अल-कायदा का मास्टरमाइंड: ओसामा बिन लादेन की ज़िंदगी की अनसुनी सच्चाइयाँ और 9/11 हमले का सच

OSAMA bin laden

9/11 का हमला और शुरुआती जांच

ओसामा बिन लादेन के आतंकवादी हमलों की कहानी 11 सितंबर, 2001 की सुबह अमेरिका पर हुए हमलों ने पूरी दुनिया को हिला दिया। न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और वाशिंगटन के पेंटागन पर हुए इन हमलों में हजारों बेगुनाह लोग मारे गए। अमेरिका सदमे और गुस्से में था, और सबकी निगाहें एक ही शख्स पर थीं – ओसामा बिन लादेन, जो अल-कायदा नाम के आतंकी संगठन का मुखिया था।

उसी वक्त जब अमेरिका पर हमला हो रहा था, ओसामा अफगानिस्तान के एक पहाड़ी इलाके में बैठकर बीबीसी अरबी सर्विस पर हर अपडेट ले रहा था। उसे लग रहा था कि उसने अमेरिका को एक बहुत बड़ा झटका दिया है।

हमले के तुरंत बाद, अमेरिकी खुफिया एजेंसियां – सीआईए, एफबीआई और एनएसए – हरकत में आ गईं। उनका पहला काम था फ्लाइट में सवार यात्रियों की जानकारी निकालना। राख और मलबे के बीच से उन्होंने पासपोर्ट और वीजा के रिकॉर्ड खंगाले और धीरे-धीरे 19 ऐसे लोगों की पहचान की जो हमलावर हो सकते थे।

फिर शुरू हुई हवाई अड्डों के सीसीटीवी फुटेज की छानबीन। एजेंसियां हर उस एयरपोर्ट के फुटेज देखने लगीं जहाँ से वो विमान उड़े थे। उनका मकसद था हर एक हमलावर की गतिविधि को बारीकी से समझना।

इसी दौरान एक किस्मत की बात हुई। हमलावरों में से एक, मोहम्मद अट्टा का बैग, उसकी कनेक्टिंग फ्लाइट मिस होने की वजह से बोस्टन के लोगान एयरपोर्ट पर ही छूट गया। सीआईए की टीम ने तुरंत उस बैग को तलाशा और उसमें उन्हें अल-कायदा से जुड़े कई अहम दस्तावेज मिले। ट्रेनिंग मैनुअल, हमले की प्लानिंग और यहाँ तक कि अट्टा का वसीयतनामा भी उस बैग में था। इन सब से यह साफ हो गया कि इस हमले के पीछे अल-कायदा और ओसामा का ही हाथ है।

जांच आगे बढ़ी और खुफिया एजेंसियों ने इन 19 हमलावरों के अमेरिका में आने के बाद की कॉल रिकॉर्ड, ईमेल और बैंक ट्रांजेक्शन भी खंगालने शुरू कर दिए। इससे यह पता चला कि उन्हें फंडिंग दुबई के एक अकाउंट से वायर ट्रांसफर के जरिए मिली थी, जो अल-कायदा ने भेजी थी। यह भी पता चला कि इन हमलावरों ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बॉर्डर के पास ट्रेनिंग ली थी।

हालांकि, अल-कायदा का नाम अमेरिका के लिए नया नहीं था। हमले से एक महीने पहले ही सीआईए ने चेतावनी दी थी कि अल-कायदा कुछ बड़ा करने की फिराक में है। पहले भी अल-कायदा ने अमेरिकी दूतावासों पर हमले किए थे, और अमेरिका पहले से ही अफगानिस्तान से ओसामा और उसके संगठन को सौंपने की मांग कर रहा था।

अमेरिका का अल्टीमेटम और तालिबान का इनकार

इन सब खुलासों के बाद, 20 सितंबर, 2001 को राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने कांग्रेस के सामने एक भाषण दिया। उन्होंने अफगानिस्तान से बिना किसी शर्त के दो मांगें रखीं – पहला, ओसामा बिन लादेन को अमेरिका को सौंप दिया जाए, और दूसरा, अफगानिस्तान में चल रहे अल-कायदा के ट्रेनिंग कैंप तुरंत बंद कर दिए जाएं। बुश ने साफ कह दिया कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो अमेरिका सैन्य कार्रवाई करेगा।

