एक भरोसेमंद ‘गुरु’ या मौत का सौदागर? कानपुर के कुशाग्र कनौजिया हत्याकांड की दहला देने वाली हकीकत

आज के दौर में अपराध समाज में इतनी गहराई तक अपनी जड़ें जमा चुका है कि अब भरोसा किस पर किया जाए, यह समझना मुश्किल हो गया है। सबसे भयावह स्थिति तब होती है, जब रक्षक ही भक्षक बन जाए और ज्ञान देने वाले गुरु ही अपने शिष्य की जान के दुश्मन बन बैठें। ऐसी ही एक दिल दहला देने वाली घटना ने कानपुर शहर को झकझोर कर रख दिया था, जिसे आज भी लोग कुशाग्र कनौजिया हत्याकांड (Kushagra Kanodia Hatyakand) के नाम से जानते हैं। यह कहानी सिर्फ एक अपराध की नहीं, बल्कि भरोसे के कत्ल, लालच की इंतहा और एक माँ-बाप के कभी न भरने वाले ज़ख्म की है।

30 अक्टूबर 2023 की वो मनहूस शाम

कानपुर की व्यस्त सड़कों पर त्योहार की रौनक थी, लेकिन कनौजिया परिवार के घर पर चिंता के बादल मंडरा रहे थे। शाम के साढ़े सात बज चुके थे, और उनका 16 साल का बेटा कुशाग्र अभी तक कोचिंग से घर नहीं लौटा था। कुशाग्र दसवीं कक्षा का एक होनहार छात्र था, जो हमेशा समय पर घर आता था। अगर कभी देर भी हो जाती, तो वो अपनी माँ को फोन करके जरूर बताता।

लेकिन उस दिन उसका फोन लगातार स्विच ऑफ आ रहा था। समय जैसे-जैसे बीत रहा था, माँ का दिल किसी अनहोनी की आशंका से बैठा जा रहा था। उन्होंने घबराकर कुशाग्र के पिता, मनीष कनौजिया को फोन किया। पिता ने यह कहकर धीरज बंधाया कि दोस्तों के साथ होगा, आ जाएगा। पर एक माँ का दिल दुनिया की हर चीज़ से पहले अपने बच्चे पर आने वाले संकट को भांप लेता है।

जब माँ से रहा नहीं गया, तो उन्होंने कुशाग्र के दोस्तों और कोचिंग सेंटर में फोन करना शुरू कर दिया। वहां से पता चला कि कुशाग्र कोचिंग से अपने समय पर निकल चुका था। यह जानकर परिवार की चिंता और बढ़ गई। अगर वो कोचिंग में नहीं, दोस्तों के साथ नहीं, तो आखिर कहाँ था?

फिरौती की चिट्ठी और एक चालाक अपहरणकर्ता

रात के करीब सवा आठ बजे, परिवार के सदस्य जब बालकनी में खड़े होकर कुशाग्र का इंतज़ार कर रहे थे, तभी उनकी नज़र एक चिट्ठी पर पड़ी। उस चिट्ठी को खोलते ही परिवार के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वो एक फिरौती की चिट्ठी थी। उनके बेटे कुशाग्र का अपहरण कर लिया गया था और बदले में 30 लाख रुपये की भारी रकम की मांग की गई थी।

चिट्ठी में लिखी बातें किसी नौसिखिए अपराधी की मालूम पड़ती थीं, लेकिन धमकी गंभीर थी:

“मैं नहीं चाहता कि आपका त्यौहार बर्बाद हो… आप मेरे हाथ में पैसे रखो और लड़का एक घंटे बाद आपके पास होगा… आपसे निवेदन है कि आप ये बात ना ही पुलिस ना ही अपनी लखनऊ वाली फॅमिली… को बताएं… आपके पास दो या तीन दिन का समय है आप जल्दी से तीस लाख रुपए का इंतज़ाम कर लो… पैसे की व्यवस्था हो जाए तो घर के चारों तरफ पूजन वाला झंडा लगा देना… मैं देख लूँगा।”

इस चिट्ठी में एक अजीब बात थी। अपहरणकर्ता ने “अल्लाहू अकबर” जैसे इस्लामी शब्द का इस्तेमाल किया था और साथ ही हिंदू धर्म से जुड़े “पूजन वाले झंडे” का भी जिक्र किया था। यह साफ था कि वह पुलिस की जांच को भटकाने की पूरी कोशिश कर रहा था।

एक सुराग जिसने बदली जांच Kushagra Kanodia Hatyakand की दिशा

परिवार ने बिना देर किए लखनऊ में रहने वाले अपने रिश्तेदारों और फिर पुलिस को सूचित किया। पुलिस ने तुरंत जांच शुरू की। परिवार के लोग भी अपने स्तर पर सुराग ढूंढने में लग गए। चूंकि वे एक अपार्टमेंट में रहते थे, उन्होंने सबसे पहले वहां के सिक्योरिटी गार्ड से पूछताछ की।

गार्ड की सतर्कता इस केस के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। पुलिस ने जब इस केस की परतें खोलनी शुरू कीं, जो बाद में Kushagra Kanodia Hatyakand के नाम से पूरे देश में चर्चित हुआ, तो सबसे पहला और अहम सुराग इसी गार्ड की सूझबूझ से मिला। गार्ड ने बताया:

