क्या पाकिस्तान न्यूक्लियर हमला कर सकता है? जानिए 3 बड़े कारण क्यों यह मुमकिन नहीं है

Part 1: न्यूक्लियर साए में पहलगाम — क्या पाकिस्तान करेगा एटमी हमला?
जब पाकिस्तान के मंत्री ने खुलेआम भारत को धमकी दी — “130 एटम बम सिर्फ हिंदुस्तान के लिए रखे हैं”
सालों से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कोई नई बात नहीं रही, लेकिन हाल ही में पहलगाम में हुए टकराव ने दोनों देशों के बीच की कड़वाहट को फिर से खतरनाक मोड़ पर ला खड़ा किया है। और इस बार, पाकिस्तान की ओर से जो बयान आया है, उसने पूरे उपमहाद्वीप को सन्न कर दिया।
पाकिस्तान के मंत्री हनीफ अब्बासी ने खुलेआम मीडिया में कहा —
“हमारे पास होरी, शाहीन, गजनवी जैसे 130 न्यूक्लियर वेपन्स हैं — और ये सभी के सभी सिर्फ़ और सिर्फ़ हिंदुस्तान के लिए रखे गए हैं। कोई और गलतफहमी में न रहे। तमाशा सिर्फ हमारे साथ करने की भूल न करे।”
यह कोई पहली बार नहीं था जब पाकिस्तान की तरफ से इस तरह की धमकी दी गई हो। लेकिन इस बार लहजा बदला हुआ था — सीधा, उग्र और पूरी दुनिया को चौंका देने वाला।
अब्बासी ने आगे कहा कि ये हथियार सिर्फ दिखावे के लिए नहीं, बल्कि एक्शन के लिए हैं। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि पाकिस्तान के किसी भी कोने में ये न्यूक्लियर हथियार छुपाए गए हैं — और भारत को इसका अंदाज़ा भी नहीं है कि वह कब, कहां से, और कैसे हमला झेल सकता है।
इतना ही नहीं — उन्होंने शहीद जुल्फिकार अली भुट्टो का नाम लेते हुए दावा किया कि पाकिस्तान को न्यूक्लियर ताकत देने का श्रेय उन्हें ही जाता है। और आज, यदि भारत पाकिस्तान का पानी रोकता है — जैसा कि भारत ने सिंधु जल संधि के तहत कुछ एक्शन लेकर किया भी है — तो पाकिस्तान फुल स्केल वॉर छेड़ देगा।
यह बयान अकेले अब्बासी तक सीमित नहीं था। पाकिस्तान के डिफेंस मिनिस्टर तक ने कहा:
“अगर भारत हम पर सैन्य कार्रवाई करता है, तो हम आखिरी हथियार के तौर पर न्यूक्लियर अटैक ज़रूर करेंगे।“
इस बयानबाज़ी के पीछे एक और गुस्सा था — सिंधु नदी को लेकर। पाकिस्तान के नेताओं का कहना था:
“सिंधु हमारा है और हमारा ही रहेगा। अगर हमारा पानी रोका गया, तो या तो उनका खून बहेगा, या हमारा पानी बहेगा।”
यह सब सुनकर सवाल उठता है — क्या पाकिस्तान वास्तव में न्यूक्लियर बटन दबा सकता है?
या यह सिर्फ़ राजनीतिक प्रोपेगैंडा है?
या फिर यह बयान, उस गहरी बौखलाहट की निशानी है, जो पाकिस्तान की भीतरू राजनीतिक अस्थिरता से पैदा हो रही है?
आगे के पार्ट्स में हम इसी सवाल के जवाब तलाशेंगे — सैन्य शक्ति की तुलना से लेकर, पाकिस्तान की आंतरिक हालत, भारत की तैयारियों और दुनिया की प्रतिक्रिया तक।
Part 2: कितनी खतरनाक है पाकिस्तान की एटमी ताक़त?
अगर हमला हुआ, तो पाकिस्तान के कौन–कौन से हथियार भारत को निशाना बना सकते हैं?
पहलगाम की गूंज अब भी सरहदों के आर–पार गूंज रही है, लेकिन उससे पहले हमें एक बुनियादी सवाल का जवाब ढूंढना होगा —
क्या पाकिस्तान वाकई भारत पर न्यूक्लियर हमला कर सकता है?
जवाब देने से पहले ज़रूरी है कि हम उसकी न्यूक्लियर कैपेबिलिटी को गहराई से समझें।
▶ पाकिस्तान के पास कितने एटम बम हैं?
वर्तमान में पाकिस्तान के पास एक तीन–स्तरीय न्यूक्लियर आर्सेनल है — यानी ज़मीन, हवा और समंदर से लॉन्च होने वाले एटम बम:
- 36 Airborne Missiles — जो लड़ाकू विमानों से छोड़े जाते हैं
- 126 Land-based Missiles — जो mobile launchers या underground silos से दागे जा सकते हैं
- 8 Sea-based Missiles — जो पनडुब्बियों या जहाजों से launch किए जाते हैं
हर मिसाइल की ताकत कम से कम 12 किलोटन होती है — यानी हिरोशिमा पर गिराए गए बम जितनी तबाही!
इन मिसाइलों की रेंज:
- Shaheen-1: 200–750 किलोमीटर — दिल्ली को मिटाने के लिए काफ़ी
- Ghaznavi: 290 किलोमीटर — उत्तर भारत के शहर इनके निशाने पर
- Shaheen-3: 2,750 किलोमीटर — ये सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि इज़राइल तक को टारगेट कर सकता है (Washington Post)
अगर Sargodha जैसे लॉन्च साइट्स से मिसाइल छोड़ी जाए, तो दिल्ली, जयपुर, पटना, लखनऊ जैसे शहर मिनटों में तबाह हो सकते हैं।
▶ लेकिन क्या पाकिस्तान ये कर सकता है? सवाल सिर्फ ताकत का नहीं है…
एक न्यूक्लियर हमला सिर्फ़ हथियारों का सवाल नहीं होता, बल्कि उसमें शामिल होते हैं तीन बहुत बड़े फैक्टर्स:
1. क्या पाकिस्तान इसे Nationally अफोर्ड कर सकता है?