लेकिन अफगानिस्तान में हालात सामान्य नहीं थे। 1990 के दशक से ही वहां गृहयुद्ध चल रहा था। ज्यादातर इलाके पर तालिबान का कब्जा था और ओसामा ने तालिबान को इस लड़ाई में काफी मदद की थी, पैसे से लेकर लड़ाकों की ट्रेनिंग तक। वैचारिक रूप से भी तालिबान और अल-कायदा एक ही तरह की सोच रखते थे।

ऐसे में तालिबान के लिए ओसामा को अमेरिका को सौंपना आसान नहीं था। उन्हें डर था कि इससे उनकी अपनी स्थिति कमजोर हो जाएगी। इसलिए, तालिबान ने अमेरिका की मांग के जवाब में कहा कि वे पहले यह साबित करें कि हमले में ओसामा का हाथ है, तभी वे इस बारे में सोचेंगे। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि ओसामा उनका मेहमान है और वे अपने मेहमान को इस तरह नहीं सौंप सकते, यह उनकी संस्कृति के खिलाफ है।

अमेरिका इस जवाब से बिल्कुल संतुष्ट नहीं था। तालिबान के इनकार के ठीक दो हफ्ते बाद, अमेरिका ने अफगानिस्तान में ‘ऑपरेशन एंड्योरिंग फ्रीडम’ शुरू कर दिया। अमेरिका ने तालिबान के दुश्मन, नॉर्दर्न एलायंस के साथ मिलकर तालिबान के ठिकानों पर हमले शुरू कर दिए और ओसामा की तलाश तेज कर दी।

तोरा बोरा की पहाड़ियों

अमेरिकी सेना तालिबान को पीछे धकेल रही थी और ओसामा के लिए छिपना मुश्किल होता जा रहा था। आखिरकार, वह अपने अंगरक्षकों के साथ अफगानिस्तान के तोरा बोरा की पहाड़ियों में चला गया। यह इलाका पाकिस्तान के बॉर्डर के पास था और छिपने के लिए बहुत मुश्किल जगह थी।

यहाँ पहुंचने के बाद ओसामा और उसके साथियों ने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल लगभग बंद कर दिया। वे सिर्फ कभी-कभार असुरक्षित रेडियो ट्रांसमिशन के जरिए बात करते थे। इस वजह से अमेरिका की हाई-टेक जासूसी तकनीकें नाकाम होने लगीं।

कई दिनों तक तलाश के बाद, अमेरिका को तीन-चार ऐसे सुराग मिले जिनसे पता चला कि ओसामा तोरा बोरा में ही है। पहला सुराग था पकड़े गए एक अल-कायदा सदस्य का बयान, जिसने बताया था कि उसने ओसामा को आखिरी बार तोरा बोरा की तरफ जाते हुए देखा था। दूसरा सुराग था अल-कायदा के असुरक्षित रेडियो सिग्नल को इंटरसेप्ट करना, जिसमें तोरा बोरा का नाम सुना गया था। तीसरा सुराग था अल-कायदा के कम्युनिकेशन के तरीके पर स्टडी कर रही टीम का खुलासा। उन्होंने बताया कि पहाड़ी इलाकों में अल-कायदा के सदस्य शीशे के रिफ्लेक्शन से कोड में बात करते थे, और तोरा बोरा की पहाड़ियों में ऐसे रिफ्लेक्शन अक्सर देखे जाते थे।

फिर एक दिन, गलती से ओसामा ने असुरक्षित रेडियो सिग्नल पर बात की और उसकी आवाज रिकॉर्ड हो गई। जलाल नाम का एक एक्सपर्ट, जिसने सात साल तक ओसामा की आवाज पर स्टडी की थी, ने पुष्टि की कि यह ओसामा की ही आवाज है।

इन सभी जानकारियों के बाद, सीआईए की स्पेशल टीम, डेल्टा फोर्स, नॉर्दर्न एलायंस के साथ मिलकर ओसामा को पकड़ने के लिए तोरा बोरा रवाना हुई। उन्होंने कई दिनों तक तोरा बोरा पर भारी बमबारी की, लेकिन ओसामा को पकड़ नहीं पाए।

