एक के बाद एक होती रहस्यमयी मौतें, कंकालों के साथ रहता परिवार और मानसिक स्वास्थ्य के अनछुए पहलू – जानिए ३, रॉबिन्सन स्ट्रीट के घर का पूरा डे परिवार का रहस्य।
एक और मौत, वही पुराना मंजर
20 फरवरी, 2017 का दिन। कोलकाता के वाटगंज इलाके में पुलिस को एक फोन आता है। ग्यारहवीं मंजिल पर रहने वाले एक शख्स, पार्थो डे, की लाश उनके ही घर के बाथरूम में मिली थी।
जब पुलिस उस कमरे में पहुंची, तो उन्होंने देखा कि पार्थो डे के पास मिट्टी के तेल की एक बोतल और एक माचिस की डिब्बी पड़ी थी। उनका शरीर पूरी तरह से जल चुका था।
पर सबसे ज़्यादा हैरान करने वाली बात इस मामले में यह थी कि उनकी लाश भी ठीक उसी अवस्था में पाई गई थी, जैसे ठीक दो साल पहले उनके पिता अरबिंदो डे की लाश मिली थी। तो, कहीं न कहीं पार्थो डे और उनके पिता अरबिंदो डे, दोनों ने दो साल के अंतराल में एक ही तरीके से अपनी जान दी थी। यह घटना डे परिवार के रहस्य की एक और कड़ी थी।
2015: जब खुला ‘हाउस ऑफ हॉरर्स’ का राज
पुलिस को 2015 के वो दिन याद आने लगे, जिस दिन कोलकाता के रॉबिन्सन स्ट्रीट के मकान नंबर 3 के डरावने राज़ खुले थे। जून 2015, वह साल जब कोलकाता के हर न्यूज़ चैनल पर सिर्फ एक ही हेडलाइन चमक रही थी – “कोलकाता हाउस ऑफ हॉरर्स”।
अन्य सुर्खियाँ थीं, “कोलकाता के इस मकान में छिपे हैं कई राज़”, “3 रॉबिन्सन स्ट्रीट का खौफनाक रहस्य“, “हॉरर हाउस का सच”।
10 जून, 2015 को कोलकाता के एक पॉश इलाके, रॉबिन्सन स्ट्रीट के मकान नंबर 3 की एक खिड़की से काफ़ी धुआँ निकल रहा था। जिस घर से धुआँ निकल रहा था, वैसे तो वहाँ डे परिवार के दो भाई अपने-अपने परिवार के साथ रहते थे, लेकिन शायद उस समय वे लोग वहाँ पर नहीं थे।
घर से कोई भी आदमी बाहर न आने की वजह से पड़ोसियों ने तुरंत फायर ब्रिगेड को बुला दिया। फायर ब्रिगेड वालों को लगा कि घर पर कोई नहीं था, लेकिन फिर भी उन्होंने सोचा कि एक बार हम लोग घर की घंटी बजा देते हैं।
लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उस घर का दरवाज़ा खुला। दरवाज़ा खोलने वाला इंसान अपनी चालीस की उम्र के आस-पास का था, उसके बाल सफ़ेद थे और वह काफ़ी ज़्यादा बीमार और दुबला-पतला लग रहा था, मानो कभी भी गिर जाएगा। यह पार्थो डे थे।
दरवाज़ा खोलते ही फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों को एक बहुत ही गंदी, असहनीय बदबू आई। लेकिन उस बदबू को नज़रअंदाज़ करते हुए, उनके दिमाग में सबसे पहली चीज़ यही थी कि उन्हें घर में लगी आग को बुझाना है।
ऑफिसर ने महसूस किया कि धुआँ घर के एक बाथरूम से आ रहा था, लेकिन बाथरूम अंदर से बंद था। इसीलिए ऑफिसर्स को बाथरूम का दरवाज़ा तोड़ना पड़ा।
अंदर का नज़ारा उनके होश उड़ा देने वाला था। बाथरूम के बाथटब में एक लाश पड़ी थी, जो पूरी तरीके से जल चुकी थी। लाश के बगल में ही एक केरोसिन का डब्बा रखा हुआ था और उसके पास में एक नोट था, जिसमें लिखा था, “मेरी इस हरकत के लिए कोई भी ज़िम्मेदार नहीं है। लव यू बेटा।”