देश की आर्थिक हालत, राजनीतिक स्थिरता और जनता का मूड —
पाकिस्तान भीतर से बुरी तरह अस्थिर है। महंगाई आसमान छू रही है, IMF की शर्तें गले पर हैं, और सरकार व सेना के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है।
क्या एक ऐसा देश, जो अपने नागरिकों को आटा और बिजली तक नहीं दे पा रहा, न्यूक्लियर वॉर का खर्च उठा सकता है?
2. क्या पाकिस्तान इसे Internationally अफोर्ड कर सकता है?
दुनिया में सिर्फ़ 9 देश हैं जिनके पास एटमी हथियार हैं — और इनमें से कोई भी, खुलेआम पहले हमला करने के पक्ष में नहीं होता।
अगर पाकिस्तान भारत पर अकारण न्यूक्लियर हमला करता है, तो क्या चीन, रूस या सऊदी जैसे देश उसका साथ देंगे? या फिर UN, NATO और बाकी वैश्विक शक्तियाँ उसे पूरी तरह ब्लैकलिस्ट कर देंगी?
3. क्या पाकिस्तान इसे Legally कर सकता है?
न्यूक्लियर अटैक के भी प्रोटोकॉल्स और इंटरनेशनल लॉ होते हैं —
जैसे कि:
- No First Use policy (जो भारत फॉलो करता है)
- UN की Nuclear Non-Proliferation Treaty
- और Geneva Convention के तहत Humanitarian Laws
अगर पाकिस्तान बिना किसी आधिकारिक युद्ध की घोषणा के एक शहर पर हमला करता है, तो वह एक ग्लोबल वॉर क्रिमिनल घोषित हो सकता है।
तो सवाल फिर से वही —
क्या पाकिस्तान के पास ताकत है? हां।
क्या वह हमला करेगा? शायद नहीं।
कम से कम अभी नहीं।
लेकिन ये कहानी यहीं खत्म नहीं होती —
आगे के पार्ट्स में हम देखेंगे कि अगर कभी वाकई यह दिन आया, तो भारत की जवाबी ताकत क्या होगी? और न्यूक्लियर वॉर के बाद दुनिया कैसी दिखेगी?
Part 3: जुगाड़ से बना बम — पाकिस्तान की न्यूक्लियर कहानी का काला सच
बिना पैसा, बिना टेक्नोलॉजी, और बिना मेहनत — पाकिस्तान कैसे बना इस्लामिक वर्ल्ड की पहली न्यूक्लियर ताक़त?
28 मई 1998, एक ऐसा दिन जिसे पाकिस्तान आज भी जश्न की तरह मनाता है —
इस दिन उसने छह न्यूक्लियर परीक्षण कर के दुनिया को चौंका दिया और खुद को घोषित कर दिया “पहला इस्लामिक न्यूक्लियर राष्ट्र“।
लेकिन इस कहानी के पीछे जो सच्चाई छुपी है, वो शायद ही दुनिया के ज़्यादातर लोग जानते हों।
▶ बम तो बना… पर कैसे?
ये वो बम थे जिन पर ना पाकिस्तान ने ज़्यादा पैसा लगाया,
ना अपनी लैब्स में कोई breakthrough किया,
ना ही उसके पास कोई indigenous uranium enrichment तकनीक थी।
फिर भी पाकिस्तान एटमी ताक़त कैसे बना?
इसका जवाब है — जुगाड़।
▶ 1971 की हार और 1974 का बदला
1971 में भारत से करारी शिकस्त खाने के बाद पाकिस्तान का मनोबल चकनाचूर हो चुका था।
और जब 1974 में भारत ने ‘Smiling Buddha’ के नाम से अपना पहला न्यूक्लियर टेस्ट किया, तो ये पाकिस्तान के लिए सिर्फ़ एक वैज्ञानिक झटका नहीं था — ये आत्मसम्मान पर सीधी चोट थी।
उसी समय प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने आग उगलते हुए कहा:
“चाहे हमें घास खाकर जीना पड़े, लेकिन हम न्यूक्लियर बम ज़रूर बनाएंगे।“
लेकिन बात सिर्फ भुट्टो की नहीं थी —
इस टेस्ट से सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि चीन भी परेशान हो गया था।
▶ चीन को क्यों लगी मिर्ची?
1971 में बांग्लादेश की आज़ादी में भारत की जीत, और अब ये न्यूक्लियर टेस्ट —
दुनिया को यह संकेत मिलने लगा कि भारत साउथ एशिया की सुपरपावर बनने की ओर बढ़ रहा है।
चीन के लिए ये एक दोहरी परेशानी थी:
- एक तरफ उसका पुराना दुश्मन भारत न्यूक्लियर बन चुका था
- दूसरी तरफ उसका दूसरा पड़ोसी — सोवियत यूनियन — पहले से ही न्यूक्लियर पावर था
- और तब तक चीन और USSR के संबंध भी टूट चुके थे (1960s के दशक में)
चीन के लिए ये स्थिति असहनीय थी —
उसे हर हाल में एक ऐसा साथी चाहिए था जो भारत को घेर सके, थाम सके और दबा सके।
और वो साथी था — पाकिस्तान।
▶ चीन ने पाकिस्तान को क्या दिया?
अब ये सिर्फ दोस्ती नहीं थी —
चीन ने पाकिस्तान को खुलकर न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी देने में मदद की, और वो भी उस स्तर पर जिसे देख कर दुनिया हक्की–बक्की रह गई।
एक प्रसिद्ध अमेरिकी विश्लेषक का बयान था:
“United States ने जितनी मदद UK या Israel की नहीं की, उतनी मदद China ने पाकिस्तान की कर दी।“
उन्होंने सिर्फ़ डिज़ाइन और रिसर्च ही नहीं दी,
बल्कि यूरेनियम प्रोसेसिंग की टेक्नोलॉजी,
सेंट्रीफ्यूज की खुफिया डील,
यहां तक कि launch-capable missiles तक देने में चीन ने पर्दे के पीछे से समर्थन किया।
▶ पाकिस्तान — न्यूक्लियर बनाम स्वाभिमान?