ओसामा को समझ आ गया था कि वह फंस गया है। उसने उत्तरी गठबंधन के साथ एक असुरक्षित रेडियो ट्रांसमिशन के जरिए बात की और सरेंडर करने की पेशकश की, लेकिन उसने एक दिन के युद्धविराम की मांग की। सीआईए को उस पर भरोसा नहीं था, लेकिन ओसामा ने अपनी बातचीत से उन्हें यकीन दिला दिया कि वह सच में सरेंडर करेगा। 12 दिसंबर को सरेंडर होना था, लेकिन युद्धविराम का फायदा उठाकर ओसामा अपने अंगरक्षकों के साथ घोड़ों और खच्चरों पर पाकिस्तान की तरफ भाग गया। अचानक ओसामा का परिवार भी अफगानिस्तान से गायब हो गया। यह एक बहुत बड़ा मौका था जो अमेरिका के हाथ से निकल गया।

पाकिस्तान में छिपना और नई रणनीति

ओसामा के पाकिस्तान पहुंचने की खबर के बाद, अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ मिलकर उसकी तलाश शुरू कर दी। ओसामा पाकिस्तान के कबायली इलाके FATA में चला गया था। यह इलाका पाकिस्तान का एक अर्ध-स्वायत्त क्षेत्र था जहाँ कबायली कानून चलते थे। यहाँ तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकी संगठनों का दबदबा था, जिन्होंने ओसामा को शरण दी।

पाकिस्तान पहुंचने के बाद ओसामा ने अपनी पूरी रणनीति बदल दी। उसने बाहरी दुनिया से हर तरह का संपर्क काट दिया, यहाँ तक कि अल-कायदा के अपने सदस्यों से भी। किसी को नहीं पता था कि वह और उसका परिवार कहाँ हैं।

ओसामा और उसका परिवार छिपकर रहते थे। उनकी रोजमर्रा की जरूरतें, सुरक्षा और कम्युनिकेशन का सारा काम इब्राहिम अल-कुवैती नाम का एक शख्स देखता था, जो अल-कायदा का सबसे भरोसेमंद आदमी था। ओसामा रेडियो, सैटेलाइट फोन और इंटरनेट से दूर रहता था। वह रोजाना पत्र लिखता था, जिसे इब्राहिम कूरियर के जरिए अल-कायदा तक पहुंचाता था। इन पत्रों पर ओसामा ‘आज़माइश’ नाम से साइन करता था। अगर कोई बहुत जरूरी मैसेज होता था, तो इब्राहिम एक जीमेल अकाउंट के ड्राफ्ट में मैसेज लिख देता था, जिसे अल-कायदा के दूसरे सदस्य उसी अकाउंट में लॉग इन करके पढ़ लेते थे, बिना एक-दूसरे को मैसेज भेजे।

कुछ समय बाद, जब इब्राहिम के लिए अकेले सब कुछ संभालना मुश्किल हो गया, तो उसने अल-कायदा के लीडरशिप से इजाजत लेकर अपने भाई अबरार अल-कुवैती को भी ओसामा का कूरियर बना दिया। लोगों को शक न हो इसलिए इन दोनों की शादी भी करा दी गई ताकि वे एक सामान्य पश्तो परिवार की तरह लगें।

CIA की कोशिशें और बढ़ती निराशा

उधर, अमेरिका में ओसामा को ढूंढने के प्रयास लगातार जारी थे। FATA के पूरे इलाके में ओसामा पर बड़ा इनाम घोषित कर दिया गया। छोटी से छोटी जानकारी देने वाले को भी इनाम देने का ऐलान किया गया, यहाँ तक कि माचिस की डिब्बियों पर भी इनाम छपवा दिया गया।

सीआईए ने कुछ मोबाइल कंपनियों के साथ एक सीक्रेट डील भी की। इसके तहत FATA में बिकने वाले मोबाइल फोन और कंप्यूटर में एक सीक्रेट चिप लगाई जा रही थी, ताकि अल-कायदा के लोगों के फोन खरीदने पर उन्हें ट्रैक किया जा सके। लेकिन ओसामा और उसके साथियों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूरी बनाए रखने के कारण यह कोशिश भी नाकाम रही।

साल बीतते गए और सीआईए की टीम पर ओसामा को ढूंढने का दबाव बढ़ता रहा, लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली।

