनियम नाइट्रेट, जिलेटिन स्टिक्स (जिन्हें अमोनियम पाउडर से कोट किया गया था) भरी गईं। कुल 200 किलो विस्फोटक तैयार किया गया – 40 किलो ऑरेंज कंटेनर में और 160 किलो नीले कंटेनर में। इन कंटेनरों को कार की बीच वाली सीट पर फिट कर दिया गया और धमाके का मुख्य स्विच कार के स्टीयरिंग व्हील के पास लगा दिया गया।
कार तैयार थी, अब बस काफिले की सही तारीख का इंतज़ार था। इस दौरान ये लोग डरे हुए नहीं थे, बल्कि मजाक-मस्ती भी करते थे। बम बनाते समय सिल्वर एल्युमिनियम पाउडर अपने बालों, मुंह और कपड़ों पर लगाकर तस्वीरें भी खिंचवाईं। आदिल को मानसिक रूप से तैयार किया जा रहा था ताकि वह आखिरी समय पर पीछे न हटे। बैकअप के तौर पर यावर अहमद नज़र नाम के एक और लड़के को तैयार रखा गया था।
पूरे हमले को ऐसा दिखाना था कि कश्मीर का युवा भारत सरकार से परेशान होकर यह कदम उठा रहा है, इसमें पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं। इसीलिए तय किया गया कि आदिल का एक वीडियो पहले ही बनवाकर रख लिया जाए, जिसे हमले के बाद जारी किया जाएगा। 27 जनवरी 2019 को उमर आदिल को इंशा के घर ले गया। आदिल को एक स्क्रिप्ट दी गई, M4 राइफल पकड़ा दी गई, पीछे जैश का बैनर लगाया गया और वीडियो बनाना शुरू हुआ। लेकिन आदिल स्क्रिप्ट ठीक से बोल नहीं पा रहा था। काफी कोशिशों के बाद भी जब वह नहीं बोल पाया, तो वीडियो में आदिल को रखकर किसी और की आवाज़ (वॉइस ओवर) लगा दी गई।
१४ फरवरी २०१९: काफिले की रवानगी और मौत का सफर
दूसरी तरफ, सैनिक छुट्टियां बिताकर वापस आने के बाद जम्मू ट्रांजिट कैंप में इकट्ठा हो रहे थे, जो जम्मू रेलवे स्टेशन के पीछे था। यहीं से काफिले के ज़रिए उन्हें अपनी-अपनी पोस्टिंग पर जाना था। तय हुआ था कि फरवरी के पहले हफ्ते में काफिला श्रीनगर के लिए NH-44 से रवाना होगा। इस कैंप की क्षमता 1000 सैनिकों की थी, लेकिन कई कारणों से काफिला रुका हुआ था। एक तो हमले की खुफिया रिपोर्टें थीं, दूसरा कुछ संवेदनशील तारीखें थीं – 5 फरवरी (कश्मीर सॉलिडेरिटी डे), 9 और 11 फरवरी (मकबूल भट्ट और अफज़ल गुरु की बरसी)। इन दिनों हमले का खतरा ज़्यादा होता है।
देरी की वजह से कैंप में क्षमता से ज़्यादा सैनिक जमा हो गए थे। आखिरकार तय हुआ कि 6 फरवरी 2019 को काफिला भेजा जाएगा। लेकिन 4 फरवरी को भारी बर्फबारी शुरू हो गई, जो अगले दिन भी जारी रही, जिससे NH-44 बंद हो गया। उसी दिन (5 फरवरी) मसूद अज़हर ने पेशावर में रैली करके पुलवामा में हमले की बात कही। इन सब वजहों से काफिला रुका रहा। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन गवर्नर सत्यपाल मलिक ने बाद में एक इंटरव्यू में कहा कि उन्होंने सरकार से एयरलिफ्ट कराने को कहा था, लेकिन उनकी सुनी नहीं गई।
