Case 2 The Madhavi Murder Mystery: रिश्तों का कत्ल और हैवानियत की दास्तान

Madhavi Murder Mystery

कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो दिल को झकझोर कर रख देती हैं… रिश्तों की शक्ल में छुपे वो राज़, जिनका पर्दाफाश होना लाज़मी है।

मैं हूँ सुधांशु, और आप देख रहे हैं एक ऐसी कहानी... जो सिर्फ़ एक मर्डर मिस्ट्री नहीं — बल्कि रिश्तों के नाम पर हुई एक हैवानियत की दास्तान है। Case 2 The Madhavi Murder Mystery

भाग 1: गुमशुदा पत्नी की तलाश

अठारह जनवरी दो हज़ार पच्चीस की दोपहर के तीन बजे, हैदराबाद के मीरपेट पुलिस स्टेशन का माहौल तनावपूर्ण था। गुरुमूर्ति, एक घबराया हुआ व्यक्ति, अपने ससुराल वालों के साथ थाने में दाखिल हुआ। उसने पुलिस अधिकारी से अपनी पत्नी माधवी के बारे में बताया, जो घर से जाने के बाद से लापता थी। माधवी की माँ ने पुलिस को बताया कि सोलह जनवरी को, दो दिन पहले, जब उन्होंने माधवी को फोन किया तो उसने जवाब नहीं दिया। उन्होंने सोचा कि शायद संक्रांति के त्योहार की तैयारियों में वह व्यस्त होगी। लेकिन पूरा दिन बीत जाने के बाद भी माधवी का कोई संदेश नहीं आया, तो उन्होंने अगले दिन फिर से उसे फोन किया। इस बार भी उनकी बेटी से बात नहीं हो पाई।

माधवी अपनी माँ को रोज़ाना फोन करती थी, इसलिए जब दो दिन तक उनसे कोई संपर्क नहीं हुआ, तो उनकी चिंता बढ़ने लगी। अपनी बेटी का हाल जानने के लिए उन्होंने अपने दामाद गुरुमूर्ति को फोन किया। गुरुमूर्ति ने उन्हें बताया कि माधवी उससे झगड़ा करके घर छोड़ गई है और शायद अपने मायके चली गई होगी। माधवी को घर से निकले दो दिन हो गए थे, लेकिन न तो वह अपने मायके पहुँची थी और न ही उसने किसी को फोन किया था। माधवी के माता-पिता को डर सताने लगा कि कहीं उनकी बेटी के साथ कोई अनहोनी न हो गई हो। किसी अपने का अचानक गुम हो जाना बेचैनी और डर पैदा करता है, लेकिन जब गुमशुदगी के साथ सवालों के जवाब अधूरे लगने लगें, तो शक गहराने लगता है। यही वजह थी कि अपनी बेटी की फिक्र में वे तुरंत अंध्याल से तीन सौ किलोमीटर दूर जिलेला गुणा स्थित अपनी बेटी के घर के लिए रवाना हुए और वहाँ पहुँचकर अपने दामाद गुरुमूर्ति के साथ पुलिस स्टेशन में माधवी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई। यह दिखने में तो एक गुमशुदगी की शिकायत थी, लेकिन हकीकत इससे कहीं ज़्यादा जटिल थी।

भाग 2: शक की सुई और गुरुमूर्ति का बयान

माधवी को आखिरी बार गुरुमूर्ति ने ही देखा था, इसलिए पुलिस ने उससे पूछताछ शुरू की। गुरुमूर्ति ने पुलिस को बताया कि माधवी दो दिन से अपने मायके जाने की जिद कर रही थी, लेकिन वह चाहता था कि संक्रांति का त्योहार सब साथ में उसकी बहन के घर मनाएं, क्योंकि उसके बच्चे भी त्योहार की वजह से अपनी बुआ के घर बदनपेट में रुके हुए थे। इसी सोच के चलते गुरुमूर्ति ने उसे मायके जाने से मना कर दिया था। लेकिन यह बात माधवी को पसंद नहीं आई और गुस्से में वह झगड़ा करके घर छोड़ चली गई। तेलंगाना में संक्रांति का त्योहार चार दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है, इसलिए ऐसे माहौल में माधवी का नाराज़ होकर घर से चले जाना गुरुमूर्ति को और गुस्सा दिला गया, और उसने माधवी को जाने से भी नहीं रोका।