अब यह सवाल ज़रूरी है:
क्या पाकिस्तान ने यह सब अपने आत्मसम्मान के लिए किया?
या वो सिर्फ़ एक बड़े ड्रैगन का मोहरा बन गया था?
क्योंकि जिस देश ने खुद कभी scientific foundation नहीं रखा,
जिसका education infrastructure खुद crisis में था,
वो अचानक से एक दिन nuclear-armed Islamic power कैसे बन गया?
अब आप समझ पा रहे होंगे, क्यों आज भी भारत और वैश्विक एजेंसियाँ पाकिस्तान की न्यूक्लियर कैपेबिलिटी को सिर्फ एक ताकत नहीं,
बल्कि एक अस्थिर हथियारधारी देश की तरह देखती हैं।
Part 4: पैसे का बम — पाकिस्तान का न्यूक्लियर नेटवर्क और अरब की थैली
पैसा अरब से, टेक्नोलॉजी चोरी से, और टेस्ट चीन की ज़मीन पर — पाकिस्तान ने एटम बम कैसे जोड़ा?
▶ चार स्टेज़ — एक बम
एक nuclear weapon बनाना कोई बच्चों का खेल नहीं होता।
इसकी चार बड़ी स्टेज होती हैं:
- Finance – बेशुमार पैसा
- Technology for Uranium Enrichment – बेहद गोपनीय टेक्नोलॉजी
- Weapon Design – बम का असली खाका
- Delivery System – यानी मिसाइलें और लॉन्च प्लेटफॉर्म्स
और पाकिस्तान के पास इन चारों में से कुछ भी नहीं था।
लेकिन फिर भी उसने बना लिया… कैसे?
▶ पहला स्टेप — पैसा कहां से आया?
1974, जैसे ही पाकिस्तान ने न्यूक्लियर बम बनाने का ऐलान किया,
मुस्लिम वर्ल्ड में एक “इस्लामिक न्यूक्लियर बम“ की उम्मीद जग गई।
और सबसे पहले लाइन में खड़ा हुआ था — लीबिया।
Arab News की रिपोर्ट के मुताबिक,
लीबिया के तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी ने पाकिस्तान को सीधे $100 मिलियन डॉलर की फंडिंग दी।
इसके बाद बारी आई सऊदी अरब की, जिसने इस प्रोजेक्ट को और भी “heavily fund” किया।
उनका मकसद सिर्फ एक था —
“इस्लाम की हिफाज़त के लिए एक बम“।
▶ दूसरा स्टेप — यूरेनियम कैसे समेटा गया?
पैसा मिल गया था —
अब ज़रूरत थी फ्यूल की, यानी enriched uranium।
इस मोर्चे पर पाकिस्तान के पास एक ट्रम्प कार्ड था:
डॉ. अब्दुल क़दीर खान, जिन्हें आज पाकिस्तान का ‘Father of Nuclear Program’ कहा जाता है।
लेकिन उनकी असली कहानी… एक international heist से कम नहीं।
▶ डॉ. AQ खान — वैज्ञानिक या जासूस?
डॉ. खान Netherlands में URENCO नामक एक यूरेनियम एनरिचमेंट प्लांट में काम कर रहे थे,
जहाँ दुनिया की सबसे उन्नत enrichment technology पर काम हो रहा था।
और वहीं से उन्होंने highly classified designs, centrifuge models और technical blueprints चोरी किए।
चुपचाप पाकिस्तान लौटे, और इस knowledge से “Kahuta Research Laboratories” की नींव रखी।
वहीं पर हुआ पाकिस्तान का first ever uranium enrichment setup।
इस प्रोसेस को आसान भाषा में समझो:
यूरेनियम को अगर “चावल” मानें,
तो उसमें से सिर्फ कुछ ही दाने होते हैं जो असल में explosive बन सकते हैं —
बाकी सब बेकार।
Enrichment वही process है जिसमें इन “explosive दानों” को बाकियों से फिल्टर किया जाता है।
▶ तीसरा स्टेप — Bomb Design कौन देगा?
अब पाकिस्तान के पास पैसा भी था, और enriched fuel भी।
बचा सिर्फ़ एक स्टेप — बम बनाना।
और यहाँ एंट्री होती है — चीन की।
चीन ने पाकिस्तान को अपना “Tested Bomb Design” दिया —
जिसे इतिहास में “Chic-4 Design” कहा जाता है।
यह वही डिज़ाइन था जिसे चीन ने खुद 1966 में इस्तेमाल कर टेस्ट किया था।
लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकती…
▶ चौथा स्टेप — टेस्ट कहां होगा?
26 मई 1990 —
एक ऐसी तारीख़ जिसे कभी officially पाकिस्तान acknowledge नहीं करेगा।
चीन ने पाकिस्तान को अपनी ज़मीन पर पहला nuclear test करने की इजाज़त दी।
जी हाँ — पाकिस्तान का पहला बम — पाकिस्तान में नहीं,
बल्कि चीन की धरती पर टेस्ट किया गया था।
▶ तो अब सवाल ये है…
जब पाकिस्तान का बम:
- पैसे से अरबों ने दिया,
- टेक्नोलॉजी उसने चोरी की,
- डिज़ाइन चीन ने दिया,
- और टेस्ट भी चीन में हुआ…
तो क्या ये पाकिस्तान का अपना एटमी कार्यक्रम था?
या सिर्फ़ एक geopolitical joint venture?