13 फरवरी तक NH-44 को साफ कर लिया गया। कोई और विकल्प न बचने पर 14 फरवरी 2019 की तारीख तय कर दी गई। CRPF यूनिट को सूचित किया गया कि अगले दिन सुबह 3:30 बजे काफिला निकलेगा। इस काफिले में 78 बसों में 2547 CRPF जवान थे, जिन्हें NH-44 के ज़रिए 271 किलोमीटर का सफर तय करना था। काफिला सामान्य से बड़ा था क्योंकि कई दिनों की देरी से भीड़ ज़्यादा हो गई थी।
14 फरवरी 2019, सुबह 3:30 बजे। CRPF की बसें, 15 ट्रक, ITBP की दो बसें, एक स्पेयर बस, रिकवरी वैन, एम्बुलेंस और सबसे पीछे असिस्टेंट कमांडेंट अपनी सफेद जिप्सी में चलने को तैयार थे। काफिले के निकलने से ठीक पहले दो बातें हुईं। काफिले की बस नंबर 5 (नीले रंग की, नंबर HR49F0637), जिस पर हमला होने वाला था, उसे हेड कांस्टेबल कृपाल सिंह को चलाना था। उनकी बेटी की शादी थी और उन्होंने छुट्टी के लिए अप्लाई कर रखा था। सब बात कर रहे थे कि अगर दोबारा बर्फबारी हुई तो वह शादी मिस कर देंगे। ऐसे में जयमल सिंह ने खुद कहा कि वह कृपाल की जगह बस चला लेंगे। दूसरी घटना, उसी बस नंबर 5 में सवार महाराष्ट्र के CRPF कांस्टेबल ठाका बेलकर की भी दस दिन बाद शादी थी। उन्होंने छुट्टी अप्लाई की थी, जो काफिला चलने से थोड़ी देर पहले मंजूर हो गई। वह आखिरी समय पर बस से उतर गए। ये दोनों संयोग आगे चलकर इन दोनों की जान बचाने वाले थे।
नियम के मुताबिक, काफिला निकलने से पहले रोड ओपनिंग पार्टी (ROP) पूरे रास्ते की जांच करती है। ROP टीम NH-44 पर बरसू से लेकर हाथी बारा मोड़ तक (262.2 माइलस्टोन से 272.2 माइलस्टोन तक) 10 किलोमीटर के इलाके को चेक करने निकली। टीम ने रास्ते को चेक करके 10 पॉइंट्स पर पोजीशन ले ली। एक पॉइंट (लाडू मोड़ के पास, 272 माइलस्टोन) पर सुबह 7:15 बजे असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर मोहन लाल अपनी टीम के साथ तैनात थे।
उधर, उमर कार तैयार करके काफिले का इंतज़ार कर रहा था। जैसे ही शाकिर बशीर ने अपनी दुकान से ROP की तैनाती देखी, वह समझ गया कि आज काफिला आने वाला है। उसने तुरंत उमर को फोन करके तैयार रहने को कहा।
इधर से काफिला चलना शुरू हुआ। श्यामा प्रसाद मुखर्जी टनल पार करके काफिला पीरा पहुँचा। पहले यहाँ काफिला लंच के लिए रुकता था, लेकिन खुफिया इनपुट के कारण इसे संवेदनशील इलाका मानकर यहाँ नहीं रुका गया। काफिले के साथ-साथ स्थानीय ट्रैफिक भी चल रहा था। (2003 में जम्मू-कश्मीर सरकार के विरोध के बाद काफिले के साथ स्थानीय ट्रैफिक को चलने की अनुमति दे दी गई थी)।
दोपहर 2:02 बजे काफिला काजीगुंड ट्रांजिट कैंप पहुँचा। यहाँ अनंतनाग, कुलगाम और शोपियन में तैनात होने वाले जवान उतर गए। अब बाकी काफिले को आगे जाना था, और आगे का इलाका बहुत संवेदनशील था, जहाँ पहले भी काफिलों पर हमले हो चुके थे। नियम था कि इस इलाके से काफिला सिर्फ सेमी-बुलेटप्रूफ बसों में ही जाएगा, लेकिन भीड़ ज़्यादा होने के कारण सिर्फ 15 सेमी-बुलेटप्रूफ बसें ही थीं। इसलिए सामान्य बसों को भी आगे जाने की इजाजत दे दी गई। बस नंबर 5 बुलेटप्रूफ नहीं थी।