डबल एजेंट का धोखा और चैपमैन हमला

हताश होकर, सीआईए ने अल-कायदा में अपना आदमी प्लांट करने की कोशिश की। हुमाम अल बल्लावी, उर्फ अबू दुजाना नाम का एक डॉक्टर अल-कायदा से जुड़े होने के शक में पकड़ा गया था। सीआईए ने उसे डबल एजेंट बनने का ऑफर दिया। बल्लावी राजी हो गया और सीआईए ने उसे थोड़ी ट्रेनिंग दी। फिर यह खबर फैला दी गई कि बल्लावी सीआईए की गिरफ्त से भाग गया है। उसका काम था अल-कायदा का भरोसा जीतकर ओसामा के बारे में जानकारी देना।

बल्लावी ने ऐसा ही किया। उसने अल-कायदा का भरोसा जीता और छोटी-मोटी जानकारी देना शुरू किया। कुछ समय बाद उसने सीआईए को बताया कि अल-कायदा को एक डॉक्टर की जरूरत है और उन्हें उस पर बहुत भरोसा हो गया है। उसे अल-कायदा के बड़े लीडर अल जवाहिरी का इलाज करने का काम सौंपा गया। उसने मेडिकल रिपोर्ट भी भेजीं जिससे सीआईए बहुत खुश हुई।

फिर एक दिन बल्लावी ने सीआईए को एक सुरक्षित नेटवर्क के जरिए बताया कि उसे ओसामा के बारे में बहुत अहम जानकारी मिली है, जिससे सीआईए उसे पकड़ सकती है। उसने कहा कि वह मिलकर सारी डिटेल बताएगा, लेकिन फोन पर नहीं। सीआईए ने उसे अपने सबसे सुरक्षित कैंप, चैपमैन में बुलाया। उसी हफ्ते बल्लावी का जन्मदिन भी था और सीआईए की टीम बहुत खुश थी। उन्होंने उसके लिए सरप्राइज केक भी रखा था।

लेकिन बल्लावी डबल एजेंट नहीं बना था। उसने अल-कायदा के साथ मिलकर कैंप के ऑफिसर्स को मारने की साजिश रची थी। कैंप पहुंचते ही उसने खुद को उड़ा लिया। इस धमाके में सीआईए के सात ऑफिसर और कुल सोलह लोग मारे गए। सीआईए के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था। ओसामा की लोकेशन तो नहीं मिली, बल्कि सीआईए की पूरी लीडरशिप खत्म हो गई।

इस घटना के बाद ओसामा को ढूंढने का काम और धीमा हो गया। सीआईए में नए लोग आए। ओसामा की सेहत भी बहुत खराब हो गई थी। अल-कायदा वाले उसके लिए एक सुरक्षित ठिकाना ढूंढ रहे थे।

एबटाबाद में नया ठिकाना

उसी दौरान, उन्हें एबटाबाद में पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी के पास एक प्लॉट पर ‘फॉर सेल’ का बोर्ड दिखा। उन्हें लगा कि मिलिट्री एरिया के पास होने की वजह से ओसामा यहाँ छिप सकता है और किसी को शक नहीं होगा। तुरंत अबरार को भेजा गया और उसने नकली आईडी और कैश देकर वह प्लॉट खरीद लिया।

फिर एक लोकल आर्किटेक्ट को हायर करके घर बनवाना शुरू कर दिया गया। एक साल के अंदर, 2006 तक घर तैयार हो गया और ओसामा, अबरार और इब्राहिम अपने परिवारों के साथ वहां शिफ्ट हो गए। घर के बाहर के सारे काम अबरार और इब्राहिम ही देखते थे, कूरियर बनकर अल-कायदा से संपर्क रखना और आगे की प्लानिंग करना। ओसामा पूरे समय कंपाउंड के अंदर ही छुपा रहता था। अगले पांच साल तक अमेरिका को उसकी कोई खबर नहीं मिली।

खामोशी में दरार: इब्राहिम का फोन कॉल

27 अगस्त, 2010 को सीआईए को बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि इतने सालों से जिस शख्स की वे तलाश कर रहे थे, वह धोखे से ही सही, मिलने वाला है। ओसामा का सबसे भरोसेमंद कूरियर, इब्राहिम, किसी काम से पेशावर शहर गया। पूरे शहर में सीआईए के सिग्नल रडार पर थे। आमतौर पर इब्राहिम ऐसे इलाकों में बात करने के लिए सुरक्षित तरीका इस्तेमाल करता था, लेकिन उस दिन उसने लापरवाही बरती और पब्लिक एरिया में खड़े होकर अपने पर्सनल फोन से अल-कायदा के एक सदस्य से कुछ सेकंड के लिए बात कर ली।