Part 5: बम तो बन गया… अब बारी थी उसे उड़ाने की
Pakistan की मिसाइलें — North Korea का design, China का आशीर्वाद और खान की इंजीनियरिंग
बम तैयार था।
Uranium enriched,
design ready,
और test भी China की ज़मीन पर हो चुका था।
अब बारी थी उस आखिरी स्टेप की,
जिससे एक nuclear bomb को सिर्फ़ एक धमकी नहीं, बल्कि एक क़त्ल की नीयत बनाया जा सकता है —
Launch Mechanism।
और इसमें पाकिस्तान को फिर एक बार “भाईजान डिप्लोमेसी“ का सहारा लेना पड़ा।
▶ मिसाइल चाहिए? तो चलो North Korea चलते हैं…
1990s के दशक में जब दुनिया nuclear non-proliferation पर जोर दे रही थी,
तब एक underground नेटवर्क पनप रहा था —
जहाँ missile technology और nuclear secrets का सौदा बिना दस्तावेज़ों के हो रहा था।
और इसी छुपे हुए सौदेबाज़ी में,
North Korea ने पाकिस्तान को दिया — मिसाइल का full tech stack।
No-Dong नाम की ballistic missile जिसे North Korea ने develop किया था,
उसी के नक्शे–कदम पर पाकिस्तान ने बनाया —
“Ghauri Missile”।
इतनी ज़्यादा समानता थी इन दोनों में कि कई international reports ने कहा:
“Pakistan’s Ghauri is not just inspired by No-Dong — it is almost identical to it.”
▶ तो ये हुआ पाकिस्तान का ‘Nuclear Cocktail’
अगर पूरे प्रोजेक्ट को एक लाइन में समझना हो तो बस इतना कहिए:
“Made in China, Paid by Arabs, Engineered by Khan, and Delivered by North Korea.”
- डिज़ाइन — China का
- पैसा — Saudi Arabia और Libya का
- इंजीनियरिंग — Dr. AQ खान की
- मिसाइल टेक्नोलॉजी — North Korea से ली हुई
- और sprinkle किया गया Dutch चोरी से लाया गया tech
▶ ये सिर्फ़ एक Bomb नहीं था — ये था Global Black Market का Symbol
Pakistan का यह bomb न सिर्फ़ South Asia के लिए एक खतरा था,
बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक reminder था कि
जब धर्म, राजनीति और ग्लोबल पावर गेम एक साथ जुड़ते हैं,
तो एक देश “rogue nuclear state” में तब्दील हो सकता है —
बिना accountability, बिना control।
Part 6: Pakistan की जनता — Nuclear Attack पर कौन सा समर्थन?
क्या पाकिस्तान की अंदरूनी समस्याएं और जनता का विरोध एक संभावित परमाणु हमले को नाकाम कर देंगे?
अब सवाल यह उठता है:
क्या पाकिस्तान के पास अपने own public support है, जब बात आती है भारत पर एक nuclear attack करने की?
क्योंकि अगर विदेश से मदद मिलना तो दूर, खुद पाकिस्तान के अंदर ही बहुत सारी अंदरूनी समस्याएं और विरोध हैं।
▶ पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता — जनता का विरोध और सख्त आंदोलन
यदि आप पाकिस्तान का map देखें तो पिछले एक साल में,
एक के बाद एक आतंकवादी हमले हुए हैं।
इन हमलों ने 1000 से ज़्यादा पाकिस्तानी सैनिकों की जान ले ली है।
और इससे भी ज्यादा गंभीर बात यह है कि पाकिस्तान के अलग–अलग provinces में separatist movements पिछले दशकों से जारी हैं।
पाकिस्तान की जनता इन इलाकों में, खासकर सिंध और बलूचिस्तान में, एक अलग राज्य की मांग कर रही है,
और हर बार पाकिस्तान की सरकार इनकी आवाज़ दबाने की कोशिश करती है,
लेकिन यह आवाज़ और तेज़ हो रही है।
यहां तक कि 2024 तक आते–आते, इन प्रांतों में पाकिस्तान के खिलाफ massive protests देखने को मिल रहे हैं।
▶ कराची पोर्ट का संकट — पाकिस्तान की सबसे बड़ी कमजोरी
अब अगर हम सिंध की बात करें, तो यह पाकिस्तान की सबसे बड़ी कमजोरी है।
क्योंकि India किसी भी वक्त पाकिस्तान के south-western coast पर एक naval blockade लगा सकता है।
अगर आप याद करें, तो 1999 में, India ने Karachi port को ब्लॉक किया था, और इससे पाकिस्तान के व्यापार को बहुत बड़ा झटका लगा था।
लेकिन सबसे दिलचस्प और इरॉनिक बात यह है कि India से पहले, खुद पाकिस्तान की अपनी जनता ने Karachi port को block कर दिया था!
▶ इंडस नदी की लूट — सिंध में बगावत का रुख
हाल ही में पाकिस्तान के सिंध में एक और बड़ा मुद्दा सामने आया है, और वह है Indus River की लूट।
Indus River पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र के लिए जीवनदायिनी है, और पिछले कुछ दिनों में वहां नारे लगने लगे हैं कि “Indus River is being robbed”।
अब 1971 से सिंध में एक अलग सिंधु देश की मांग उठ रही है, और यह separatist movement इस मांग को लेकर बहुत मजबूत हो चुका है।
लेकिन फिर पाकिस्तान ने फरवरी 2024 में Cholistan Cannon Project शुरू किया,
जिसके तहत वे Indus River का पानी Punjab के दूर–दराज के इलाकों में भेजने का इरादा रखते थे।
अब यह बात सिंध की marginalized community को बिल्कुल भी पसंद नहीं आई,
क्योंकि सिंध का पूरा इलाका agriculture पर आधारित है,
और उनके अनुसार, यह प्रोजेक्ट Punjab की खेती को फ़ायदा पहुँचाने के लिए किया जा रहा है।
इन सबके बीच, massive protests ने Sindh province को घेर लिया है।
कुछ दिन पहले ही Karachi port की ओर जाने वाली सड़कों को block कर दिया गया,
जिससे पूरा supply chain ठप हो गया और पाकिस्तान की economy को एक नया shock लग गया।
▶ Karachi Port के पास ट्रैफिक जाम — Pakistan की अर्थव्यवस्था का संकट
अब, अगर बात करें Karachi port की, तो यह पाकिस्तान का largest port है,
जहां import और export का सबसे ज़्यादा traffic रहता है।
लेकिन अभी तक, 30,000 से ज़्यादा trucks वहाँ फंसे हुए हैं, जिनमें millions of dollars worth of goods शामिल हैं।
उनमें से एक हज़ार से ज्यादा fuel tankers भी फंसे हुए हैं,
जिसका मतलब है कि अगर यह जाम जल्दी नहीं खुले, तो पाकिस्तान को fuel crisis और manufacturing crisis का सामना करना पड़ सकता है।
यह समस्या पाकिस्तान की पहले से crumbled economy को और बर्बाद कर सकती है,
और Pehlegam attack के बाद, पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति इतनी कमजोर हो चुकी है,
कि अब उसे अपनी public और international reputation को बचाने में भी परेशानी हो रही है।
Part 7: बलूचिस्तान की आंतरिक विद्रोह — पाकिस्तान पर दबाव और आतंकवादी हमलों का उभार
क्या बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की मांग पाकिस्तान के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर सकती है?