काजीगुंड से निकलते समय एक और घटना हुई। बस नंबर 5 में बैठे CRPF कांस्टेबल सुरेंदर यादव को उनके दोस्त पीछे से बुला रहे थे। वह परेशान होकर उतरकर अपने दोस्तों के पास चले गए। उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि यह उनकी जान बचा लेगा, क्योंकि कुछ ही देर में बस नंबर 5 तबाह होने वाली थी। सुरेंदर यादव के उतरने के बाद बस में 39 जवान थे।
दोपहर 2:42 बजे, काफिला काजीगुंड से निकल चुका था। कोई गाने सुन रहा था, कोई वीडियो कॉल पर था, कुछ आपस में बात कर रहे थे। ROP टीम हाईवे के दोनों तरफ अलर्ट खड़ी थी।
धमाका और उसके बाद का मंज़र
उधर, उमर ने आदिल को शाकिर के साथ ईको कार में बिठाकर भेज दिया। हाजीबल ब्रिज पर शाकिर आदिल से गले मिला। आदिल ने अपनी घड़ी उतारकर शाकिर को निशानी के तौर पर दी और कहा कि मरने के बाद यह उसे उसकी याद दिलाएगी। फिर आदिल अकेले कार ड्राइव करके हमले के लिए निकल गया।
आदिल ने पुलवामा के NH-44 हाईवे पर लाडू मोड़ से एंट्री ली। तब तक CRPF की एक-दो बसें निकल चुकी थीं। लाडू मोड़ पर तैनात ASI मोहन लाल ने कार को असामान्य स्पीड से काफिले के बीच घुसने की कोशिश करते देखा। उन्हें शक हुआ। दोपहर 2:50 बजे, कार को देखकर वायरलेस फ्रीक्वेंसी और CRPF के वॉकी-टॉकी पर एक कोडेड मैसेज ‘444’ फ्लैश होने लगा, जो हाई अलर्ट का सिग्नल था। ASI मोहन लाल ने सीटी बजाकर कार को रोका, लेकिन आदिल ने स्पीड और बढ़ा दी। ASI मोहन लाल ने पीछा करते हुए कार पर फायरिंग शुरू कर दी। फायरिंग होते ही आदिल ने कार को तीन बसों को छोड़कर बस नंबर 5 से भिड़ा दिया और फिर दोपहर 3:15 बजे, लेथपोरा गाँव के पास (272 माइलस्टोन पर) कार में धमाका कर दिया।
धमाका इतना भयंकर था कि बस नंबर 5 के परखच्चे उड़ गए। आगे-पीछे की बसें भी क्षतिग्रस्त हो गईं। धमाके की आवाज़ दस किलोमीटर दूर तक सुनाई दी। बस के टुकड़े और जवानों के शरीर के अंग 500-600 मीटर दूर तक जाकर गिरे। बस नंबर 5 में सवार सभी 39 CRPF जवान और पीछा कर रहे ASI मोहन लाल, कुल 40 जवान शहीद हो गए और 20 से ज़्यादा घायल हुए।
जांच की शुरुआत: सुरागों की तलाश
हमले के तुरंत बाद बचाव दल, QRT (क्विक रिएक्शन टीम), स्थानीय CRPF, और चंडीगढ़ व दिल्ली से CFSL (सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी) की टीमें मौके पर पहुँच गईं। कुछ भी साबुत नहीं बचा था। तलाशी अभियान के दौरान CFSL टीम को कार का एक क्रैंकशाफ्ट मिला। मारुति कंपनी के विशेषज्ञों को बुलाया गया ताकि पता चल सके कि यह कार किसको बेची गई थी। लैब नतीजों से पता चल गया कि किस तरह के विस्फोटक का इस्तेमाल हुआ था।
