पहलगाम की खूबसूरती और कश्मीर के आतंकवाद की दर्दनाक सच्चाई: कैसे शांति की धरती को घेर लिया आतंकवाद ने

पहलगाम आतंकवादी हमला

कश्मीर की शांत वादियाँ, एक ऐसी भूमि जिसकी सुंदरता दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है, कभी-कभी घृणा और आतंक का शिकार भी बन जाती हैं। पहलगाम, इस स्वर्ग में एक रत्न, ऐसे ही दो भयावह अध्यायों का गवाह है – एक 30 साल पहले की यादों में अंकित है, और दूसरा जिसने हाल ही में इसकी शांति को भंग कर दिया है।

30 साल पहले का एक भयानक मंज़र (July 4, 1995 – August 13, 1995)

यह July 4, 1995 की बात है। पहलगाम के शांत आगोश में, 6 विदेशी पर्यटक – 2 American, 2 British, 1 German student और 1 Norwegian actor – अपने 2 guides के साथ इसकी सुंदरता का अनुभव कर रहे थे। अचानक, उनका शांतिपूर्ण भ्रमण लगभग 40 आतंकवादियों के आगमन से चकनाचूर हो गया, जिनकी बंदूकें भयावह रूप से चमक रही थीं। बंदूक की नोक पर, सभी 8 लोगों का अपहरण कर लिया गया, उनका भाग्य अधर में लटक गया।

अपहरणकर्ताओं ने सरकार के सामने अपनी मांग रखी: जैश-ए-मोहम्मद के नेता मौलाना मसूद अजहर की रिहाई, जो उस समय जेल में बंद था। उनकी विकृत सोच ने यह मान लिया था कि विदेशी नागरिकों, विशेष रूप से America और Britain के लोगों के जीवन, भारत सरकार पर भारी दबाव डालेंगे। बातचीत शुरू हुई, मध्यस्थों ने हस्तक्षेप किया, लेकिन जैसे-जैसे सप्ताह महीनों में बदलते गए, कोई समाधान नहीं निकला।

फिर वह अशुभ August 13, 1995 की तारीख आई। Norwegian actor, हैंस क्रिश्चियन ऑस्टेरो का क्षत-विक्षत शव पहलगाम से कुछ दूरी पर मिला। उनका सिर धड़ से अलग कर दिया गया था। 6 बंधकों में से 1 की जान बेरहमी से ले ली गई थी।

4 दिन बाद, August 17, 1995 को, उम्मीद की एक किरण अंधेरे को चीरती हुई दिखाई दी। American नागरिक, जॉन चाइल्ड्स, किसी तरह अपने अपहरणकर्ताओं के चंगुल से भागने में सफल रहे। लेकिन शेष 4 विदेशी बंधकों का भाग्य अनिश्चितता के बादल में घिरा रहा। आतंकवादियों द्वारा जारी एक बाद के बयान में सरकार की रुचि की कमी का हवाला देते हुए बातचीत समाप्त करने की घोषणा की गई। उन 4 व्यक्तियों का क्या हुआ? वे कभी घर नहीं लौटे, कभी अपने परिवारों से दोबारा बात नहीं की। अनकही बात हवा में भारी लटकी रही – शायद वे भी एक हिंसक अंत का शिकार हो गए थे। इसके बाद, अनंतनाग जिले और पहलगाम के आसपास के जंगलों में एक तलाशी अभियान चलाया गया, लेकिन इससे कोई जवाब नहीं मिला, कोई सांत्वना नहीं मिली।

क्या किसी भी विचारधारा के नाम पर निर्दोषों का खून बहाना जायज़ है? क्या जो लोग स्वर्ग की घाटी को नरक में बदल देते हैं, वे कभी किसी के अपने हो सकते हैं? इन सवालों की गूँज कश्मीर की घाटियों में गूंजती रहती है, शांति की भंगुरता और आतंक के स्थायी दर्द की एक भयानक याद दिलाती है।

हालिया हमला और अनसुलझे सवाल (22/04/2025)

तीस साल का एक लंबा अरसा बीत गया। पहलगाम की वादियों में tourist बेखौफ घूम रहे थे, शायद 1995 की उस भयावह घटना को वक़्त की धूल ने धुंधला कर दिया था। लेकिन 22 अप्रैल 2025 (22/04/2025) को, आतंक ने एक बार फिर अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाया, और इस बार निशाना बने वो बेगुनाह सैलानी जो पहलगाम की खूबसूरती का लुत्फ़ उठाने आए थे। इस हमले में 26 निर्दोष जानें चली गईं, जिनमें ज़्यादातर tourist थे।

दहशत की वापसी (The Return of Terror)