इब्राहिम की इस एक गलती की वजह से सीआईए ने तुरंत उसकी लाइव लोकेशन ट्रैक कर ली। उन्होंने उसे पकड़ा नहीं, बल्कि उसका पीछा करने का फैसला किया ताकि उसके और ठिकानों का पता चल सके। इब्राहिम अपनी सफेद सुजुकी पोर्टो और जीप में बैठकर रवाना हुआ, जिसकी पीछे वाली स्पेयर टायर पर राइनो का निशान बना हुआ था। सीआईए के एजेंट उसका पीछा करते रहे। थोड़ी देर बाद इब्राहिम ने अपनी गाड़ी एबटाबाद के बिलाल टाउन की तरफ मोड़ ली और वहां एक बड़े कंपाउंड के अंदर चला गया।

सीआईए की टीम बाहर रुक गई और आगे क्या करना है इस पर बात करने लगी। उनका मानना था कि सीधे अंदर जाने के बजाय कुछ दिन तक कंपाउंड पर नजर रखी जाए, ताकि पता चल सके कि इब्राहिम कहां-कहां जाता है और शायद उसकी मदद से ओसामा तक पहुंचा जा सके।

जब सीआईए के लोग आपस में बात कर रहे थे, तो उनका ध्यान उस कंपाउंड पर गया जिसमें इब्राहिम घुसा था। कंपाउंड को ध्यान से देखने पर उन्हें वह थोड़ा अजीब लगा। 38000 स्क्वायर फीट में बने उस कंपाउंड में सिर्फ एक मेन गेट था। चारों तरफ 18 फीट ऊंची दीवारें थीं और उनके ऊपर कांटेदार तार लगे थे। ऊपर वाले फ्लोर पर खिड़कियां नहीं थीं और बालकनी में 7 फीट ऊंची दीवार बनी हुई थी। आमतौर पर बालकनी में इतनी ऊंची दीवार कोई नहीं बनवाता।

इन सब चीजों को देखकर उन्हें शक हुआ कि इब्राहिम के लिए इतना इंतजाम नहीं किया गया होगा। जरूर इब्राहिम के साथ कोई बड़ा शख्स है, जो ओसामा तक पहुंचा सकता है। हालांकि, उन्हें यकीन नहीं था कि ओसामा खुद इस कंपाउंड में होगा, क्योंकि वहां से थोड़ी ही दूरी पर पाकिस्तानी मिलिट्री अकादमी थी। उन्हें लगता था कि ओसामा किसी गुफा या पहाड़ी इलाके में छिपा होगा।

अगले दिन सीआईए के लोग फिर से कंपाउंड के पास पहुंचे और अंदर की गतिविधियों पर नजर रखने लगे। जैसे-जैसे उन्हें कंपाउंड के बारे में और जानकारी मिली, वे और हैरान होते गए। उन्हें पता चला कि पिछले पांच साल से इस कंपाउंड में रहने वाले लोग आसपास के घरों के लोगों से बिल्कुल भी मतलब नहीं रखते थे। उस समय घरों में वायर्ड फोन लाइन होती थी, लेकिन इस कंपाउंड में कोई फोन लाइन नहीं थी। वे इंटरनेट या किसी भी तरह की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नहीं कर रहे थे। यह पूरा मिलिट्री एरिया था, फिर भी यहां कोई सर्विलांस कैमरा नहीं लगा था। आसपास के लोगों और बच्चों से पूछताछ करने पर उन्हें पता चला कि कंपाउंड में रहने वाले लोग बहुत अमीर हैं। एक बार क्रिकेट खेलते हुए बच्चों की गेंद कंपाउंड के अंदर चली गई तो उन्होंने गेंद वापस नहीं की, बल्कि उसकी कीमत से दस गुना ज्यादा पैसे दे दिए।

इन सभी जानकारियों के साथ सीआईए के एजेंटों ने अपने डायरेक्टर लियोन पनेटा को एक ईमेल लिखा, जिसका टाइटल था “क्लोजिंग इन ON OSAMA BIN LADEN’S COURIER“। इस ईमेल में उन्होंने लिखा था कि यह कंपाउंड सामान्य नहीं है और उन्हें लग रहा है कि इसके अंदर ओसामा हो सकता है।