यह लाश घर के सबसे बुज़ुर्ग इंसान, अरबिंदो डे की थी। और जिस इंसान ने घर का दरवाज़ा खोला था, वह अरबिंदो डे के छोटे बेटे, पार्थो डे थे। लेकिन आखिर अरबिंदो डे ने अपनी जान इतने दर्दनाक तरीके से क्यों ली? और जब उनका बेटा पार्थो डे वहीं था, तो उसने अपने पिताजी को बचाया क्यों नहीं? इन सवालों ने डे परिवार के रहस्य को और भी उलझा दिया।
डे परिवार का अतीत: अलगाव की बुनियाद
यह सब कुछ जानने के लिए हमें समय में थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा, साल 1989 में, कोलकाता। 1989 में अरबिंदो डे अपनी पत्नी आरती और दो बच्चों, देवजानी और पार्थो डे, के साथ कोलकाता शिफ्ट हो गए थे।
इससे पहले वे लोग बैंगलोर में रहते थे, लेकिन रिटायरमेंट के बाद अरबिंदो डे ने सोचा कि वो अपने परिवार के साथ उनके पुश्तैनी घर, जो कि रॉबिन्सन स्ट्रीट पर मकान नंबर 3 है, वहाँ शिफ्ट हो जाएंगे। उन्हें लगा था कि यहाँ शिफ्ट होना उनके बच्चों के लिए बेहतर होगा।
लेकिन इस घर को तुम लोग मामूली मत समझो। कोलकाता के एक सबसे पॉश इलाके में स्थित यह 3 मंजिला घर अरबिंदो डे के परिवार वालों ने अंग्रेजों से खरीदा था। इसलिए इसकी कीमत भी बहुत ज़्यादा थी।
और जहाँ प्रॉपर्टी की बात आती है, वहाँ अक्सर भाई-बहनों में झगड़े आम बात बन जाती है। ठीक उसी तरह यहाँ भी अरबिंदो डे और उनके भाई अरुण के बीच इस घर को लेकर थोड़े मतभेद चल रहे थे। इन्हीं परेशानियों के चलते इन दोनों भाइयों के परिवार घर के अलग-अलग हिस्सों में रहते थे, वो भी कुछ इस तरह कि वे दोनों एक-दूसरे का सामना भी न करें।
अरबिंदो डे की पत्नी आरती, वैसे तो एक बहुत अच्छी महिला थीं और अपने परिवार का भी बहुत अच्छे से ध्यान रखती थीं। वह अपने बच्चों का भी अच्छे से ध्यान रखती थीं, लेकिन उनकी एक आदत थी जो कि उन्हें दूसरे माता-पिता से अलग बनाती थी।
वह यह थी कि वह अपने बच्चों को किसी से घुलने-मिलने नहीं देती थीं। कथित तौर पर, वह अपने दोनों बच्चों को दोस्त नहीं बनाने देती थीं और न ही उनके हमउम्र बच्चों से मिलने देती थीं।
जिसकी वजह से पार्थो डे और देवजानी, दोनों के ही स्कूल में कोई दोस्त नहीं थे। लेकिन दोस्त न होने की इस बात से पार्थो डे और देवजानी, दोनों को ही कोई फ़र्क नहीं पड़ता था, क्योंकि उन दोनों के पास एक-दूसरे का सहारा था।
और क्योंकि ये दोनों एक तरीके से एक-दूसरे के ही दोस्त थे, तो इसीलिए वो एक-दूसरे के साथ ही अपनी सारी बातें साझा करते थे। जल्द ही ये दोनों एक-दूसरे पर बहुत ही ज़्यादा निर्भर हो गए, इतने ज़्यादा कि बड़े होकर उनकी यह निर्भरता एक अजीब मोड़ लेने वाली थी, जो उनके जीवन के रहस्य को और गहरा कर गया।
देवजानी और पार्थो डे, वैसे तो किसी से ज़्यादा मिलते-जुलते नहीं थे, लेकिन दोनों ही काफ़ी होशियार थे। दोनों ने कोलकाता के राजाबाजार साइंस कॉलेज से बी.टेक की पढ़ाई की थी।