यह हमला पहलगाम के सबसे खूबसूरत tourist spots में से एक, बैसरन घाटी (जिसे ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ भी कहा जाता है) के पास हुआ। यह वो जगह है जहाँ अमूमन सैलानी घूमते-फिरते, चाय-कॉफ़ी, cold drink या refreshment लेने के लिए रुकते हैं। यहाँ कुर्सियां लगी होती हैं, पास में बहती नहर का खूबसूरत मंज़र होता है, लोग photography करते हैं। 22 अप्रैल की दोपहर, जब यह जगह सैलानियों से गुलज़ार थी, तभी पांच आतंकवादी वहां पहुंचे और अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं।

आतंकवादियों की पहचान और मंसूबे (Terrorists’ Identity and Intentions)

जांच और eyewitnesses के बयानों से जो तस्वीर उभरी, वो चौंकाने वाली थी। इन पांच हमलावरों में तीन पाकिस्तानी नागरिक थे – अबू तलहा, आसिफ फौजी और सुलेमान शाह। ये तीनों ‘The Resistance Force’ (TRF) के सदस्य थे, जो लश्कर-ए-तैयबा का ही एक नया मुखौटा है, जिसे खासतौर पर 2019 में Article 370 हटने के बाद कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए बनाया गया था। TRF का सरगना शेख सज्जाद पाकिस्तान से इसे operate करता है।

इन तीन पाकिस्तानियों के साथ दो local कश्मीरी आतंकवादी भी शामिल थे। ये दोनों 2017 में training के लिए Pakistan गए थे और पिछले साल (2024) ही इन तीन पाकिस्तानियों के साथ local guide बनकर लौटे थे, क्योंकि इन्हें जंगल के रास्तों की पूरी जानकारी थी।

इन आतंकवादियों की training बेहद खतरनाक होती है। इन्हें सरहद पार से घने जंगलों के रास्ते पैदल चलने, police या forces की नज़रों से बचने, बिना किसी gadget (phone या अन्य tracking device) के operate करने और मुश्किल हालात में survive करने की training दी जाती है। ये बेहद तेज़ी से चलते हैं, घने जंगल में भी औसतन 10 मिनट में एक किलोमीटर का फासला तय कर लेते हैं।

खुफिया एजेंसियों को मिली reports के अनुसार, इनका असल target शायद जुलाई में शुरू होने वाली अमरनाथ यात्रा थी, जिसका main base camp पहलगाम ही है। लेकिन शायद ज़्यादा वक्त होने या किसी और वजह से, इन्होंने पहले ही tourist spot पर हमला कर दिया।

खुफिया चूक और हमले का तरीका (Intelligence Failure and Attack Modus Operandi)

यह हमला एक तरह से हमारी सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के लिए एक झटका था। पिछले करीब डेढ़ साल से अनंतनाग district (जिसमें पहलगाम आता है) में terrorist activity लगभग शून्य बताई जा रही थी। Intelligence input यही थे कि आतंकवादी अगर सक्रिय हैं भी, तो उनका निशाना railway network या गैर-कश्मीरी employee हो सकते हैं। किसी tourist spot पर, खासकर 1995 के बाद, सीधे हमले की आशंका नहीं थी।

हमलावरों ने उस जगह को चुना जहाँ गाड़ियों से पहुंचना मुमकिन नहीं, सिर्फ पैदल या घोड़े/खच्चर (horse/khacchar) से ही जाया जा सकता है। उन्हें पता था कि यहाँ forces को पहुंचने में वक्त लगेगा। उन्होंने M4 Carbine और AK-47 जैसे हथियारों का इस्तेमाल किया और आजकल के नए trend के मुताबिक, हमले की video recording के लिए body camera या gun पर लगे camera का भी इस्तेमाल किया, ताकि बाद में इसका propaganda कर सकें और डर फैला सकें।

Eyewitnesses ने बताया कि गोली चलाते वक्त आतंकवादी आपस में बात कर रहे थे। तीन की भाषा और लहज़ा पाकिस्तानी उर्दू वाला था, जबकि दो local कश्मीरी में बात कर रहे थे। इसी से उनकी पहचान पुख्ता हुई।

हमले के बाद: जंगल में तलाश (Aftermath: Search in the Forest)

महज़ दस मिनट तक मौत का तांडव मचाने के बाद, ये पांचों आतंकवादी उसी जंगल के रास्ते वापस भाग गए जहाँ से आए थे। उन्हें पता था कि security forces जल्द ही पहुंच जाएंगी। वे पहलगाम के घने और विशाल जंगलों में गायब हो गए।