अब, बात करते हैं बलूचिस्तान की, जहां हाल के महीनों में पाकिस्तान की military पर terrorist attacks ने एक नई चिंता का रूप लिया है।
Pehlegam conflict के बाद, बलूचिस्तान में स्थिति और भी विकट हो चुकी है।
बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA), जो कि बलूचिस्तान क्षेत्र का एक rebel group है, ने 20 April 2025 को पाकिस्तान की military पर तीन ID blasts किए,
और केवल 24 घंटों में दस पाकिस्तानी सैनिकों की जान ले ली।
यह हमला BLA के लिए एक और सफलता का संकेत था, क्योंकि कुछ ही हफ्ते पहले, 18 March 2025 को, उन्होंने Pakistan के army convoy पर हमला किया था।
इस हमले में 90 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे, और BLA का दावा है कि यह हमला Pulwama attack से कहीं ज्यादा बड़े scale का था।
▶ बलूचिस्तान की ऐतिहासिक आज़ादी की माँग — पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह
इतिहास की ओर देखें तो, बलूचिस्तान का पाकिस्तान से जुड़ने का कभी कोई इरादा नहीं था।
आज़ादी के बाद, Baluchistan के राजा, जिसे Khan of Kalat कहा जाता था, उन्होंने एक नया देश बनाने की योजना बनाई थी, या फिर India या Afghanistan के साथ जुड़ने की इच्छा जताई थी।
लेकिन Pakistan के प्रधानमंत्री जिन्ना ने धोखे से एक army operation चलाकर बलूचिस्तान को annex कर लिया, और यह घटनाक्रम बलूचिस्तान के लोगों के लिए एक घातक धक्का साबित हुआ।
यह जानकारी मैंने Pakistan General of Research से प्राप्त की है, तो यह एक authentic source है, और इसका कोई भी foreign bias नहीं है।
यही कारण है कि बलूचिस्तान की जनता आज तक पाकिस्तान से खुश नहीं है, और यहां से कई rebel groups पैदा हो गए हैं जिनका एकमात्र उद्देश्य पाकिस्तान से स्वतंत्रता प्राप्त करना है।
▶ BLA और अन्य आतंकवादी समूह — पाकिस्तान पर हो रहे लगातार हमले
BLA (Baluch Liberation Army), BRA (Baluch Republican Army), UBF (United Baluch Front), BSF (Baluchistan Students Federation) जैसे करीब 19 rebel groups पाकिस्तान में सक्रिय हैं,
लेकिन इन सभी में से सबसे खतरनाक और घातक संगठन BLA रहा है।
यह संगठन हर साल 150 से 200 terrorist attacks करता है, और 2020 के बाद से तो ये हमले चार गुना बढ़ चुके हैं।
बेशक, बलूचिस्तान का rebel movement पाकिस्तान के लिए एक बड़ी राजनीतिक समस्या बन चुका है,
लेकिन अगर कभी India-Pakistan war होता है, जिसमें पाकिस्तान पहले से ही weak position में है,
तो BLA के लिए यह एक golden opportunity होगी।
क्योंकि इस समय पाकिस्तान के अन्य क्षेत्रों जैसे Khyber Pakhtunkhwa से भी TTP (Tehreek-e-Taliban Pakistan) पाकिस्तान की military पर हमले के लिए तैयार बैठा है।
और हाल ही में, 20 April 2025 को, TTP ने Khyber region में एक bomb blast किया, जिसमें 6 लोगों की जान चली गई।
इसके बाद, उसी दिन, Khyber के Waziristan district में 54 तालिबान ने पाकिस्तान की military पर हमला किया, जो कि Afghan borders के पास स्थित है।
▶ नया संकट — पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता और आतंकी हमलों की बढ़ती संख्या
इन सब घटनाओं को देखते हुए, पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति पहले से कहीं अधिक कमजोर हो गई है।
BLA और TTP जैसे संगठन लगातार terrorist attacks की साजिशें रच रहे हैं, और अब Pehlegam conflict ने इसे और बढ़ावा दिया है।
बलूचिस्तान और खैबर के क्षेत्रों से लगातार बढ़ते हमले और separatist movements पाकिस्तान के लिए एक कठिन चुनौती पेश कर रहे हैं।
और यही नहीं, पाकिस्तान की military को भी अब इन विद्रोही संगठनों का सामना करने के लिए कई internal conflicts और divided attention का सामना करना पड़ रहा है।
यहां तक कि पाकिस्तान के सामने economic collapse और political instability की बढ़ती समस्या उसे और भी कमजोर बना रही है।
Part 8: जब अंदर ही अंदर बिखरने लगा पाकिस्तान
सरहदों पर खुलता नया जंग का मोर्चा