जिसके बाद पार्थो डे को बैंगलोर की एक अच्छी आईटी फर्म में नौकरी मिल गई थी और कुछ सालों बाद पार्थो डे को अमेरिका की एक फर्म में नौकरी भी मिल गई थी।
दूसरी ओर, देवजानी ने अपने छोटे भाई की तरह आईटी फर्म में नौकरी नहीं की, बल्कि वह कोलकाता के एक बहुत ही अच्छे स्कूल, डॉन बॉस्को में एक संगीत शिक्षिका का काम करती थीं। इस समय ऐसा लग रहा था कि डे परिवार किसी भी सामान्य परिवार की तरह ही अपनी ज़िंदगी जी रहा है, लेकिन जल्द ही सब कुछ बदलने वाला था।
त्रासदी और बढ़ता अलगाव: डे परिवार में और गहराता रहस्य
साल 2007 में, अरबिंदो डे की पत्नी और इन दोनों बच्चों की माँ, आरती को कैंसर हो गया था और दुर्भाग्यवश, कुछ समय बाद उनका देहांत हो गया।
अपनी माँ के गुज़र जाने के बाद पार्थो डे अमेरिका में अपनी नौकरी छोड़कर वापस अपने परिवार के साथ रहने आ गए थे। और देवजानी ने भी अपनी संगीत शिक्षिका की नौकरी छोड़कर घर पर ही रहना शुरू कर दिया था।
किसी अपने को खोना उनके लिए बहुत मुश्किल रहा होगा। हर कोई अपने-अपने तरीके से दुख से उबरने की कोशिश करता है, लेकिन ये दोनों भाई-बहन कभी वापस नौकरी पर नहीं गए।
अब डे परिवार में सिर्फ़ तीन लोग बचे थे – अरबिंदो डे, देवजानी और पार्थो डे, और उनके दो लैब्राडोर कुत्ते। उनकी आय का एकमात्र स्रोत घर के कुछ कमरों को किराए पर देने से आने वाला पैसा था।
डे परिवार पहले से ही बाहर के लोगों से इतनी दूरी बनाए रखता था कि उनके घर में जो खाना पहुँचाने आते थे, उनसे भी वे संपर्क नहीं करते थे। उनके तीन समय का खाना घर के सिक्योरिटी गार्ड के ज़रिए ही घर तक आता था।
अब यह डे परिवार बस अपने में ही रहता था। न ये लोग कभी अपने पड़ोसियों से बातें करते थे और न ही ये कभी कहीं बाहर जाते थे। ऐसा लग रहा था मानो इन तीनों ने अपने आप को इस घर में कैद कर लिया हो, जो अपने आप में एक रहस्य था।
वो भयानक दिन और कंकालों का सच: डे परिवार का खौफनाक सच
10 जून, 2015 – रॉबिन्सन स्ट्रीट, कोलकाता का मकान नंबर 3, जिस दिन पुलिस को अरबिंदो डे की लाश मिली थी। उस दिन पुलिस ने काफ़ी असामान्य चीज़ें नोटिस की थीं।
सबसे पहली बात यह थी कि पूरा घर अस्त-व्यस्त हो रखा था, कोई सफाई नहीं थी और सब चीज़ें बिखरी पड़ी हुई थीं। घर में से एक अजीब सी बदबू आ रही थी।
पूरे घर में अंधेरा था, सारी खिड़कियों को कपड़ों से ढक दिया गया था, मानो ये लोग नहीं चाहते थे कि सूरज की एक भी रौशनी घर में आए। और पूरे घर में एक औरत के गाने की आवाज़ आ रही थी। ये आवाज़ बहुत ही हल्की थी, लेकिन हर कमरे में इस आवाज़ को सुना जा सकता था।
एक कमरे में घर का छोटा बेटा, पार्थो डे, थोड़ा बेचैन दिख रहा था। वह एक जगह रुक नहीं पा रहा था और पुलिस से ढंग से बात भी नहीं कर पा रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वह कुछ छुपा रहा हो, डे परिवार के रहस्य को अपने अंदर समेटे हुए।