अब सुरक्षाबलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन जंगलों में उन्हें ढूंढ निकालना है। ये जंगल इतने बड़े और दुर्गम हैं कि इन्हें पूरी तरह खंगालने में बहुत वक्त लगता है। आतंकवादी जंगल में रहने और तेज़ी से जगह बदलने में माहिर होते हैं, और माइनस 10 degree temperature में भी survive कर सकते हैं।

एक बड़ा search operation जारी है, जिसमें Indian Army, paramilitary forces और Jammu and Kashmir Police शामिल हैं। Helicopters और अन्य तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। बकायदा map के ज़रिए उनके भागने के संभावित रास्तों और छिपने के ठिकानों का आकलन कर उन्हें घेरने की कोशिश की जा रही है।

जांच और भारत की जवाबी कार्रवाई (Investigation and India’s Response)

मामले की जांच National Investigation Agency (NIA) को सौंप दी गई है। NIA की एक उच्च-स्तरीय team, जिसमें Inspector General (IG), Deputy Inspector General (DIG), Senior Superintendent (SSP) रैंक के अधिकारी शामिल हैं, घाटी पहुँच चुकी है। Military Intelligence (MI), Intelligence Bureau (IB) और local police भी जांच में सहयोग कर रही हैं। चश्मदीदों के बयानों के आधार पर हमलावरों के sketch जारी किए गए हैं।

इस बर्बर हमले के बाद, जिसका सीधा संबंध पाकिस्तान स्थित आतंकी गुटों से जुड़ रहा है, भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कड़े कदम उठाए हैं:

  1. सिंधु जल संधि का निलंबन (Suspension of Indus Waters Treaty): भारत ने 1960 की ऐतिहासिक सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है, जब तक कि पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद पर विश्वसनीय रोक नहीं लगाता।
  2. वीजा सेवाओं का निलंबन (Suspension of Visa Services): पाकिस्तानी नागरिकों के लिए सभी visa सेवाएं तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दी गई हैं। मौजूदा सभी valid visas रद्द कर दिए गए हैं और भारत में मौजूद पाकिस्तानियों को देश छोड़ने के लिए बहुत कम समय (medical visa वालों को छोड़कर 27 अप्रैल तक) दिया गया था। SAARC Visa Exemption Scheme भी रद्द कर दी गई।
  3. राजनयिक कटौती (Diplomatic Reduction): दोनों देशों में High Commissions के staff की संख्या घटाकर 30 कर दी गई है। Pakistani Defence/Military advisors को भारत छोड़ने का आदेश दिया गया और भारत ने भी इस्लामाबाद से अपने Defence staff को वापस बुला लिया है।
  4. सीमा और व्यापार बंद (Border & Trade Closure): अटारी-वाघा border crossing को बंद कर दिया गया है। पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई में व्यापार और हवाई क्षेत्र बंद कर दिया है। भारत की प्रमुख व्यापारी संस्था CAIT ने भी पाकिस्तान से व्यापार पूरी तरह बंद करने का ऐलान किया है।
  5. मीडिया पर कार्रवाई (Action against Media): भारत विरोधी और भ्रामक प्रचार करने वाले 16 पाकिस्तानी YouTube channels (जिनमें बड़े news channels भी शामिल हैं) को ban कर दिया गया है।
  6. Travel Advisory: भारतीय नागरिकों को पाकिस्तान की यात्रा न करने की सलाह दी गई है।

ये कदम भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को कई सालों के सबसे निचले स्तर पर ले आए हैं। सीमा पर (Line of Control) दोनों तरफ से गोलीबारी की खबरें भी आ रही हैं।

लेकिन इन सब कार्रवाइयों के बीच, वही पुराने सवाल फिर सिर उठाते हैं:

  • क्या इन कदमों से आतंकवाद रुक जाएगा?
  • उन बेगुनाह लोगों का क्या कसूर था? उन परिवारों का क्या होगा जिन्होंने अपनों को खो दिया?
  • कश्मीर की tourism-based economy का क्या होगा? उन local लोगों का क्या होगा जिनका रोज़गार छिन गया है?
  • क्या धर्म या विचारधारा के नाम पर निर्दोषों का खून बहाना कभी जायज़ ठहराया जा सकता है?
  • हम कब तक हमलों के बाद जागेंगे और फिर कुछ समय बाद भूल जाएंगे? इसका स्थायी समाधान क्या है?

ये मुट्ठी भर लोग, जिन्हें इंसान कहना भी इंसानियत की तौहीन है, न किसी मज़हब के हैं, न किसी मुल्क के, न किसी इंसानियत के। उम्मीद और प्रार्थना यही है कि इन गुनहगारों को जल्द से जल्द पकड़ा जाए और उन्हें ऐसी सज़ा मिले जो भविष्य के लिए एक मिसाल बने।

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