गुरुमूर्ति ने पुलिस को आगे बताया कि जब घंटों बाद भी माधवी वापस नहीं लौटी, तो वह देर रात अपने बच्चों को बहन के घर से अकेले लेने चला गया। बच्चों ने घर आकर जब अपनी माँ के बारे में पूछा, तो उसने झूठ कह दिया कि माँ अपनी दोस्त के घर गई है, ताकि बच्चे बेवजह परेशान न हों। उसे लगा कि माधवी कहीं भी गई हो, लेकिन वह बच्चों का सोचकर घर लौट ही आएगी। इसलिए उसने माधवी के बारे में पता नहीं लगाया। लेकिन अगले दिन सुबह होते ही उसने माधवी को फोन किया, पर उसका फोन नहीं लगा। इस पर उसे लगा कि माधवी ने गुस्से में अपना फोन स्विच ऑफ कर लिया होगा। इसके बाद वह रोज़ की तरह कंचन बाग़ में स्थित DRDO टाउनशिप में, जहाँ वह सुरक्षा गार्ड की नौकरी करता था, काम करने के लिए निकल गया। शाम को शिफ्ट खत्म होने के बाद जब वह घर लौटा, तो उसे उम्मीद थी कि माधवी अब तक घर आ चुकी होगी, लेकिन अब भी घर पर माधवी को न पाकर उसका दिल भारी हो गया और उसने तुरंत एक बार फिर माधवी को फोन किया, पर अब भी उसका फोन नॉट रीचेबल आ रहा था। मन में बेचैनी और बुरे ख्याल आने के चलते, वह माधवी के बारे में जैसे ही पता करने के लिए रिश्तेदारों को फोन करने वाला था, उतने में ही माधवी की माँ का फोन उसके पास आ गया। गुरुमूर्ति और माधवी के माता-पिता के बयान से तो पुलिस को यह एक गुमशुदगी का मामला लग रहा था। गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस मामले की जाँच कर ही रही थी कि तभी कहानी में एक नए किरदार के आने से पुलिस के सामने माधवी से जुड़े कुछ ऐसे खुलासे हुए जिसे सुनकर पुलिस के पैरों तले ज़मीन खिसक गई, क्योंकि इन खुलासों ने इस मामले को एक गुमशुदा व्यक्ति के मामले से कहीं ज़्यादा संगीन बना दिया था, और अब एक ऐसा राज़ सबके सामने आने वाला था जिसने न सिर्फ मीरपेट को बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया।