“स्कूटी से एक लड़का मुंह पर रुमाल बांधे और हेलमेट पहने आया था… बोला कि ये चिट्ठी मनीष कनौजिया को देना है। मुझे कुछ अजीब लगा तो मैंने उससे कहा कि चिट्ठी तुम खुद देकर आओ और अपना रुमाल और हेलमेट उतार के अंदर जाना।”

जब लड़का अंदर गया, तो गार्ड को उसकी स्कूटी पर शक हुआ। आगे की नंबर प्लेट पर काला पेंट लगा था और पीछे की नंबर प्लेट कपड़े से ढकी थी। गार्ड ने होशियारी दिखाते हुए कपड़े को हटाकर स्कूटी का नंबर (UP 78 ED 2204) अपनी डायरी में नोट कर लिया।

शक के घेरे में ‘गुरु’

पुलिस ने तुरंत इस नंबर की जांच की। पता चला कि यह स्कूटी रचिता नामक एक युवती के नाम पर रजिस्टर्ड थी। यह नाम सुनते ही कनौजिया परिवार सन्न रह गया। रचिता कोई और नहीं, बल्कि कुशाग्र की पूर्व ट्यूशन टीचर थी। वह दो साल पहले तक कुशाग्र को पढ़ाती थी और परिवार उसे अपनी बेटी की तरह मानता था। रचिता इतनी शातिर थी कि वह लगातार परिवार को फोन करके कुशाग्र के बारे में अपडेट ले रही थी, ताकि किसी को उस पर शक न हो।

पुलिस और परिवार ने बहुत ही समझदारी से काम लिया। अगर रचिता इस अपहरण में शामिल थी, तो उसे जांच की भनक लगते ही वह कुशाग्र को नुकसान पहुंचा सकती थी।

Kushagra Kanodia Hatyakand: पुलिस का बिछाया जाल और गुनाह का कबूलनामा

परिवार के कुछ सदस्य बहाने से रचिता के घर पहुंचे और उसकी स्कूटी के बारे में पूछा। रचिता ने बताया कि स्कूटी उसके बॉयफ्रेंड प्रभात शुक्ला के पास है। परिवार के दबाव बनाने पर रचिता उन्हें प्रभात के घर ले गई, जहाँ स्कूटी खड़ी मिली।

यहाँ भी परिवार ने धैर्य से काम लिया और प्रभात को मदद करने के बहाने कुशाग्र के चाचा के साथ पुलिस स्टेशन चलने के लिए राजी कर लिया। दूसरी तरफ, पुलिस ने रचिता को भी हिरासत में ले लिया।

पुलिस स्टेशन में थोड़ी सी सख्ती के बाद ही रचिता टूट गई और उसने सारा सच उगल दिया। उसने कबूल किया कि पैसों के लालच में उसने अपने बॉयफ्रेंड प्रभात और उसके दोस्त आर्यन गुप्ता के साथ मिलकर कुशाग्र के अपहरण की साजिश रची थी। प्रभात ने ही कुशाग्र के घर की आर्थिक स्थिति देखकर यह शैतानी प्लान बनाया था। उन्हें लगा था कि 30 लाख रुपये लेकर वे अपनी जिंदगी संवार लेंगे।

स्टोर रूम का वो मंजर और खौफनाक सच

जब प्रभात से पूछताछ की गई, तो उसने पहले तो पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन जब उसे पता चला कि रचिता सब कुछ बता चुकी है, तो उसने भी अपना मुंह खोल दिया। उसने बताया कि आर्यन ही चिट्ठी लेकर गया था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल अब भी बाकी था – कुशाग्र कहाँ है?

पुलिस प्रभात को लेकर उसके घर पहुंची। घर की तलाशी के दौरान जब एक स्टोर रूम का दरवाज़ा खोला गया, तो वहां का मंजर देखकर सभी के होश उड़ गए। अंदर कुशाग्र की लाश पड़ी थी। उसके हाथ-पैर बंधे हुए थे और रस्सी से उसका गला बुरी तरह घोंटा गया था।

प्रभात ने बताया कि वह कोचिंग के बाहर कुशाग्र से मिला और लिफ्ट मांगकर उसे अपने घर ले आया। चूंकि कुशाग्र उसे पहले से जानता था, इसलिए वह मासूमियत में उसके साथ चला गया। घर के अंदर प्रभात ने उसे कोल्ड ड्रिंक ऑफर की और फिर उस पर हमला कर दिया। क्योंकि कुशाग्र ने उसे पहचान लिया था, इसलिए पकड़े जाने के डर से प्रभात ने फिरौती मिलने का इंतज़ार किए बिना ही उसकी हत्या कर दी।

भरोसे का कत्ल और समाज के लिए एक सबक

Kushagra Kanodia Hatyakand दिखाता है कि कैसे चंद पैसों का लालच एक शिक्षक, जिसे गुरु का दर्जा दिया जाता है, उसे हैवान बना सकता है। कनौजिया परिवार ने बताया कि वे रचिता को अपनी बेटी मानते थे और उसकी शादी का पूरा खर्च उठाने के लिए भी तैयार थे। लेकिन लालच ने उसकी आँखों पर पट्टी बांध दी थी।

यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें अपने बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श के साथ-साथ ‘अच्छे’ और ‘बुरे’ इरादों के बारे में भी शिक्षित करना होगा। हमें उन्हें यह सिखाना होगा कि हर परिचित चेहरा भरोसे के काबिल नहीं होता। समाज को भी जागरूक होना होगा ताकि कोई और कुशाग्र इस तरह के जघन्य अपराध का शिकार न बने।

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