उसी दिन, 14 फरवरी 2019 को शाम 4:30 बजे, जैश-ए-मोहम्मद के प्रवक्ता ने श्रीनगर की एक न्यूज़ एजेंसी (ग्लोबल न्यूज़ सर्विस) को व्हाट्सएप पर आदिल का वही वीडियो भेजा, जो पहले रिकॉर्ड किया गया था। वीडियो तेज़ी से वायरल हुआ और सुरक्षा बलों तक पहुँच गया। वीडियो देखते ही वे आदिल को पहचान गए, क्योंकि उसे पहले भी गिरफ्तार किया गया था और ‘C’ कैटेगरी की लिस्ट में रखा गया था। उसकी पूरी रिपोर्ट निकाली गई, जिससे पता चला कि वह बॉर्डर पार POK गया था, ट्रेनिंग ली थी और RDX लेकर कश्मीर में घुसा था।
गाड़ी का रहस्य और पाकिस्तानी हाथ
इस पूरे मामले की जांच मणिपुर कैडर के IPS राकेश बलवाल कर रहे थे। उन्होंने आदिल के वीडियो को कई बार देखा और उन्हें शक हुआ कि वीडियो में आवाज़ किसी और की है (वॉइस ओवर)। उन्हें संदेह हुआ कि कहीं हमला पाकिस्तान की तरफ से किसी और ने करके कश्मीरी युवक आदिल का वीडियो इस्तेमाल न किया हो। वीडियो को अमेरिका की FBI के पास भेजा गया। FBI ने पुष्टि की कि वीडियो में वॉइस ओवर किया गया था। साथ ही, जिस व्हाट्सएप अकाउंट से वीडियो भेजा गया था, वह जमीला नाम की एक महिला की ID पर जारी सिम से इस्तेमाल हुआ था, जिसकी पहले ही मौत हो चुकी थी। FBI ने व्हाट्सएप अकाउंट यूजर की लोकेशन ट्रैक की, जो LOC के पार मुजफ्फराबाद (पाकिस्तान) की निकली। इससे पहली बार पाकिस्तान के शामिल होने का एक छोटा सा आधिकारिक सबूत मिला।
पाकिस्तान का नाम आते ही भारत में पाकिस्तानी कलाकारों पर प्रतिबंध लगा, व्यापार रोका गया, FATF ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाला। इधर, मारुति कंपनी ने भी क्रैंकशाफ्ट की रिपोर्ट भेज दी। चेसिस नंबर कई जगह से मिटा था, फिर भी उन्होंने उसे और इंजन नंबर को ट्रेस कर लिया। पता चला कि हमले में इस्तेमाल हुई कार सात बार खरीदी और बेची गई थी। जांच एजेंसियां एक-एक करके सभी खरीदारों तक पहुँचीं। आखिरी खरीदार सज्जाद मकबूल भट्ट था, जिसने दानिश रशीद से कार खरीदी थी। जब एजेंसियां सज्जाद को पकड़ने गईं, तो वह घर से गायब था और उसने भी बुरहान वानी स्टाइल में AK-47 के साथ सोशल मीडिया पर फोटो डालकर POK भाग जाने का संकेत दिया था। जांच फिर से रुक गई।
जांच में अहम मोड़: बर्फ में मिली चाबी और हाय जानू
पूरे देश में गुस्सा था और एजेंसियों पर जल्द से जल्द दोषियों को पकड़ने का दबाव था। सिर्फ पाकिस्तान का नाम लेना काफी नहीं था, ठोस सबूत चाहिए थे। NIA के राकेश बलवाल ने सोचा कि घटना स्थल के आसपास के इलाके में तलाशी अभियान चलाया जाए। यह इलाका संवेदनशील था और ऐसे अभियानों के दौरान पत्थरबाजी का खतरा रहता था, लेकिन दिल्ली से विशेष अनुमति लेकर 20 फरवरी 2019 को 100 NIA अफसर और 400 CRPF जवानों के साथ तलाशी शुरू की गई। यह काम कर गया। घटना स्थल से करीब 250 मीटर दूर, झेलम नदी के किनारे बर्फ में एक कार की चाबी मिली, जिस पर ‘010261’ लिखा था। उसी के पास कुछ हड्डी के टुकड़े मिले। राकेश बलवाल ने तुरंत उन टुकड़ों का DNA आदिल के पिता के DNA से मैच करवाया, और वह मैच कर गया। इससे पुष्टि हो गई कि हमला आदिल ने ही किया था और जिस कार से किया था, उसकी डिटेल्स पहले ही मिल चुकी थीं। लेकिन RDX कहाँ से आया और इसके पीछे पाकिस्तान के कौन लोग थे, यह पता नहीं चल पा रहा था। मुख्य साजिशकर्ता उमर लोकेशन बदलकर गायब हो गया था।