घर के बाहर भीड़ लगी हुई थी और पड़ोसी एक-दूसरे को हैरानी से देखकर यह पूछ रहे थे कि अरबिंदो डे के तो दो बच्चे थे ना? यह स्थिति अपने आप में एक बड़ा रहस्य थी।
उनका घर भी बहुत ज़्यादा अजीब था और जिस हिसाब से अरबिंदो डे की लाश उन्हें मिली थी, वह भी काफ़ी ज़्यादा अजीब थी। लेकिन पुलिस को पार्थो डे का व्यवहार भी उस समय बहुत ही ज़्यादा अजीब लग रहा था।
आम तौर पर आदमी अगर ऐसे घर में रह रहा है, ऐसी स्थिति में होगा तो वह डरेगा ही, लेकिन पार्थो डे कुछ ज़्यादा ही बेचैन लग रहे थे। पुलिस को लगा कि कहीं यह आदमी कोई गलत कदम न उठा ले, इसीलिए उन्होंने उसके घर के बाहर दो गार्ड लगवा दिए थे।
जब पुलिस को लगा कि शायद इस आग का कुछ संबंध इन सारी चीज़ों से या फिर घर की इस हालत से है, तो उन्होंने पार्थो डे पर बहुत ज़्यादा दबाव डाला। तब पार्थो डे ने पिछले छह महीने का वह राज़ बताया जो उसने सबसे छुपाकर रखा था, एक ऐसा रहस्य जिसने सबको दहला दिया।
अगर आपको याद हो कि जब पार्थो डे के घर में उनके पिता की लाश मिली थी, तो पड़ोसी यह सवाल पूछ रहे थे कि इनके घर में दो बच्चे हैं ना? उनका मतलब पार्थो डे और देवजानी से था।
लेकिन फिर पार्थो डे ने पुलिस को बताया कि उनकी बहन कहीं बाहर नहीं गई है। उनकी बहन घर में ही है, बस वो ज़िंदा नहीं है। देवजानी छह महीने पहले ही गुज़र चुकी थी और उसकी लाश अभी भी उसी घर में थी। यह डे परिवार के रहस्य का सबसे चौंकाने वाला पहलू था।
यह सुनते ही पुलिस पार्थो डे से पूछताछ करने के लिए उसे पुलिस स्टेशन ले गई, लेकिन जैसे ही उन्होंने यह बात सुनी, वे वापस उसके घर की ओर भागे। उस समय भी वहाँ का नज़ारा बिल्कुल पहले जैसा ही था।
पृष्ठभूमि में किसी के गाने की आवाज़ आ रही थी, पूरे घर में अंधेरा था, हवा में एक अजीब सी बदबू थी और पूरे घर का सामान बिल्कुल बिखरा हुआ था। कई सारे लैपटॉप और किताबें, और घर के हर कोने में छोटे-छोटे कागज़ के टुकड़े पड़े हुए थे।
बिना रुके पुलिस घर की तलाशी करने लगी। हॉल, किचन और अरबिंदो डे का कमरा, सब अस्त-व्यस्त ही मिला था उन्हें। उसका पूरा घर एक कबाड़खाना लग रहा था।
लेकिन इस पूरे घर में सिर्फ़ एक कमरा ऐसा था जो ऐसा लग रहा था कि उसे हर दिन देखा जाता हो या उसे छुआ भी न गया हो। यह कमरा बाकी घर के मुकाबले बिल्कुल साफ़ था।
उस कमरे में एक बिस्तर था और उस बिस्तर की चादर भी एकदम ताज़ी थी, मानो किसी ने सुबह-सुबह ही बिछाई हो। ऊपर से देखते हुए ऐसा लग रहा था कि मानो उस बिस्तर में कोई सोया हो।
पुलिस वाले इस बिस्तर के पास गए और उन्होंने जैसे ही चादर वहाँ से उठाई, उन्हें देवजानी का कंकाल दिखा। ऐसा लग रहा था कि वह बड़े ही आराम से वहाँ पर सो रही थी।
उसके बिस्तर के पास कुछ खाना भी रखा हुआ था, लेकिन देवजानी उस खाने को खा नहीं सकती थी, क्योंकि छह महीने तक उसकी लाश वहाँ पड़े-पड़े कंकाल बन चुकी थी।