भाग 3: अतीत के पन्ने और अनसुलझे सवाल

गुरुमूर्ति और वेंकटा माधवी की शादी दो हज़ार बारह में हुई थी, और शादी के बाद दोनों आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले में बस गए थे। उनके दो बच्चे थे, एक बेटा और एक बेटी। उस समय गुरुमूर्ति सेना में नायब सूबेदार के पद पर था और माधवी गृहिणी थी। सेना में सत्रह साल नौकरी करने के बाद गुरुमूर्ति सेवानिवृत्त होकर साल दो हज़ार बीस में अपने परिवार के साथ हैदराबाद के जिलेला गुणा की वेंकटेश्वरा कॉलोनी में शिफ्ट हो गया और यहाँ पर उस दो मंजिला घर में किराए पर रहने लगा। गुरुमूर्ति के अनुसार, सोलह जनवरी दो हज़ार पच्चीस को पति-पत्नी के बीच होने वाली एक आम सी नोंकझोंक के बाद माधवी गुस्से में घर से चली गई थी। शुरू में तो यह एक मामूली सा घरेलू झगड़ा लग रहा था, लेकिन पुलिस के सामने अहम सवाल थे, जैसे कि क्या माधवी वाकई गुस्से में घर छोड़ चली गई थी या फिर यह कहानी जितनी दिख रही थी उससे कहीं ज़्यादा गहरी थी। पुलिस की जाँच में सबसे पहले गुरुमूर्ति के आस-पड़ोस में रहने वाले लोगों से पूछताछ शुरू की गई। वहाँ से उन्हें पता चला कि उनमें से किसी ने भी माधवी को नहीं देखा था। बल्कि उन्हें तो यह भी नहीं पता था कि माधवी लापता है, क्योंकि संक्रांति की वजह से कुछ लोग अपने गाँव गए हुए थे, और जो लोग मोहल्ले में मौजूद भी थे, उन्हें गुरुमूर्ति के परिवार के बारे में कुछ खास पता नहीं था, क्योंकि पाँच साल यहाँ रहने के बाद भी गुरुमूर्ति के परिवार ने किसी से मेलजोल नहीं रखा था और न ही उनके बच्चे मोहल्ले के बच्चों के साथ खेला-कूदा करते थे। गुरुमूर्ति के परिवार का इस कदर अलग-थलग रहना पुलिस के लिए अटपटा सा था, लेकिन इससे भी ज़्यादा हैरान कर देने वाले खुलासे से पुलिस को अब रूबरू होना था, क्योंकि जिस किरदार का ज़िक्र हमने पहले किया था, वह शख्स कोई और नहीं बल्कि माधवी के मामा थे, जिन्होंने पुलिस स्टेशन आकर इस केस से जुड़े ऐसे खुलासे किए जिसने सबको हैरानी में डाल दिया।

भाग 4: मामा का सनसनीखेज खुलासा और सीसीटीवी फुटेज का सच

माधवी के मामा ने पुलिस को बताया कि माधवी अब कभी नहीं लौटेगी, क्योंकि गुरुमूर्ति ने उसे मार डाला है, और यह सब गुरुमूर्ति ने उनसे खुद बोला है। वैसे भी, ऐसे मामलों में पहला शक पीड़ित के साथी पर ही जाता है। इसलिए उनकी बातों में कितनी सच्चाई है, इसकी तह तक जाने के लिए पुलिस ने जिलेला गुड़ा में चल रही जाँच को और तेज़ कर दिया। पुलिस की नज़र गुरुमूर्ति के घर के सामने वाले घर में लगे एक सीसीटीवी कैमरे पर पड़ती है।

सच की तलाश में पुलिस सीसीटीवी फुटेज खंगालना शुरू करती है और पाती है कि पंद्रह जनवरी की रात दस बजकर इकतालीस मिनट पर गुरुमूर्ति और माधवी साथ में घर आते दिख रहे हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात यह थी कि आगे की तारीखों की किसी भी फुटेज में माधवी घर से बाहर निकलते नहीं दिखी। यानी माधवी घर के अंदर तो गई थी, पर कभी बाहर नहीं निकली थी। पुलिस को लग गया कि हो न हो उस घर में ही कुछ गड़बड़ हुई है। माधवी के मामा के दिए गए बयान के साथ पुलिस के सामने कई सवाल थे कि अगर माधवी सोलह जनवरी से गायब थी, तो फिर गुरुमूर्ति ने गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करने में इतनी देर क्यों की? और अगर माधवी बाहर नहीं गई, तो फिर आखिर वह है कहाँ? क्योंकि उस घर में जाने और निकलने का तो सिर्फ एक ही रास्ता है। इन सभी सवालों के जवाब के लिए पुलिस गुरुमूर्ति को पुलिस स्टेशन बुलाती है और उसे पूछताछ करना शुरू करती है।

भाग 5: कबूलनामे की काली रात और हैवानियत का नंगा नाच

शुरू में गुरुमूर्ति पुलिस को बार-बार गुमराह करने की कोशिश करता है, लेकिन पुलिस जब फुटेज दिखाकर उस पर दबाव डालती है, तो वह टूटकर सच उगलना शुरू करता है। लेकिन उसका बोला एक-एक शब्द सिर्फ एक कबूलनामा नहीं, बल्कि हैवानियत की एक ऐसी दास्तान है जो यह दिखाती है कि इंसान किस हद तक गिर सकता है। गुरुमूर्ति पुलिस को बताता है कि सोलह जनवरी की सुबह आठ बजे से ही माधवी फिर से अपने घर जाने की ज़िद करने लगी, लेकिन उसने साफ-साफ कह दिया कि वह अपने घर नहीं जाएगी, बल्कि उसकी बहन सुजाता के घर चलेगी, और इसी बात को लेकर दोनों के बीच बहस होने लगी।