ताज़ा खबरों के मुताबिक, तालिबान ने पाकिस्तान की अस्थिर पश्चिमी सीमा पर एक नया युद्ध मोर्चा खोल दिया है। यह वही इलाका है — ख़ैबर रीज़न — जहाँ से पहले भी कई आतंकवादी संगठन जन्म ले चुके हैं। जमात उल हरार, लश्कर–ए–इस्लाम, और ISIS-खुरासान जैसे कट्टर गुट यहीं से सक्रिय रहे हैं। ऐसे 21 से भी ज़्यादा आतंकी संगठनों में सबसे खतरनाक और प्रमुख नाम है — तहरीक–ए–तालिबान पाकिस्तान (TTP)।
TTP का मिशन: ‘पश्तूनिस्तान‘ का सपना
TTP का एकमात्र उद्देश्य है — ख़ैबर प्रांत को पाकिस्तान से अलग करके एक स्वतंत्र देश ‘पश्तूनिस्तान’ की नींव रखना। यानी अगर कल को भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है, तो TTP भी मौके का फायदा उठाने से पीछे नहीं हटेगा। हालात कुछ ऐसे बनते जा रहे हैं कि पाकिस्तान के दुश्मन अब सिर्फ़ बाहर नहीं, भीतर भी हैं।
POK में उठता जनआक्रोश
अभी कुछ ही दिन पहले POK (पाक अधिकृत कश्मीर) से खबर आई कि वहाँ के ‘माइन्स एंड मिनरल्स बिल‘ को लेकर हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आए। विरोध की लहर इतनी तेज़ थी कि पूरा इलाका हिल गया। जनता का आरोप है कि पाकिस्तान जिस POK को ‘आज़ाद कश्मीर‘ कहता है, दरअसल वह उसके खनिज संसाधनों का शोषण कर रहा है — और इस नए बिल से वही कोशिश की जा रही है।
भीतर से घिरा हुआ मुल्क
लोग खुलकर पाकिस्तानी सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं। सच्चाई ये है कि पाकिस्तान इस वक़्त भीतर से पूरी तरह घिर चुका है। हर राज्य किसी न किसी टकराव का शिकार है। और रही बात आर्थिक हालात की — तो उस पर शायद ज़िक्र करना भी ज़रूरी नहीं रह गया है।
लेकिन फिर भी अगर आप जानना चाहें कि इस वक़्त पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था किस हालत में है, तो मैंने अपने इस विषय पर एक अलग वीडियो में विस्तार से बताया है। आप चाहें तो इस वीडियो के बाद ऊपर I बटन पर क्लिक करके उसे देख सकते हैं।
Part 9: क्या पाकिस्तान भारत पर परमाणु हमला कर सकता है?
India की सख़्त नीति: ‘No First Use’
जब बात परमाणु हथियारों की होती है, तो भारत की नीति बिल्कुल स्पष्ट है — ‘No First Use’, यानी भारत कभी पहले परमाणु हमला नहीं करेगा। लेकिन अगर खुदा न खास्ता दक्षिण एशिया में परमाणु युद्ध हुआ, तो यह तय है कि इसकी शुरुआत पाकिस्तान की तरफ़ से ही होगी। पर क्या पाकिस्तान के लिए भी ऐसे हमले को अंजाम देना उतना ही आसान है?
मिसाइल लॉन्च पर क़ानूनी बंदिशें
यह जानना ज़रूरी है कि भारत और पाकिस्तान — दोनों देशों के बीच मिसाइल लॉन्च को लेकर सख़्त क़ानूनी प्रोटोकॉल मौजूद हैं। सिर्फ़ परमाणु मिसाइल ही नहीं, सामान्य मिसाइल परीक्षण के लिए भी नियम तय हैं। दोनों देशों ने आपसी विश्वास बनाए रखने के लिए कई Nuclear Confidence Building Measures (CBMs) पर साइन किया हुआ है।
हर साल की शुरुआत में सांझा होती है परमाणु ठिकानों की सूची
इन CBMs में सबसे अहम प्रोटोकॉल यह है कि हर साल 1 जनवरी को, भारत और पाकिस्तान को एक–दूसरे के परमाणु ठिकानों की लिस्ट आपस में साझा करनी होती है। इसका मक़सद है कि कोई भी देश दूसरे के न्यूक्लियर साइट पर अटैक ना करे, जानबूझकर या किसी ग़लतफ़हमी के चलते।
टेस्ट से पहले जानकारी देना ज़रूरी
इसके अलावा, अगर कोई बड़ा मिसाइल टेस्ट होना हो — खासतौर पर सीमा के पास — तो पहले से ही सूचित करना अनिवार्य होता है, ताकि किसी तरह की गलतफहमी या पैनिक से बचा जा सके। हैरानी की बात यह है कि इतने सालों से रिश्ते ख़राब होने के बावजूद, दोनों देशों ने इन संवेदनशील प्रोटोकॉल्स का पालन कभी बंद नहीं किया।
परमाणु बटन के पीछे होती है एक लंबी प्रक्रिया
अब आप सोच सकते हैं — “वो पाकिस्तान है, जंग के वक़्त वो कुछ भी कर सकता है।” तो चलिए इस संभावना को भी ज़रा तर्क से परखते हैं। दुनिया के किसी भी न्यूक्लियर देश में कोई भी नेता यूं ही उठकर परमाणु बटन नहीं दबा सकता।
हर देश की तरह पाकिस्तान में भी होती है एक Nuclear Command Authority — जिसमें देश के शीर्ष नौकरशाह, सेनाप्रमुख और राजनीतिक नेता शामिल होते हैं। इस authority से पास होकर ही परमाणु हमले का प्रस्ताव प्रधानमंत्री तक पहुंचता है — और उसके पास होते हैं कुछ गुप्त launch codes, जिनसे आख़िरी मंज़ूरी दी जाती है।
Part 10: जब परमाणु हमले का बटन एक बैग में छुपा होता है