और देवजानी के कंकाल से कुछ दूर ही एक बोरी थी, जिसमें दो और कंकाल थे – और ये कंकाल थे उनके दो लैब्राडोर कुत्तों के। इस घर का हर कोना एक अनकहा रहस्य समेटे हुए था।
पार्थो की ज़ुबानी: बहन की मौत का सच और डे परिवार का अजीब जीवन
आप लोग अभी ये सारी बातें सुनकर जितना ज़्यादा हैरान हो, उससे ज़्यादा हैरान पुलिस थी उस समय पर। और इस केस में जितनी भी चीज़ें मैंने अभी तक कही हैं, वे तुम्हें काफ़ी ज़्यादा नाटकीय लग रही होंगी, लेकिन वे सब सच हैं, डे परिवार के रहस्य की सच्ची परतें।
आखिर ये सब इस डे परिवार के घर में हो क्या रहा था? और पिछले छह महीने से पार्थो डे अपनी बहन के कंकाल के साथ, उसके दो कुत्तों के कंकालों के साथ इस घर में कैसे रह रहा था?
क्या किसी को भी पता नहीं चला था कि देवजानी मर चुकी है? और अरबिंदो डे तो अभी कुछ दिन पहले ही मरे थे, तो क्या उन्हें भी नहीं पता था कि उनकी बेटी मर चुकी है और इसी घर में उसकी लाश पड़ी है?
पुलिस के दिमाग में और उनके पड़ोसियों के दिमाग में भी बहुत सारे सवाल थे, और इन सारे सवालों का जवाब सिर्फ़ एक आदमी के पास था – और वह था खुद पार्थो डे। यही सबसे बड़ा रहस्य था।
पार्थो डे से पुलिस वालों ने बहुत सारे सवाल पूछे। कुछ-कुछ का वह जवाब दे रहा था, कुछ-कुछ का वह जवाब दे ही नहीं रहा था। लेकिन वह बार-बार एक ही बात कह रहा था कि उसने अपनी बहन को नहीं मारा है।
उसके अनुसार, देवजानी ने नवंबर से उपवास करना शुरू कर दिया था क्योंकि अगस्त में उसके दो कुत्ते, उसके जो पालतू जानवर थे, वह मर चुके थे। और ये पालतू जानवर अचानक से मरे थे, तो इसीलिए शायद से देवजानी के दिमाग में यह चीज़ आई होगी कि मैं इनके लिए उपवास रखना शुरू कर देती हूँ।
अपने कुत्तों और माँ के गुज़रने के बाद देवजानी काफ़ी ज़्यादा उदास हो गई थी और आखिरकार, डे परिवार, खासकर देवजानी, बहुत ही ज़्यादा आध्यात्मिक हो गई थी।
देवजानी अलग-अलग धर्मों के गुरुओं का अनुसरण करने लगी थी, उनके प्रवचन और मंत्रोच्चार सुनने लगी थी। उन्हीं में से एक थी ‘जॉयस मेयर’, जिसकी चैटिंग उनके घर के स्पीकरों में हर दिन और हर रात बजती रहती थी।
और यही ‘जॉयस मेयर’ की चैटिंग भी पुलिस वालों ने उस दिन सुनी थी जिस दिन वो लोग पार्थो डे के घर के अंदर घुसे थे। घर में हर जगह आध्यात्मिक किताबें रखी पड़ी थीं, करीब 20,000, जो पार्थो डे के इस बयान का समर्थन करती थीं कि उसकी बहन बहुत ही ज़्यादा आध्यात्मिक बन चुकी थी।
तो अपने कुत्तों के गुज़र जाने के बाद देवजानी ने नवंबर में उपवास करना शुरू किया था, ताकि इस घर को उनकी आत्माओं से शुद्ध किया जा सके। देवजानी को ऐसा लगता था कि इस घर में बहुत सारी तकलीफें होना शुरू हो गई हैं और उपवास ही एक ऐसा तरीका है जिससे यह घर उनका यह घर स्वच्छ होगा।
देवजानी का उपवास इतना ज़्यादा सख्त था कि वह न तो कुछ खाती थी और न ही वह कुछ पीती थी।