इसी बीच भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी कैंपों पर एयर स्ट्राइक की। कश्मीर के अंदर भी भारतीय सेना जैश के हैंडलर्स का एक-एक करके एनकाउंटर कर रही थी। 18 जून 2019 को कार का इंतजाम करने वाला सज्जाद भट्ट भी मारा गया। लेकिन मुख्य साजिशकर्ता उमर अब भी फरार था।
उमर कैसे मारा गया, यह भी एक अजीब संयोग है। हमले से पहले उमर ने कई बार पुलिसवालों को धमकियां दी थीं। उसने बहुत पहले पुलवामा के एक पुलिस अफसर को एक रैंडम नंबर से व्हाट्सएप पर मैसेज भेजा था, जिसमें पिस्तौल का इमोजी बनाकर लिखा था, “हाय जानू, मैं तुझे तेरे घर आकर मार दूंगा।” मैसेज भेजने के बाद नंबर बंद हो गया था। उस पुलिस अफसर ने नंबर को ‘हाय जानू’ नाम से सेव करके साइबर सेल में ट्रैकिंग पर लगा दिया था।
हमले के बाद, 27 मार्च 2019 को, उमर को बात करने के लिए नंबर चाहिए था, तो उसने अपना वही ‘हाय जानू’ वाला नंबर खोल लिया। जैसे ही नंबर ऑन हुआ, साइबर सेल के सिस्टम में अलर्ट आ गया। उमर की लोकेशन बडगाम के पास सुथसू कलां में डिटेक्ट हुई। इस लोकेशन पर जाकर उमर को मार दिया गया।
मास्टरमाइंड उमर का अंत और डेटा का खजाना
विडंबना यह थी कि उमर को मारने के बाद भी भारतीय सेना को पता नहीं था कि उन्होंने पुलवामा के मास्टरमाइंड को मार दिया है। क्योंकि भारतीय रिकॉर्ड में उमर का नाम ‘इदरीश भाई’ था और उसने इसी नाम से नकली ID बना रखी थी। एनकाउंटर के बाद उसके पास से M4 राइफल, एक आईफोन और एक सैमसंग नोट S9 प्लस मिला, लेकिन उसने एनकाउंटर से पहले दोनों फोन तोड़ दिए थे। पुलिस ने इस एनकाउंटर को ज़्यादा गंभीरता से नहीं लिया और टूटे हुए फोन ऐसे ही पुलिस स्टेशन में रख दिए गए। भारतीय एजेंसियां उस आदमी को ढूंढ रही थीं, जो पहले ही मारा जा चुका था।
कई महीने बीत गए। जब कुछ हाथ नहीं लगा, तो जुलाई 2019 में राकेश बलवाल ने पुराने केस दोबारा खोलने का फैसला किया। उनका ध्यान ‘हाय जानू’ वाले इदरीश भाई के केस पर गया। उन्हें लगा कि इदरीश भाई कोई बड़ी मछली हो सकता है, क्योंकि उसके पास से M4 राइफल मिली थी, जो आमतौर पर जैश की लीडरशिप इस्तेमाल करती है, और उसने एडिडास जैसी ब्रांडेड टी-शर्ट पहनी थी।
केस दोबारा खुलने पर उमर के टूटे हुए फोन को भारत की टॉप कंप्यूटर फोरेंसिक एजेंसी Cert-In (इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम) के पास एनालिसिस के लिए भेजा गया। Cert-In की टीम ने कई दिनों की मेहनत के बाद फोन से डेटा रिकवर कर लिया। उमर ने फोन तोड़ने से पहले सारा डेटा डिलीट कर दिया था, लेकिन क्लाउड बैकअप से डेटा रिकवर हो गया। टीम को 2014 से लेकर तब तक का 100 GB से ज़्यादा डेटा मिला! इसमें पुलवामा की प्लानिंग से जुड़े 16 घंटे के वॉयस नोट्स, टेक्स्ट मैसेज, रेकी के वीडियो, सब कुछ था।