अमेरिका का ‘न्यूक्लियर फुटबॉल‘ — एक चलता फिरता नियंत्रण कक्ष
जब अमेरिका का कोई राष्ट्रपति शपथ लेता है, तो उसके साथ ही उसे सौंपा जाता है एक बेहद ख़ास बैग — जिसे कहा जाता है “न्यूक्लियर फुटबॉल”। ये साधारण बैग नहीं, बल्कि चलता–फिरता परमाणु युद्ध नियंत्रण कक्ष है। इस बैग में होती हैं चार चीजें — और हर एक का महत्व रणनीतिक तौर पर बेहद गहरा है:
- मनीला फ़ोल्डर — जिसमें मिसाइल लॉन्च की पूरी प्रक्रिया विस्तार से लिखी होती है।
- ब्लैक बुक — जिसमें पहले से तय की गई टारगेट साइट्स की लिस्ट होती है।
- क्लासिफ़ाइड बुक — जिसमें गुप्त लॉन्च साइट्स के विवरण दर्ज होते हैं।
- न्यूक्लियर बिस्किट — एक छोटा कार्ड, जिस पर सभी सीक्रेट कोड लिखे होते हैं, जिनकी मदद से परमाणु हथियार लॉन्च किए जा सकते हैं।
इस बैग की सुरक्षा इतनी अहम होती है कि यह राष्ट्रपति के बेहद करीबी सुरक्षाकर्मी के हाथ में हथकड़ी से बंधा होता है — ताकि किसी भी हाल में इससे संपर्क न टूटे।
जब निर्णय की घड़ी आए — राष्ट्रपति कोड देता है, हथियार सक्रिय होता है
अगर अमेरिका को परमाणु हमला करना पड़े, तो राष्ट्रपति पहले अपने सेना प्रमुख को ये सीक्रेट कोड देता है। इसके बाद ही कोई मिसाइल लॉन्च हो सकती है। यानी इस बैग में लिखा एक कोड पूरे विश्व की किस्मत बदल सकता है — लेकिन उसे सक्रिय करने की प्रक्रिया बेहद सख़्त और जटिल है।
भारत–पाकिस्तान का मामला थोड़ा अलग है
अब सवाल उठता है — क्या भारत और पाकिस्तान में भी ऐसा ही सिस्टम है? जवाब है — हां, लेकिन थोड़े अलग ढंग से।
भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में परमाणु हमले के लिए एक विस्तृत “चेन ऑफ कमांड” होती है। पाकिस्तान में भी परमाणु हथियार लॉन्च करने से पहले कई approvals लेने होते हैं — जिसमें टॉप लीडरशिप, आर्मी और न्यूक्लियर अथॉरिटी शामिल होती है।
लेकिन इसके बावजूद भी — कोई भी देश, और खासकर पाकिस्तान, ऐसे ही अचानक उठकर परमाणु हमला नहीं कर सकता।
परमाणु हमला — न कोई जल्दबाज़ी, न कोई अकेला फ़ैसला
चाहे अमेरिका हो, भारत या पाकिस्तान — परमाणु हथियारों की कमान कभी एक आदमी के हाथ में नहीं होती। यह फैसला कई स्तरों पर सोच–समझकर, ज़िम्मेदारी से और बेहद गहरे सुरक्षा उपायों के बीच लिया जाता है। और यही कारण है कि परमाणु युद्ध सिर्फ हथियारों की ताकत नहीं — तर्क, संयम और समझदारी की भी परीक्षा होती है।
Part 11: जब हथियार हों, पर हिम्मत और हालात साथ न हों
दुनिया की बड़ी ताक़तें और बाक़ी के ‘Non-Mated Weapons’
आज की दुनिया में Russia, USA, UK, France और China — इन पाँच देशों को छोड़कर बाकी सारे परमाणु हथियार संपन्न देशों के पास Non-Mated Weapons हैं। भारत और पाकिस्तान दोनों ही इसी कैटेगरी में आते हैं।
अब सवाल उठता है — Non-Mated का मतलब क्या होता है?
इसका मतलब ये है कि बम, मिसाइल और लॉन्चिंग साइट — ये तीनों चीज़ें अलग–अलग रखी जाती हैं। यानी हथियार तुरंत तैयार स्थिति में नहीं होते, उन्हें जोड़कर फायरिंग पोज़िशन में लाने में वक़्त और लॉजिस्टिक्स लगते हैं।
पाकिस्तान की जटिल परमाणु प्रक्रिया
मान लीजिए पाकिस्तान ने भारत पर परमाणु हमला करने का फैसला कर ही लिया। तो भी उसे कई मुश्किल और जोखिम भरे स्टेप्स से गुजरना पड़ेगा:
- सबसे पहले उसे डेरा गाज़ी खान स्थित न्यूक्लियर कॉम्प्लेक्स से बम निकालना होगा।
- फिर उसे तारानाबा मिसाइल कॉम्प्लेक्स तक पहुंचाकर, मिसाइल के साथ असेंबल करना पड़ेगा।
- इसके बाद असेंबल की गई मिसाइल को मशहूर या शहबाज़ जैसे लॉन्च पैड्स तक ले जाना होगा।
यह सब कुछ मिनटों में नहीं होता। इसमें भारी मूवमेंट और लॉजिस्टिकल ऑपरेशन की ज़रूरत होती है।
सैटेलाइट्स की नज़र से नहीं छुपता कुछ भी
आज की दुनिया सैटेलाइट्स और सेंसर की निगरानी में जी रही है। जैसे ही पाकिस्तान की तरफ़ से कोई संदिग्ध सैन्य हलचल होगी — पूरी दुनिया की नजर वहीं टिक जाएगी।
इस बात को भारत के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ ने भी रेखांकित किया था कि — ऐसी किसी भी मूवमेंट को दुनिया छुपा नहीं सकती। और नतीजा यह होगा कि पाकिस्तान को तत्काल वैश्विक निंदा और भारी अंतरराष्ट्रीय सज़ाओं का सामना करना पड़ेगा।
‘भिखारी देश‘ पर कौन खड़ा होगा?