कुछ महीनों तक उपवास करने के बाद देवजानी को कुछ नहीं हुआ, लेकिन अचानक से 24 दिसंबर, 2014 को देवजानी गुज़र गई। पार्थो डे ने देवजानी को नहीं मारा, अरबिंदो डे ने देवजानी को नहीं मारा, वह खुद ही गुज़र गई।
अब अगर कोई सामान्य आदमी होता, तो वह अपनी बहन के शव का अंतिम संस्कार कर देता, है ना? या फिर उनके कुत्तों के शवों का अंतिम संस्कार कर देता। लेकिन पार्थो डे अपनी बहन से इतना ज़्यादा जुड़ा हुआ था या फिर वह अपनी बहन से इतना ज़्यादा जुड़ा हुआ महसूस करता था कि वह यह चीज़ नहीं कर पाया।
वह अपनी बहन के शव को जला नहीं पाया, वह अपनी बहन के शव को दफ़ना नहीं पाया। वह अपनी बहन के शव को, उसके कुत्तों के शवों को अपने आप से दूर नहीं कर पाया था।
तो इसीलिए पार्थो डे ने उसकी बहन के शव को उसी के कमरे में रहने दिया। वास्तव में, वह हर दिन अपनी बहन के लिए खाना लेकर जाता था उसके कमरे में, और वह यह मानता था कि उसकी बहन उससे हर रात मिलने आती थी। यह पूरा घटनाक्रम एक मनोवैज्ञानिक रहस्य जैसा था।
पुलिस वालों को ऐसा लगा कि यह आदमी सच नहीं बोल रहा है, इस आदमी ने अपनी बहन को मारा है और यह आदमी बस इस बात को कबूल नहीं कर रहा है। लेकिन जब फोरेंसिक की रिपोर्ट आई और जब डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट आई, तब सच में यह निकला कि देवजानी की मौत हार्ट अटैक की वजह से हुई थी।
पिता का मौन और कागज़ी संवाद का रहस्य
तो अगर अब हम इस बात पर मान भी लें कि देवजानी की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई थी और सच में पार्थो डे निर्दोष था, उसने अपनी बहन को नहीं मारा था, तब भी अरबिंदो डे को कैसे पता नहीं चला कि छह महीने तक उनकी बेटी मर चुकी है और उन्होंने किसी को भी सूचित क्यों नहीं किया? यह एक और गहरा डे परिवार का रहस्य था।
किसी को ना पता चलने की बात में पहला कारण यह हो सकता है कि, जैसा कि आपको याद होगा, ये तीनों ही अपने घर में बंद थे, ये तीनों अपने घर से बाहर नहीं जाते थे। तो पहला कारण यह हो सकता है कि किसी को भी इस बारे में पता क्यों नहीं चला, क्योंकि वे समाज से, सभी से बहुत दूर थे।
पर दूसरा कारण यहाँ पर और भी ज़्यादा दिलचस्प है। पुलिस को जांच की शुरुआत में घर में कई सारे कागज़ के टुकड़े मिले थे। और जब मैं ‘कई सारे’ कहता हूँ, तो मेरा मतलब है बहुत सारे – कुशन कवर में, सोफों में, किताबों के बीच में, दराजों के बीच में, यहाँ तक कि दीवारों की दरारों में भी कई सारे कागजों के टुकड़े थे।
जब पुलिस ने इन कागजों की जांच की, तो उन्हें पता चला कि इन कागजों में पूरी की पूरी बातचीत होती थी जो अरबिंदो डे, देवजानी और पार्थो डे के बीच में चलती रहती थी।
छोटी-छोटी बातें भी इन कागजों की चिट्ठियों में लिखी हुई होती थीं। पुलिस इस नतीजे पर पहुँची कि डे परिवार के ये तीनों सदस्य एक-दूसरे से मौखिक रूप से बात नहीं करते थे, बल्कि कागजों के ज़रिए वो एक-दूसरे से बातें किया करते थे, जो कि बहुत ही अजीब था।