यहाँ तक सब वैसे ही हुआ था जैसे गुरुमूर्ति ने पहले भी पुलिस को बताया था। लेकिन इसके बाद चीजें पूरी तरह से बदलने वाली थीं। गुरुमूर्ति आगे बताता है कि दोनों के बीच बहस बढ़ती चली गई और गुस्से में माधवी ने अपना मंगलसूत्र उतारकर उसके मुँह पर मार दिया। गुरुमूर्ति, जो पहले से ही बहुत गुस्से में था, उसकी अब तो अहंकार भी आहत हो गया और वह अपना आपा खो बैठा। वह माधवी की गर्दन पकड़कर उसका सर इतनी ज़ोर से दीवार पर मारता है कि उसके प्रभाव से माधवी तुरंत ही बेहोश हो जाती है। माधवी की उखड़ती साँसों के बीच वह उसका गला पकड़कर ज़ोर से दबाने लगता है और तब तक नहीं रुकता जब तक वह यह सुनिश्चित नहीं कर लेता कि माधवी मर चुकी है। अपनी पत्नी को मौत के घाट उतारने के बाद उसे डर लगने लगा कि कहीं उसके बच्चों को इस बारे में पता न चल जाए, जो उस वक़्त अपनी बुआ के घर में थे। इसलिए अब वह कैसे भी करके माधवी की लाश को ठिकाने लगाना चाहता था, इस तरह से कि कभी किसी को माधवी की लाश न मिले, क्योंकि बिना डेड बॉडी के जुर्म साबित करना लगभग असंभव हो जाएगा। माधवी को मारकर वह बचने की तरकीब सोच ही रहा होता है कि उसे मलयालम फिल्म ‘दृश्यम’ का एक दृश्य याद आता है, जिसमें एक भाई अपनी बहन को मारने के बाद केमिकल का इस्तेमाल करके उसकी बॉडी को पूरी तरह से गला देता है और फिर उसे टॉयलेट में फ्लश कर देता है। इस फिल्म से गुरुमूर्ति को माधवी की लाश ठिकाने लगाने की तरकीब तो समझ आ गई थी, लेकिन उसके पास वह केमिकल नहीं था जिससे लाश को गलाया जा सके।