लियोन पनेटा को ईमेल मिलते ही उन्होंने एक प्रेजेंटेशन बनाई और राष्ट्रपति बराक ओबामा के पास पहुंचे। उन्होंने ओबामा को कंपाउंड के बारे में बताया और कहा कि टीम को लग रहा है कि इसके अंदर ओसामा हो सकता है और इसके लिए उन्हें बिना पाकिस्तान को बताए पूरे कंपाउंड की जांच शुरू करनी होगी। ओबामा ने कहा कि भले ही यह कंपाउंड पाकिस्तान के अंदर है, वे बिना पाकिस्तान को बताए अपना काम शुरू कर सकते हैं।

व्हाइट हाउस से हरी झंडी मिलते ही सितंबर 2010 से लोग इस कंपाउंड के बारे में जानकारी जुटाने में लग गए। उन्होंने मिलकर एक कॉमन डॉक्यूमेंट बनाया, जिसका नाम था “ANATOMY OF A LEAD“। कंपाउंड से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी इसमें जोड़ी जाती थी। कंपाउंड पर नजर रखते हुए उन्हें यह भी पता चला कि बीच-बीच में कंपाउंड में रहने वाली औरतें एक फोन का इस्तेमाल करके कभी-कभी बात करती हैं और यह झूठ बोलती हैं कि वे कुवैत में हैं, जबकि वे पाकिस्तान के एबटाबाद के उसी कंपाउंड के अंदर थीं। कई दिनों तक यह बेसिक जानकारी दूर से रहकर कंपाउंड पर नजर रखकर इकट्ठा की गई।

नवंबर 2010 में सीआईए की टीम ओबामा के पास पहुंची और कहा कि इस कंपाउंड में ओसामा के होने के बहुत मजबूत चांस हैं और उन्हें इस पर कार्रवाई करनी चाहिए। ओबामा ने पूछा कि यह “मजबूत चांस” कितना मजबूत है, परसेंटेज में बताओ। तब जॉन ने 90%, उनकी टीम ने 80% और सीआईए के डेप्युटी डायरेक्टर माइकल मोरेल ने 60% कहा। ओबामा ने कहा कि यह कंपाउंड पाकिस्तान के अंदर है और कोई भी कार्रवाई करने से पहले और संभावनाएं तलाशनी होंगी। यह भी हो सकता है कि ओसामा की जगह खाड़ी का कोई शेख वहां रह रहा हो या कोई और हो। गलती से भी अगर कोई गलत कार्रवाई हुई तो यह अमेरिका के लिए बहुत बुरा होगा और पाकिस्तान से रिश्ते भी खराब होंगे।

अब सीआईए के एनालिस्ट को समझ आ गया था कि अगर कंपाउंड पर कार्रवाई करनी है तो और जानकारी जुटानी होगी। उन्हें लगने लगा था कि ओसामा अंदर है, लेकिन उन्हें सबूत चाहिए था। इसलिए उन्होंने एबटाबाद के कंपाउंड के पास कुछ OBSERVATION POSTS बनाने और किसी भरोसेमंद लोकल बंदे को शामिल करने का फैसला किया, वरना कंपाउंड की सही जानकारी नहीं मिल पाएगी।

सीआईए की टीम के एक रिटायर्ड पाकिस्तानी आर्मी ऑफिसर, लेफ्टिनेंट कर्नल सईद इकबाल से अच्छे संबंध थे। उन्होंने इकबाल को कंपाउंड के बारे में बताया और सीक्रेटली मदद मांगी। इकबाल का एक दोस्त था, डॉक्टर आमिर अजीज, जिसका घर कंपाउंड से सिर्फ 80 यार्ड की दूरी पर था, और उसकी छत से कंपाउंड के अंदर के कई हिस्से साफ दिखाई देते थे। सीआईए की टीम ने रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल सईद इकबाल को डॉक्टर आमिर के घर भेजा। इकबाल ने आमिर से मिलकर थोड़ी देर बातचीत की, फिर अपने डॉग से मिलने के बहाने छत पर चला गया। छत से उसने कंपाउंड की कई तस्वीरें खींचीं और उन्हें सीआईए को सौंप दिया।