अब सोचिए — एक साधारण युद्ध के बाद रूस पर इतनी पाबंदियाँ लग गईं, जबकि वो एक ग्लोबल सुपरपावर है, और उसे चीन जैसी ताकतवर ताकत का समर्थन भी मिला हुआ था। तो पाकिस्तान जैसी एक आर्थिक रूप से टूट चुकी ‘भिखारी’ देश पर क्या आफ़त टूटेगी, ज़रा सोचिए।
सिर्फ परमाणु धमकी देना आसान होता है, लेकिन उसे अंजाम देना एक पूरी रणनीतिक प्रक्रिया है — जिसमें हर कदम पर जोखिम, जवाबदेही और वैश्विक निगरानी होती है।
पाकिस्तान की ‘हिम्मत‘ का टेस्ट — इतिहास से सबक
इतिहास गवाह है कि जब भी पाकिस्तान को मौका मिला — उसने परमाणु हमले की धमकी दी, पर कभी अमल नहीं किया।
- 1999 के करगिल युद्ध के समय पाकिस्तान की आर्थिक हालत आज से बेहतर थी, फिर भी न्यूक्लियर अटैक नहीं हुआ।
- 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक, और
- 2019 के बालाकोट एयर स्ट्राइक में भी भारत ने पाकिस्तान के भीतर घुसकर हमला किया — लेकिन पाकिस्तान सिर्फ बयानबाज़ी तक सीमित रह गया।
यहाँ तक कि हाल ही में डी–क्लासिफ़ाई हुई CIA रिपोर्ट (late 1990s की) में भी लिखा है कि तब भी भारत–पाकिस्तान के बीच न्यूक्लियर वॉर के चांस महज 20% थे — जब हालात आज से कहीं ज़्यादा तनावपूर्ण और खुले युद्ध जैसे थे।
सच यही है — परमाणु बटन डराने के लिए है, दबाने के लिए नहीं
तो जब 2016 और 2019 में भी परमाणु बटन नहीं दबा — तब जबकि भारत पाकिस्तान की सरज़मीं पर घुस चुका था — तो अब, जब पाकिस्तान की आर्थिक हालत नाजुक से भी नीचे है, तब उससे किसी “nuclear retaliation” की उम्मीद करना एक भ्रम से ज़्यादा कुछ नहीं।
Part 12: जब जंग पर्दे के पीछे से चलाई जाती है
पर्दे के पीछे की कहानी — हमला क्यों और किसने करवाया?
अब शायद किसी के लिए यह राज़ नहीं रहा कि पाकिस्तान में आतंकवाद अक्सर एक रणनीतिक मोहरा होता है — जिसे देश की सरकार और फौज अपनी अंदरूनी असफलताओं और भ्रष्टाचार से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इस्तेमाल करती हैं।
इसी संदर्भ में एक बड़ा खुलासा हुआ — और वो भी किसी बाहरी एजेंसी या देश ने नहीं किया, बल्कि पाकिस्तान के ही एक वरिष्ठ पत्रकार आदिल राजा ने।
आदिल राजा, जिन्हें पाकिस्तान के सत्ताधारी दल पीपीपी के प्रमुख बिलावल भुट्टो ज़रदारी तक सोशल मीडिया पर फॉलो करते हैं, और जिनके सोशल मीडिया पर 16 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं — उन्होंने साफ़–साफ़ कहा कि पहलगाम हमला पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर के इशारे पर हुआ था।
राजा के मुताबिक, ये हमला एक तरह का ‘डाइवर्जन ऑपरेशन‘ था — ताकि असीम मुनीर के खिलाफ चल रहे केस और फौज की अंदरूनी सड़ांध पर से जनता का ध्यान हटाया जा सके।
जनता की खामोशी — शह और मात का खेल
सबसे दुखद बात यह है कि पाकिस्तान की जनता भी इस जाल में फंसती चली जा रही है।
जहां देश की आर्थिक स्थिति ICU में है, IMF के सामने हर साल झोली फैलानी पड़ती है, वहीं जनता का गुस्सा और ध्यान भारत के खिलाफ जंग की ओर मोड़ा जा रहा है।
लेकिन कोई भी ये नहीं पूछता कि पूर्व सेना प्रमुख बाजवा अपनी टर्म खत्म होते ही बिलियन डॉलर की संपत्ति का मालिक कैसे बन गया? जबकि पूरा देश कर्ज़ में डूबा हुआ है।
इसलिए यह बहुत संभव है कि पहलगाम अटैक सिर्फ एक ‘डिस्ट्रैक्शन’ हो — एक साज़िश, एक सेल्फिश चाल, जिससे जनता का ध्यान असली मुद्दों से हटाया जा सके।
न्यूक्लियर वॉर? नहीं, अब भारत बदला लेने को तैयार है
अब अगर बात करें न्यूक्लियर वॉर की, तो वर्तमान हालात को देखकर यह संभावना लगभग न के बराबर लगती है।
लेकिन भारत ने इस बार एक बात साफ़ कर दी है — सिर्फ निंदा नहीं होगी, अब जवाब भी दिया जाएगा।
प्रधानमंत्री ने मिलिटरी को फ्री हैंड दे दिया है — कि कब, कहां और कैसे पलटवार करना है, ये पूरी तरह से सेनाएं तय करेंगी।
कैसा होगा जवाब? सबकी निगाहें लगी हैं
अब सवाल यह है कि भारत का जवाब किस रूप में आएगा:
- क्या यह एक और सर्जिकल स्ट्राइक होगी?
- क्या यह एयर स्ट्राइक जैसी बड़ी कार्रवाई होगी?
- या फिर हो सकता है कोई गुप्त ऑपरेशन, जहां unknown gunmen पाकिस्तानी आकाओं को निशाना बनाएं?
और सबसे दिलचस्प संभावना — क्या POK पर कोई रणनीतिक एक्शन लिया जाएगा?
अब ‘कड़ी निंदा‘ नहीं, ‘कड़ी कार्रवाई‘ होगी
जो भी हो, इतना तो तय है — आज हर भारतीय दिल से यही चाहता है कि जवाब ज़रूर मिले।
क्योंकि अब भारत वही पुराना देश नहीं रहा जो सिर्फ ‘गंभीर चिंता’ जताता था।
अब भारत वह देश है जो सीमा पार जाकर दुश्मन को सबक सिखाता है।
यह नया भारत है।
यह सबक देना जानता है, सब्र करना नहीं।
जय हिंद।