इसलिए गुरुमूर्ति ने इंटरनेट पर ऐसे तरीकों को खोजना शुरू किया जिससे वह घर में मौजूद चीजों का इस्तेमाल करके बॉडी को डिस्पोज कर सके। घंटों नेट पर खोज करने के बाद आखिरकार वह माधवी की लाश बाथरूम में लेकर जाता है और उसके शरीर से कपड़े उतारने के बाद किचन के चाकू से माधवी की बॉडी को चार अलग-अलग हिस्सों में काटकर उनके छोटे-छोटे टुकड़े करना शुरू करता है। कुछ टुकड़ों को वह वॉटर हीटर से उबालता है तो कुछ को वह सीधे स्टोव में रोस्ट करता है। गुरुमूर्ति के अंदर का इंसान तो कब का मर चुका था, क्योंकि जिसके साथ आपने अपनी ज़िंदगी के इतने साल बिताए हों, उसके साथ ऐसा सलूक तो सिर्फ कोई हैवान ही इतनी आसानी से कर सकता था। वह यह सब कर ही रहा होता है कि बॉडी को उबालते-उबालते घर में बदबू फैलने लग जाती है। बदबू इतनी तेज़ थी कि गुरुमूर्ति को मजबूर होकर किचन की खिड़की खोलनी पड़ती है, लेकिन खिड़की खोलने से बदबू अगल-बगल के घरों तक पहुँचने लगती है, जिससे परेशान होकर पड़ोसी अपने घर से बाहर निकल आते हैं और देखते हैं कि गुरुमूर्ति के घर से धुएँ के साथ यह स्मेल फैल रही है। जब वे गुरुमूर्ति से इस बारे में सवाल करते हैं, तो वह उन्हें कहता है कि वह ‘तलकाया कूड़ा’ यानी मटन करी बना रहा है और यह स्मेल बकरे के सिर को पकाने की है। उनके पास शक करने की कोई वजह तो थी नहीं, इसलिए वे सभी वापस अपने घर लौट जाते हैं। गुरुमूर्ति बड़ी चालाकी से इस बहाने से बाल-बाल बच जाता है और अंदर आकर वापस किचन में बॉडी पार्ट्स को पकाने लगता है। उबलने की वजह से मांस बड़ी आसानी से हड्डियों से अलग हो जाता है, और फिर वह उन्हीं सॉफ्ट हड्डियों को मूसल से पीसकर पाउडर बना लेता है। मांस को वह जहाँ कई बार टॉयलेट में फ्लश करता है, वहीं हड्डियों के चूरे को पेंट की एक खाली बाल्टी में डालकर घर से चार किलोमीटर दूर जेरेलागुड़ा झील में जाकर बहा देता है। बॉडी को पूरी तरह से डिस्पोज कर वह घर वापस लौटता है और डिटर्जेंट और फिनाइल से तब तक घर की सफाई करता है जब तक खून के निशान पूरी तरह से मिट नहीं जाते। इसके बाद वह घर में फैली बदबू को हटाने के लिए हर जगह रूम फ्रेशनर से स्प्रे कर देता है। इतना सब करके गुरुमूर्ति अब किसी भी तरह की कोई गलती नहीं करना चाहता था, इसलिए वह घर का एक-एक कोना चेक करता है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि कहीं कुछ रह न गया हो, और संतुष्ट होने के बाद उस बेडरूम को लॉक कर देता है जहाँ उसने लाश को काटा था। माधवी का नामोनिशान मिटाने के बाद वह देर रात अपनी बहन के घर जाकर अपने बच्चों को घर वापस ले आता है।

यह पूरा वाकया गुरुमूर्ति ने बिना किसी पछतावे और अपराधबोध के पुलिस के सामने कबूल कर लिया था।

भाग 6: सबूतों की तलाश और कानूनी शिकंजा

गुरुमूर्ति के इस कबूलनामे के बाद पुलिस की टीम तुरंत उसके घर जाकर सबूत इकट्ठा करना शुरू करती है। एफएसएल टीम ब्लू रेड टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करती है ताकि क्राइम सीन पर मौजूद उन खून के धब्बों, उंगलियों के निशानों या शारीरिक द्रवों को स्पॉट किया जा सके जो कोई व्यक्ति अपनी नग्न आँखों से नहीं देख सकता। तीन घंटे घर में जाँच करने के बाद एफएसएल की टीम को बाथरूम से कुछ खून के नमूने मिलते हैं, जिन्हें फॉरेंसिक लैब में जाँच के लिए भिजवा दिया जाता है। इसके अलावा पुलिस गुरुमूर्ति के घर से चाकू, स्टोव, बाल्टी जैसे सोलह सबूत इकट्ठा कर उन्हें जाँच के लिए भेज देती है।

यह केस मीरपेट कुकर केस के नाम से मशहूर हो गया, क्योंकि शुरुआत में हर जगह मीडिया में यह खबर आ रही थी कि गुरुमूर्ति ने कुकर में बॉडी पार्ट्स को उबाला था। लेकिन बाद में पुलिस ने अपनी जाँच में यह खुलासा किया कि इसमें कुकर का कोई कनेक्शन नहीं है। बल्कि उनकी सोलह सबूतों की सूची में इसे शामिल तक नहीं किया गया है। पुलिस की एक टीम ने जिलिला बुड़ा झील में भी कई दिनों तक माधवी की बॉडी के अवशेषों को बड़े पैमाने पर तलाशा। पुलिस ने बताया कि उन्हें कुछ मजबूत सबूत तो मिल गए थे, लेकिन गुरुमूर्ति पहले भी जाँच के दौरान कई बार उन्हें गुमराह कर चुका था, इसलिए पुलिस गुरुमूर्ति को एक या दो बार नहीं बल्कि तीन बार क्राइम सीन रिकंस्ट्रक्ट कराने के लिए ले जाती है।