इस कंपाउंड से जुड़ी जितनी भी जानकारी मिल रही थी, उसे इकट्ठा करने का काम सीआईए की एक टीम कर रही थी, जिसे जीना बेनेट लीड कर रही थीं। इस टीम का काम था कंपाउंड का एक सटीक लेआउट बनाना, हर छोटी-बड़ी डिटेल को जोड़कर। उसी हफ्ते, उन्होंने कंपाउंड से एक मील की दूरी पर एक ऑफिस भी किराए पर लिया और उसे सीआईए का सीक्रेट कैंप बना दिया। सारी मीटिंग्स इसी ऑफिस में होती थीं।

इस पूरे इलाके में, कंपाउंड के आसपास, सीआईए के एनालिस्ट लेक्सिस कोच कार में बैठकर घूमते थे ताकि किसी को शक न हो। सीआईए की पूरी टीम हर पल कंपाउंड पर नजर रखती थी। उन्होंने इंफ्रारेड और नाइट विजन कैमरे लगाए थे ताकि थर्मल इमेज और रात की मूवमेंट को ट्रैक किया जा सके। उन्हें कंपाउंड में रहने वालों की दिनचर्या का पूरा पता चल गया था – वे कब खाते हैं, कब सोते हैं और कब बाहर निकलते हैं। कंपाउंड के आसपास के पेड़ों में लिसनिंग डिवाइस भी लगा दिए गए थे ताकि कोई भी बातचीत सुनी जा सके।

दिसंबर 2010 तक, सीआईए को पता चल गया था कि कंपाउंड के अंदर लगभग 20 से 22 लोग रहते हैं, जिनमें उन्हें ओसामा, उसकी तीन पत्नियाँ और बच्चे, और इकबाल और अबरार के परिवार शामिल लग रहे थे।

इसी दौरान, सीआईए की टीम ने एक और महत्वपूर्ण चीज नोटिस की। कंपाउंड के अंदर से रोजाना एक आदमी हस्तलिखित नोट्स भेजता था, जिसे इब्राहिम कूरियर बनकर आगे पहुंचाता था। सीआईए को पूरा यकीन था कि ये नोट्स ओसामा ही लिख रहा होगा, लेकिन उनके पास कोई ठोस सबूत नहीं था। वे बस उसी एक सबूत की तलाश में थे, जिसे यूएसए भेजकर कंपाउंड पर कार्रवाई की जा सके।

दिसंबर के आखिरी हफ्ते में, सीआईए की मॉनिटरिंग टीम ने एक और गतिविधि देखी। कंपाउंड के सबसे ऊपरी फ्लोर पर एक लंबा आदमी बालकनी में आता था और थोड़ी देर तेज वॉक करता था, फिर अंदर चला जाता था। बालकनी में शेड्स लगे होने की वजह से उसका चेहरा दिखाई नहीं देता था, सिर्फ दीवार पर उसकी परछाई दिखती थी। ओसामा की हाइट लगभग 6 फुट 4 इंच थी। सीआईए की टीम ने परछाई के आधार पर उसकी हाइट का अनुमान लगाने की कोशिश की, लेकिन यह एक निश्चित रेंज में नहीं आ पाया।

हालांकि, सीआईए की पूरी टीम इस नतीजे पर पहुंच गई थी कि बालकनी में दिखने वाला लंबा आदमी ही कंपाउंड का हेड है। वह अकेला ऐसा आदमी था जो कंपाउंड के बाकी लोगों से अलग रहता था और किसी की मदद नहीं करता था। इससे उन्हें लगने लगा कि वही ओसामा हो सकता है, जो टॉप फ्लोर पर रह रहा है।

सबूत जुटाने के लिए, सीआईए ने कंपाउंड के सीवेज से डीएनए लेने की योजना बनाई, लेकिन ज्यादा खुदाई और मूवमेंट से शक पैदा होने के डर से इसे रद्द कर दिया गया। इसके बाद, उन्होंने एक और जोखिम भरा तरीका अपनाया।

उन्होंने पाकिस्तान के एक लोकल डॉक्टर, शकील अफरीदी से संपर्क किया। सीआईए की एक ऑपरेटिव, केट, ने डॉक्टर अफरीदी को बताया कि वह ‘सेव द चाइल्ड’ नाम से एक एनजीओ चलाती है और एबटाबाद में गरीब बच्चों के लिए हेपेटाइटिस बी की वैक्सीनेशन कैंपेन चलाना चाहती है। सीआईए का असली मकसद वैक्सीन लगाने के बहाने कंपाउंड में घुसकर डीएनए सैंपल लेना था। डॉक्टर अफरीदी शुरू में राजी नहीं हुए, लेकिन जब उन्हें पैसे का ऑफर मिला, तो वे मान गए। उन्हें बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि वे क्या करने जा रहे हैं।

