अपराध की दुनिया में कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं, जो रिश्तों पर से विश्वास उठा देती हैं। यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जहाँ भरोसे का गला घोंटा गया और इंसानियत को तार-तार कर दिया गया।
यह कहानी उस खौफनाक साजिश की है जिसने असम के गुवाहाटी शहर को हिलाकर रख दिया था। एक ऐसी साजिश जिसे इतनी सफाई से बुना गया था कि पुलिस भी महीनों तक गुमराह होती रही। Case no 34 The Guwahati Double Murder Case
एक साधारण गुमशुदगी की रिपोर्ट
उनतीस अगस्त दो हज़ार बाइस, गुवाहाटी का नूनमाटी पुलिस स्टेशन। बत्तीस साल की वंदना कलिता नाम की एक महिला अपनी सास शंकरी डे और पति अमर ज्योति डे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने पहुँचती है। उसके अनुसार, दोनों छब्बीस जुलाई से लापता थे और उनसे कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था। पुलिस ने रिपोर्ट तो दर्ज की, लेकिन शुरुआती जांच में उन्हें कोई भी सुराग हाथ नहीं लगा।
यह मामला और भी अजीब तब हो जाता है जब पता चलता है कि वंदना ने पुलिस में शिकायत करने से चार दिन पहले, पच्चीस अगस्त को अपनी सास के भतीजे निर्मल्या डे से भी मदद मांगी थी। लेकिन इतनी बड़ी खबर सुनने के बाद भी निर्मल्या की प्रतिक्रिया बेहद सामान्य थी, मानो उन्होंने इस पर ध्यान ही न दिया हो।
समय बीतता जा रहा था, लेकिन अमर ज्योति और उनकी माँ शंकरी डे का कोई अता-पता नहीं था।
शक की पहली सुई
लगभग दो महीने बाद, तीस अक्टूबर को निर्मल्या अपनी बुआ शंकरी जी के घर (जोगा माया अपार्टमेंट) पहुँचे। वहाँ पड़ोसियों ने बताया कि शंकरी जी तो काफी पहले ही अपने बेटे-बहू के साथ नारंगी में रहने चली गई हैं। जब निर्मल्या, वंदना और अमरज्योति के नारंगी वाले अमरावती अपार्टमेंट पहुँचे, तो वहाँ भी पड़ोसियों ने शंकरी जी को कई दिनों से न देखने की बात कही।
इसके बावजूद निर्मल्या ने उस वक्त ज्यादा कुछ नहीं सोचा। लेकिन जब अगले बीस दिनों तक भी उनका अपनी बुआ और भाई से कोई संपर्क नहीं हुआ, तब जाकर इक्कीस नवंबर को उन्होंने भी नूनमाटी पुलिस स्टेशन में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई।
अब पुलिस के पास एक ही मामले में दो अलग-अलग गुमशुदगी की रिपोर्ट थीं, जो लगभग तीन महीने के अंतराल में दर्ज करवाई गई थीं।

पुलिस की जांच और वंदना का दोहरा खेल
शंकरी डे एक रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी थीं और उनके नाम गुवाहाटी में कई प्रॉपर्टीज थीं, जिनसे अच्छी खासी किराये की आमदनी होती थी। इसी आधार पर वंदना और निर्मल्या दोनों ने पैसों के लिए अपहरण का शक जताया। लेकिन फिरौती के लिए कोई कॉल न आने से पुलिस के लिए यह एंगल भी कमजोर पड़ रहा था।
पुलिस की जांच धीमी चल रही थी, लेकिन वंदना का खेल तेज था। वह लगातार पुलिस स्टेशन के चक्कर काट रही थी और जांच में तेजी लाने का दबाव बना रही थी। एक बहू का अपनी सास और पति के लिए यह चिंता देखकर किसी को भी उस पर शक नहीं हो सकता था। वह खुद को एक पीड़ित की तरह पेश कर रही थी।
चौदह फरवरी दो हज़ार तेईस को वंदना ने पुलिस कमिश्नर ऑफिस जाकर जांच में ढिलाई की शिकायत की और उसी दिन निर्मल्या ने भी CID में शिकायत दर्ज करवा दी।
Guwahati Double Murder Case: जब खुला साजिश का पर्दाफाश
लगातार शिकायतों के बाद आखिरकार पुलिस ने इस केस की गंभीरता को समझा और एक स्पेशल टीम का गठन किया, जिसका नेतृत्व डीसीपी कल्याण पाठक को सौंपा गया। टीम ने नए सिरे से जांच शुरू की और सबसे पहले वंदना और निर्मल्या से ही पूछताछ की।
इसी पहली पूछताछ में पुलिस को वंदना के बयानों में विरोधाभास नज़र आने लगा। उसके बदलते जवाबों ने पुलिस का शक उसी पर गहरा कर दिया। पुलिस ने तुरंत वंदना और शंकरी डे के बैंक खातों की जांच की। पता चला कि वंदना ने बीते कुछ दिनों में शंकरी जी के एटीएम कार्ड से करीब पाँच लाख रुपए निकाले थे।