गुरुमूर्ति के इस क्रूर अपराध की सज़ा वह छोटे बच्चे भुगत रहे थे जो अब अपनी माँ को खो चुके थे। पुलिस जब उन बच्चों से सवाल करती है, तो वे उन्हें बताते हैं कि जब उनके पिता उन्हें घर लेकर आए थे, तो उन्हें घर में अजीब सी स्मेल आ रही थी और साथ ही उन्हें अपनी माँ कहीं नज़र नहीं आ रही थी। उन बच्चों को नहीं पता था कि उनकी माँ को मारने वाला उनका ही पिता था। इसलिए जब वे गुरुमूर्ति से पूछते हैं कि उनकी माँ कहाँ है, तो वह झूठ बोल देता है कि उनकी माँ अपने दोस्त के घर गई हुई है। बच्चों से पूछताछ के बाद पुलिस बच्चों और माधवी की माँ के डीएनए सैंपल इकट्ठा कर जाँच के लिए भेज देती है ताकि क्राइम सीन पर मिले खून के नमूने और डीएनए से उन्हें मैच किया जा सके।

इस केस को हर एंगल से इन्वेस्टिगेट करने के बाद पुलिस का मानना है कि यह क्राइम मोमेंट ऑफ एंगर में नहीं बल्कि प्रीप्लान्ड है। उनका कहना है कि गुरुमूर्ति माधवी को मारने की फिराक में पहले से ही लगा हुआ था और सिर्फ एक सही मौके की तलाश में था, और वह मौका उसे संक्रांति के त्योहार पर मिला, जब आस-पड़ोस के लोग और मकान मालिक सब अपने गाँव जा चुके थे। गुरुमूर्ति सारी साजिशें तो रच चुका था। बस दिक्कत यह थी कि अगर वह माधवी को घर पर मारता तो उसके बच्चे भी इस कत्ल के चश्मदीद गवाह बन जाते। इसलिए गुरुमूर्ति बच्चों को चौदह तारीख को ही अपनी बहन के घर छोड़ माधवी के साथ अकेले घर लौट आता है, जिसके बाद उसने मौका पाकर इस घिनौने अपराध को अंजाम दिया। पुलिस के हिसाब से यह एक प्रीप्लान्ड मर्डर है, पर इस मर्डर के पीछे उन्होंने कोई क्लियर मोटिव नहीं दिया है। जबकि कई न्यूज़ मीडिया में यह खबर आ रही है कि गुरुमूर्ति का माधवी के क्लोज रिलेटिव से एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर चल रहा था, जिसके बारे में माधवी को पता चल गया था और इसी वजह से माधवी और गुरुमूर्ति के बीच आए दिन लड़ाई होती रहती थी। यही वजह थी कि गुरुमूर्ति माधवी को मारकर रास्ते से हटाना चाहता था ताकि वह उस लड़की के साथ ज़िंदगी बिता सके, लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है इसका अब शायद ही कोई खुलासा हो पाए। पुलिस के सामने गुरुमूर्ति ने जुर्म तो कबूल कर लिया, लेकिन उसकी बातों में कितनी सच्चाई है वह तो गुरुमूर्ति ही जानता है, क्योंकि वह उम्मीद से कहीं ज़्यादा शातिर है। मर्डर केसेस में विक्टिम की बॉडी एक बड़ा पहलू होती है एक्यूस्ड को सज़ा दिलाने के लिए, और इस केस में इन्वेस्टिगेटिंग टीम को माधवी की बॉडी को लेकर कोई कंक्लूसिव एविडेंस हाथ नहीं लगा है। उन्हें खून के नमूने तो मिले हैं, पर क्या वह माधवी के ही हैं? यह तो वह डीएनए रिपोर्ट ही बता पाएगी। अगर डीएनए सैंपल मैच नहीं होते हैं, तो माधवी कानून की नज़र में एक मिसिंग केस बनकर रह जाएगी, और अगर मैच हो भी जाते हैं, तो भी यह ज़रूरी नहीं कि गुरुमूर्ति को सज़ा मिल ही जाए। फिलहाल पुलिस ने गुरुमूर्ति पर बीएनएस के सेक्शन 302 (हत्या), सेक्शन 201 (सबूत मिटाना) और सेक्शन 85 (आपराधिक धमकी) के तहत चार्जेस प्रेस किए हैं। जिस आदमी के साथ माधवी ने सात जन्मों की कसमें खाई थी, उसने एक नहीं दो कत्ल किए थे। पहले उसने अपने अंदर के पति को खत्म किया और फिर हैवानियत की चादर ओढ़कर उसने माधवी और उसके साथ खाई कसमों का दुनिया से ही नामोनिशान मिटा दिया।