और शायद इसीलिए अरबिंदो डे को यह नहीं पता चला कि देवजानी अब नहीं रही, मार्च और अप्रैल 2015 तक, जब पार्थो डे ने उन्हें खुद यह सारी चीज़ बताई थी। इस डे परिवार के संवाद का तरीका भी एक रहस्य बन गया।
मानसिक स्थिति और कानूनी कार्रवाई
न तो पुलिस को और न ही मीडिया को समझ आ रहा था कि आखिर यह किस तरह का केस है। क्या कोई इंसान एक दूसरे इंसान से इतना ज़्यादा प्यार कर सकता है, या फिर वह एक दूसरे इंसान पर इतना ज़्यादा निर्भर हो सकता है कि उनके मरने के बाद भी वह उनके शव को, उनकी लाश को छोड़े ना?
वह मरने के बाद भी दूसरे इंसान को अपने आप से दूर ना होने दे? और ऊपर से यह बात भी थी कि पार्थो डे के व्यवहार की वजह से भी और उसके बात करने के तरीके की वजह से भी, यह एक तरह से साफ़ था कि वह मानसिक रूप से कुछ परेशानी से गुज़र रहा था। उसे तुरंत कोलकाता के पावलव अस्पताल में भर्ती कर दिया गया।
वहाँ डॉक्टरों ने पार्थो डे की जांच करके तुरंत फैसला दे दिया कि हाँ, पार्थो डे मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं। लेकिन फिर भी यह नहीं कहा जा सकता था कि क्या वह पहले से ही मानसिक रूप से अस्वस्थ थे, या फिर वह अपनी बहन के गुज़र जाने के बाद से ही मानसिक रूप से अस्वस्थ हुए थे, या फिर वह अपनी माँ की मौत के बाद से मानसिक रूप से अस्वस्थ थे। यह भी एक अनसुलझा रहस्य रहा।
भले ही वह मेरे और आप जैसे सामान्य न हों, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता है कि वह एक राक्षस या हत्यारा था। और पुलिस का भी यही मानना था, इसीलिए पार्थो डे पर हत्या के आरोप नहीं लगाए गए थे।
इसके बजाय, पार्थो डे पर दो आरोप लगाए गए, जो कि दोनों जमानती थे: पहला कि उन्होंने लोक सेवकों को अपनी बहन की मौत के बारे में सूचित नहीं किया था, और दूसरा उनकी लापरवाही के लिए, कि एक शव को घर में रखा जिससे संक्रमण और बीमारियाँ फ़ैल सकती थीं।
एक नई शुरुआत की कोशिश और अंतिम त्रासदी
पार्थो डे का इलाज पावलव अस्पताल में हो रहा था और कुछ ही महीनों में उसकी तबीयत भी काफ़ी ज़्यादा बेहतर हो गई थी। उसका वज़न भी बढ़ रहा था, तो इसीलिए उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी।
पार्थो डे फिर वाटगंज की एक इमारत की ग्यारहवीं मंजिल पर रहने लगा था। वैसे तो वह इस मंजिल पर अकेला ही रहता था, लेकिन फिर भी उसकी देखभाल के लिए एक केयरटेकर वहाँ आता-जाता रहता था।
लेकिन इस बार अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद वह पहले की तरह अपने आप को घर में बंद नहीं रखता था। हाँ, उसे लोगों से, पड़ोसियों से बात करने में थोड़ी तकलीफ़ होती थी और वह लोगों से बात करने में थोड़ा हिचकिचाता था, लेकिन वह थोड़ा-थोड़ा घुलने-मिलने की कोशिश कर रहा था।