पर्दाफाश और गिरफ्तारियां
NIA की टीम ने अगले 14 घंटे तक इस डेटा का विश्लेषण किया। तब पता चला कि ‘इदरीश भाई’ असल में पुलवामा का मास्टरमाइंड, मसूद अज़हर का भतीजा और कंधार अपहरण के मास्टरमाइंड का बेटा उमर फारूक अल्वी था। डेटा में RDX कैसे इस्तेमाल हुआ, किस रास्ते से इकट्ठा हुआ, हमले का कोऑर्डिनेशन कैसे हुआ, सब पता चल गया। हमले के समय 100 कॉल्स ट्रेस की गईं, जो पाकिस्तान के अलग-अलग शहरों से की गई थीं। एक वॉयस नोट मिला जिसमें हमले के समय कोई उमर को कोऑर्डिनेट कर रहा था और फोन नष्ट करने को कह रहा था। NIA को लगा कि यह आवाज पाकिस्तान के किसी रऊफ असगर (मसूद अज़हर का भाई) की है। वॉयस सैंपल मैच करने पर यह पुष्टि हो गई, जो पाकिस्तान के शामिल होने का बड़ा सबूत बना।
मोबाइल से उमर की इंशा के साथ निजी तस्वीरें मिलीं, बम बनाते समय मुंह पर सिल्वर पाउडर लगाकर खिंचवाई गई तस्वीरें मिलीं। एक तस्वीर में हमले में इस्तेमाल हुई ईको कार शाकिर बशीर के घर के सामने खड़ी थी, जहाँ बम बना था। NIA टीम शाकिर के घर पहुँची और 7 दिसंबर 2019 को उसे गिरफ्तार कर लिया। मोबाइल में उमर और इंशा की भी कई तस्वीरें थीं। NIA टीम इंशा के घर पहुँची, जहाँ उन्हें लकड़ी की वही अलमारी मिली जो आदिल के वीडियो में जैश के बैनर के नीचे दिख रही थी। NIA ने 3 मार्च 2020 को इंशा और उसके पिता पीर तारिक शाह को गिरफ्तार कर लिया।
अमेज़न अकाउंट से सामान मंगवाने वाले 19 साल के छात्र वैज़-उल-इस्लाम को 7 मार्च 2020 को पकड़ा गया। सेफ हाउस नेटवर्क चलाने वाले मोहम्मद अब्बास को गिरफ्तार किया गया। गुलशन मोबाइल शॉप के ज़रिए बिलाल कुच्चे पकड़ा गया। ऐसे करके कश्मीर के अंदर जितने भी लोग शामिल थे, सब पकड़े गए।
चार्जशीट और न्याय की ओर कदम
शुरुआत में इंशा उमर को अपना भाई बताकर इनकार करती रही, लेकिन तस्वीरें और वॉयस नोट दिखाने पर उसने सब मान लिया। शाकिर सबसे ज़्यादा सख्त था और कुछ नहीं बता रहा था, लेकिन जब राकेश बलवाल ने उसे उमर और इंशा की निजी तस्वीरें दिखाईं, तो वह चौंक गया। वह उमर को बहुत अच्छा मानता था और यह जानकर कि उमर शादीशुदा होते हुए भी ऐसा कर रहा था, वह इतना आहत हुआ कि उसने NIA को सारी प्लानिंग बता दी।
आखिरकार, 25 अगस्त 2020 को, NIA ने इस पूरे केस को सुलझाकर 13,800 पन्नों की चार्जशीट NIA कोर्ट में फाइल की। पूरे कश्मीर में कार्रवाई हुई और जो-जो इसमें शामिल थे, उन्हें सज़ा मिली।
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इस पूरी कहानी से एक सवाल उठता है: इतनी सारी खुफिया चेतावनियों के बावजूद, यह हमला आखिर कैसे हो गया?