इंसान और हैवान में बस एक सोच का फर्क होता है, और जब यह सोच मर जाती है तो फिर नफरत की कोई हद नहीं रहती। गुरुमूर्ति एक हैवान पति के साथ-साथ एक निर्जीव पिता भी था जिसे अपने बच्चों की माँ का कत्ल करने से पहले अपने बच्चों का भी ख्याल नहीं आया। उल्टा वह उसी शाम बच्चों को उसी घर वापस लेकर आया जहाँ उसने उनकी माँ का खून किया था। बच्चे अपने पिता की दरिंदगी से अनजान उसी कमरे में खेल रहे थे जहाँ उनकी माँ के टुकड़े किए गए थे, उसी किचन में खाना खा रहे थे जहाँ उनकी लाश के हिस्सों को उबाला गया था, और वह उसी पिता का हाथ पकड़कर चल रहे थे जिन हाथों से उसने उनकी माँ की यूँ बेरहमी से हत्या की थी।

गुरुमूर्ति ने अपना केस खुद लड़ने की माँग की है। उसे विश्वास है कि कानूनी दांव-पेंच से वह बच सकता है, क्योंकि कानून तो सबूत और गवाह माँगता है। भले ही उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया हो, लेकिन बिना ठोस सबूतों के, खासकर माधवी के शरीर के अवशेषों के बिना, उसे सज़ा दिलाना पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। डीएनए रिपोर्ट का इंतज़ार है, जो यह साबित कर सकती है कि क्राइम सीन से मिले खून के नमूने माधवी के ही थे। अगर डीएनए मैच नहीं होता है, तो यह केस कानून की नज़र में सिर्फ एक गुमशुदगी का मामला बनकर रह जाएगा, और गुरुमूर्ति शायद अपने किए की सज़ा से बच जाए।

लेकिन अगर डीएनए रिपोर्ट मैच होती है, तो भी गुरुमूर्ति को सज़ा मिलना आसान नहीं होगा। बचाव पक्ष कानूनी कमज़ोरियों का फायदा उठाने की कोशिश करेगा, और यह साबित करने की कोशिश करेगा कि गुरुमूर्ति ने गुस्से के आवेश में आकर यह अपराध किया था, न कि यह एक सोची-समझी साजिश थी। अदालत में लंबी कानूनी लड़ाई चलेगी, जिसमें सबूतों, गवाहों और कानूनी तर्कों को परखा जाएगा।

इस बीच, माधवी के माता-पिता और बच्चे एक भयानक सदमे से गुज़र रहे हैं। उन्होंने अपनी बेटी और माँ को खो दिया है, और उन्हें यह जानकर और भी ज़्यादा दुख हुआ कि उनका अपना ही दामाद और पिता इस जघन्य अपराध का दोषी है। उनके लिए इंसाफ की उम्मीद ही इस मुश्किल वक़्त में जीने का सहारा है।

यह मीरपेट हत्याकांड एक दर्दनाक कहानी है जो रिश्तों के टूटने, गुस्से के अंधेपन और हैवानियत की उस हद को दिखाती है जहाँ इंसान इंसानियत को भी भूल जाता है। इंसाफ मिलेगा या नहीं, यह तो भविष्य बताएगा, लेकिन इस घटना ने समाज में एक गहरा सवाल ज़रूर खड़ा कर दिया है कि आखिर रिश्तों में इतनी कड़वाहट और नफरत कैसे भर जाती है कि एक इंसान दूसरे की जान लेने पर भी उतारू हो जाता है।