डॉक्टर अफरीदी ने एक टीम बनाई और कंपाउंड के पास वैक्सीनेशन ड्राइव शुरू कर दी। लेकिन जैसे ही वे कंपाउंड के गेट पर पहुंचे, इब्राहिम ने उन्हें भगा दिया। फोन पर भी कोशिश करने पर कोई फायदा नहीं हुआ। सीआईए का यह प्लान भी फेल हो गया और डॉक्टर अफरीदी को बाद में पाकिस्तान में गिरफ्तार कर लिया गया।

इन नाकाम कोशिशों के बावजूद, सीआईए ने कंपाउंड पर नजर रखना जारी रखा। वहीं कंपाउंड के अंदर, इब्राहिम और अबरार सालों से छिपते-छुपाते थक चुके थे। उनकी सेहत भी खराब हो गई थी।

जैसे-जैसे समय बीत रहा था, राष्ट्रपति ओबामा पर कार्रवाई करने का दबाव बढ़ता जा रहा था। आखिरकार, उन्होंने एक जोखिम भरा फैसला लिया: पाकिस्तान को सूचित किए बिना एबटाबाद कंपाउंड पर एक गुप्त सैन्य हमला करने का आदेश दिया। इस ऑपरेशन का कोडनेम रखा गया “ऑपरेशन नेप्च्यून स्पीयर“।

मई 1, 2011 की रात को, अमेरिकी नौसेना के सील कमांडो की एक टीम हेलीकॉप्टरों में सवार होकर अफगानिस्तान से पाकिस्तान में घुसी। घने अंधेरे में उड़ान भरते हुए, उन्होंने एबटाबाद की ओर रुख किया। ऑपरेशन बेहद गुप्त था।

जैसे ही हेलीकॉप्टर कंपाउंड के ऊपर पहुंचे, कमांडो रस्सियों के सहारे नीचे उतरे। अचानक, एक हेलीकॉप्टर तकनीकी खराबी के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिससे ऑपरेशन की शुरुआत में ही तनाव बढ़ गया। लेकिन सील कमांडो ने अपना आपा नहीं खोया और अपनी योजना के अनुसार आगे बढ़े।

कमांडो ने तेजी से कंपाउंड की दीवारों को पार किया और अंदर घुस गए। गोलियों की आवाजें रात की शांति को चीरती हुई सुनाई दीं। कंपाउंड के अंदर मौजूद ओसामा के अंगरक्षकों ने जवाबी फायरिंग की, लेकिन अमेरिकी कमांडो के पेशेवर रवैये और बेहतर हथियारों के सामने वे टिक नहीं पाए।

अमेरिकी टीम धीरे-धीरे घर के अंदर एक-एक कमरे को साफ करती हुई ऊपर की ओर बढ़ी। तीसरी मंजिल पर, उन्होंने ओसामा बिन लादेन का सामना किया। कुछ ही क्षणों में, दुनिया का सबसे वांछित आतंकवादी मारा गया। ऑपरेशन लगभग 40 मिनट तक चला।

ओसामा की मौत की पुष्टि के बाद, अमेरिकी टीम ने उसके शरीर और कंपाउंड से मिली महत्वपूर्ण दस्तावेजों को अपने कब्जे में लिया। फिर वे हेलीकॉप्टरों में सवार होकर वापस अफगानिस्तान लौट गए।

अगले दिन, राष्ट्रपति ओबामा ने व्हाइट हाउस से एक टेलीविजन संबोधन में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने की घोषणा की। इस खबर से पूरी दुनिया में सनसनी फैल गई। संयुक्त राज्य अमेरिका में लोगों ने सड़कों पर उतरकर खुशी मनाई।

हालांकि, ओसामा की मौत के बाद भी आतंकवाद का खतरा पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ था। लेकिन ओसामा बिन लादेन का मारा जाना निश्चित रूप से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

ओसामा के मारे जाने के बाद, डॉक्टर शकील अफरीदी को पाकिस्तान में गिरफ्तार कर लिया गया और देशद्रोह के आरोप में जेल में डाल दिया गया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी रिहाई के लिए कई अपीलें की गईं, लेकिन आज भी उनकी स्थिति अनिश्चित है।

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