वह सीख भी रहा था। वास्तव में, उसने स्थानीय क्षेत्रों में काफ़ी सारे कार्यक्रम भी किए थे और वह अपने पड़ोसियों के लिए गाना भी गाता था।
और अब इन सारी चीज़ों से ऐसा लग रहा था कि आखिरकार इतने सालों के बाद पार्थो डे समाज में अपने लिए अपनी जगह बना रहा है। लेकिन शायद यह सब कुछ उसके लिए बहुत ज़्यादा था।
21 फरवरी, 2017 को वाटगंज की ग्यारहवीं मंजिल के एक घर से पुलिस को कॉल आया कि घर के मालिक, पार्थो डे, की जली हुई लाश उन्हें बाथरूम में मिली थी। पार्थो डे इस दुनिया में नहीं रहे थे।
पार्थो डे ने अपनी डायरी में एक वाक्य लिखा था जो शायद वो चाहते थे कि पूरी दुनिया पढ़े – “आई एम नो किलर” (मैं हत्यारा नहीं हूँ)। और सच कहूँ तो, मुझे भी उस पर विश्वास है कि वह वास्तव में कोई हत्यारा नहीं था।
वह कोई ऐसा व्यक्ति था जो किसी ऐसी चीज़ से गुज़र रहा था जिसे संभालना उसके लिए बहुत मुश्किल था। उसका जीवन और मौत डे परिवार के रहस्य की अंतिम, दुखद कड़ी बन गए।
मीडिया, समाज और मानसिक स्वास्थ्य का सवाल: डे परिवार के रहस्य से सबक
जब कोई केस होता है, तो पीड़ितों और आरोपियों के प्रति जनता का नज़रिया बदलने में मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका होती है। लेकिन जिस तरीके से इस केस की रिपोर्टिंग की गई थी, कि कैसे पार्थो डे की व्यक्तिगत और निजी डायरी की एंट्री को सार्वजनिक किया गया था, चीज़ों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया था, उसने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि पार्थो डे कोई सामान्य इंसान नहीं है।
अनावश्यक हंगामे ने हम सभी को प्रभावित करना शुरू कर दिया था जो पूरी कहानी के इर्द-गिर्द बनाया जा रहा था। इसमें से कुछ भी सच नहीं था। मीडिया जो रिपोर्ट कर रहा था, उसका आधा से ज़्यादा हिस्सा बिल्कुल झूठ था।
हम एक समाज के रूप में यह स्वीकार करने में विफल रहे कि मानसिक बीमारी कुछ ऐसी है जिसका इलाज किया जा सकता है। उसे एक राक्षस के रूप में चित्रित किया गया था। उसे ऐसे व्यक्ति के रूप में भी चित्रित किया गया था जो झाड़-फूंक करता है और काला जादू करता है।
लेकिन समाज यह समझने में विफल रहा कि पार्थो डे का पालन-पोषण कैसे हुआ था, और कैसे उन परिस्थितियों की वजह से शायद उसका सोचने का तरीका बाकी लोगों से अलग था। हाँ, उसने जो किया वह गलत था, न केवल उसके लिए, उसकी सेहत के लिए, बल्कि उसके पड़ोसियों की सेहत के लिए भी।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक बुरा इंसान था या वह एक हत्यारा था।
डे परिवार अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उनका जो वह घर था, वह अब ‘हाउस ऑफ हॉरर्स’ के नाम से जाना जाता है। उसके सामने बहुत सारे लोग जाकर तस्वीरें भी खिंचवाते हैं। लेकिन उस ‘हॉरर हाउस’ के पीछे का डे परिवार का रहस्य और कहानी वास्तव में जानने में बहुत दुखद है। यह रहस्य आज भी कई सवाल छोड़ जाता है।