इस सबूत के आधार पर सत्रह फरवरी को वंदना को फिर से पूछताछ के लिए बुलाया गया। दो दिनों की लगातार और सख़्त पूछताछ के बाद, वंदना कलिता टूट गई और उसने जो सच कबूला, उसने हर किसी के पैरों तले जमीन खिसका दी।
उसने कबूल किया कि उसके पति और सास अब इस दुनिया में नहीं हैं, क्योंकि उसी ने उन दोनों का मर्डर कर दिया है।
शैतानियत की हदें पार: कैसे दिया कत्ल को अंजाम
वंदना ने बताया कि इस घिनौने अपराध में वह अकेली नहीं थी, बल्कि उसके दो दोस्त, धानति डेका और अरूप डेका, भी शामिल थे।
- सास शंकरी डे की हत्या: छब्बीस जुलाई दो हज़ार बाइस को, वंदना अपने दोनों दोस्तों के साथ अपनी सास के फ्लैट पर पहुँची। उस वक्त शंकरी जी सोफे पर बैठकर टीवी देख रही थीं। वंदना ने पीछे से तकिये से उनका मुँह दबा दिया और अरूप ने उनके पैर पकड़ लिए। सांसें बंद होने के बाद, वंदना ने बेलन और मशेटी (धारदार हथियार) की मदद से उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद अरूप ने शव के तीन टुकड़े किए और उन्हें पॉलीथीन में पैक कर दिया। अगली सुबह, उन्होंने शव के टुकड़ों को मेघालय की घाटियों में अलग-अलग जगहों पर फेंक दिया।
- पति अमर ज्योति डे की हत्या: अपनी सास के कत्ल के बाइस दिन बाद, सत्रह अगस्त को वंदना ने अपने पति अमर ज्योति को भी मौत के घाट उतार दिया। जब अमर ज्योति घर पर था, वंदना ने पीछे से लोहे की रॉड से उसके सिर पर ऐसा वार किया कि उसकी मौके पर ही मौत हो गई। धानति और अरूप ने उसके शव के भी पाँच टुकड़े किए और अगली सुबह भारत-बांग्लादेश सीमा के पास के जंगलों में फेंक दिया।
वंदना के इस कबूलनामे के बाद पुलिस ने तुरंत उसके दोनों साथियों को गिरफ्तार कर लिया, और उन्होंने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया।

क्यों किया गया यह दोहरा हत्याकांड?
इस गुवाहाटी डबल मर्डर केस (Guwahati Double Murder Case) का मकसद बेहद चौंकाने वाला था। वंदना ने अमर ज्योति से बारह साल पहले घर से भागकर शादी की थी। शुरुआत में अमर ज्योति के घरवाले इस शादी के खिलाफ थे। अमर ज्योति बेरोजगार था, जिसकी वजह से वंदना ने कॉल सेंटर में भी काम किया। बाद में जब सास शंकरी डे ने उन्हें आर्थिक रूप से मदद करना शुरू किया, तो वंदना ने नौकरी छोड़कर जिम ट्रेनर बनने का फैसला किया।
शंकरी जी को वंदना का यह लाइफस्टाइल पसंद नहीं था। पुलिस जांच में यह भी सामने आया कि वंदना का धानति डेका के साथ प्रेम संबंध था, जो उसके मायके में किराए पर रहता था। जब अमर ज्योति और शंकरी जी को इस रिश्ते की भनक लगी, तो उन्होंने वंदना का विरोध किया।
चूंकि शंकरी डे और अमर ज्योति के नाम गुवाहाटी में करोड़ों की संपत्ति थी, वंदना तलाक देकर इन पैसों से हाथ नहीं धोना चाहती थी। इसीलिए उसने अपने प्रेमी धानति और उसके दोस्त अरूप के साथ मिलकर दोनों को ही रास्ते से हटाने का यह खौफनाक प्लान बनाया।
गुवाहाटी डबल मर्डर केस (Guwahati Double Murder Case): कानूनी दांव-पेंच और एक अधूरी सज़ा
पुलिस ने तेजी से काम करते हुए तीनों के खिलाफ सोलह सौ पन्नों की चार्जशीट दायर की। लेकिन फोरेंसिक रिपोर्ट समय पर जमा न हो पाने की तकनीकी खामी का फायदा उठाकर, पहले अरूप और फिर बाद में दस नवंबर दो हज़ार तेईस को वंदना और धानति को भी जमानत मिल गई।
यह इस केस का सबसे दुखद पहलू है कि इतना बड़ा अपराध करने के बाद भी, तीनों अपराधी आज जमानत पर बाहर हैं। केस अभी भी कोर्ट में चल रहा है और तारीख पर तारीख मिल रही है।
गुवाहाटी डबल मर्डर केस (Guwahati Double Murder Case) सिर्फ एक अपराध का ब्योरा नहीं, बल्कि रिश्तों में बढ़ते लालच, गिरती नैतिकता और हमारी कानूनी प्रक्रिया की उन खामियों पर एक गंभीर सवाल है, जो अपराधियों को मुस्कुराने का मौका देती हैं और इंसाफ को इंतजार करने पर मजबूर करती हैं। समाज को यह सोचना होगा कि हम किस दिशा में जा रहे हैं।
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