एक कमरा, तेज़ आवाज़ में चलता टीवी… और ज़मीन पर खून से लथपथ पड़ा था 8 साल का श्रेयांशु

8 साल के श्रेयांशु की हत्या का चौंकाने वाला सच

कोलकाता से करीब 17 किलोमीटर दूर, हुगली जिले के कोननगर में कुछ ऐसा हुआ, जिसने हर किसी को हिला कर रख दिया।

8 साल का मासूम श्रेयांशु अपने घर में था। तभी उसकी कज़िन बहन उसके कमरे में गईलेकिन जो उसने वहां देखा, वो किसी डरावने सपने से कम नहीं था।

कमरे की ज़मीन पर हर तरफ खून फैला था। श्रेयांशु का शरीर खून से लथपथ पड़ा था। उसके हाथ की नसें कटी हुई थीं, सिर बुरी तरह से कुचला हुआ था और पूरे शरीर पर चोट के निशान थे। कमरे में एक किचन नाइफ भी पड़ी थीऔर टीवी तेज़ आवाज़ में चल रहा था, जैसे कोई चाहता हो कि बाहर वालों को कुछ सुनाई दे।

उसकी बहन डर के मारे कांपने लगी। एक पल को किसी को समझ ही नहीं आया कि इतना छोटा बच्चासिर्फ 8 साल काआखिर किसी की इतनी नफरत का शिकार कैसे बन गया?

जब पुलिस मौके पर पहुंची, तो उन्होंने भी शव की हालत देखकर सिर पकड़ लिया। ऐसा लग रहा था कि कातिल ने सिर्फ उसे मारने का नहीं, बल्कि पूरी तरह से खत्म कर देने का इरादा किया था। कोई रहम नहीं, कोई दया नहीं।

श्रेयांशु की डेड बॉडी को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया। घर में मातम का माहौल था, मांबाप का रोरोकर बुरा हाल हो चुका था।

पुलिस ने तुरंत जांच शुरू कीकॉल रिकॉर्ड्स, आसपास के सीसीटीवी फुटेज, हर चीज़ खंगाली जा रही थी। और फिर, एक ऐसा सुराग हाथ लगाजिसने पुलिस को चौंका दिया।

आखिर कौन कर सकता है इतना बेरहमी से एक बच्चे का कत्ल? और क्यों?

श्रेयांशु के पिता, पंकज शर्मा, कोलकाता की एक प्राइवेट कंपनी में दिनरात मेहनत करते थे, और उसकी मां, शांता शर्मा, एक रेस्टोरेंट में काम कर परिवार का सहारा बनी हुई थीं। दस साल की शादी के बाद उनकी दुनिया बस एक ही चीज़ के इर्दगिर्द घूमती थीउनका नन्हा बेटा, आठ साल का श्रेयांशु। पढ़ाई में होशियार, खेलों में चंचल, और सबका प्यारावो एक ऐसा बच्चा था जो अपने घर की रौशनी था। लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि उसी घर में उसकी रौशनी इतनी बेरहमी से बुझा दी जाएगी। जो घर उसकी हंसी से गूंजता था, वहीं अब सिर्फ़ सन्नाटा और मातम बचा है। एक मासूम की मौत नहीं, एक पूरे परिवार का उजड़ जाना था ये।

जांच की पहली परत: जब घर ही सबसे बड़ा सुराग बना

जैसे ही पुलिस ने जांच शुरू की, सबसे पहले घर का कोनाकोना खंगाला गया। लेकिन वहां कुछ ऐसा मिला जिसने उन्हें चौंका दियाकहीं भी जबरन घुसने के निशान नहीं थे। खिड़कियां और दरवाजे अपनी जगह बंद थे, और घर का हर कीमती सामान सुरक्षित रखा था। यानि चोरी या डकैती की आशंका पूरी तरह से खारिज हो गई।

घर में एक पालतू कुत्ता भी था, जो किसी भी अजनबी को देखते ही भौंक उठता था। लेकिन पड़ोसियों से पूछताछ में चौंकाने वाली बात सामने आईघटना वाले दिन, मंगलवार को दोपहर दो से चार बजे के बीच, किसी ने भी कुत्ते को भौंकते नहीं सुना। और उस मोहल्ले की खासियत यह थी कि घर इतने पासपास थे कि अगर कुत्ता भौंकता भी, तो किसी किसी को जरूर सुनाई देता।

कोई जबरन घुसपैठ, कोई लूट, और ही कुत्ते की कोई प्रतिक्रियाये तीनों संकेत साफ़ बता रहे थे कि हत्यारा कोई बाहर का नहीं, बल्कि घर का ही हिस्सा है।

पुलिस ने फिर आसपास के लोगों, मातापिता, रिश्तेदारों और दोस्तों के नंबर इकट्ठा कर कॉल रिकॉर्ड खंगालना शुरू किया, लेकिन वहां से भी कोई ठोस सुराग नहीं मिला। अब उम्मीद की एकमात्र किरण थीमोहल्ले में लगे CCTV कैमरे। पुलिस ने फौरन फुटेज खंगालना शुरू कर दिया, इस कोशिश में कि दोपहर दो से चार के बीच कौन उस गली से गुज़रा।

पहला सुराग: जब मास्क के पीछे छिपा एक जानापहचाना चेहरा

CCTV फुटेज खंगालते वक्त पुलिस की नज़र एक महिला पर पड़ी, जो दोपहर दो से चार बजे के बीच उस गली में आतीजाती दिख रही थी। उसके चेहरे पर मास्क था, लेकिन उसकी चाल और बॉडी लैंग्वेज में कुछ ऐसा था जिसने पुलिस को सोचने पर मजबूर कर दिया। शक गहराया तो पुलिस ने वह फुटेज श्रेयांशु के मातापिता को दिखाया।

श्रेयांशु की मां शांता ने तो पहचानने से साफ इनकार कर दिया, लेकिन पिता पंकज शर्मा जैसे ही स्क्रीन पर चेहरा देखेसन्न रह गए। उन्होंने तुरंत पहचान लियायह और कोई नहीं, बल्कि शांता की बेहद करीबी दोस्त इशरत परवीन थी। वही इशरत, जो अक्सर उनके घर आयाजाया करती थी और जिसे श्रेयांशु प्यार सेमौसीबुलाता था।

इस बिंदु पर पुलिस के शक की दिशा बदल गई। क्या पंकज और इशरत के बीच कुछ चल रहा था? क्या ये कोई पर्सनल रंजिश थी? सवाल कई थे, इसलिए पुलिस ने सबसे पहले पंकज की कॉल डिटेल्स निकलवाईं। लेकिन सारी कॉल हिस्ट्री खंगालने के बाद भी ऐसा कुछ नहीं मिला जो उनके बीच किसी अफेयर की पुष्टि करता।

अब शक की सुई किसी और ओर मुड़ रही थी

सच का खुलासा: जब रिश्ते ने किया क़त्ल से कनेक्शन

जब इशरत पर शक गहराने लगा, तो पुलिस ने उसकी कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) निकलवाईंऔर यहीं से कहानी ने एक चौंकाने वाला मोड़ ले लिया।

मर्डर वाले दिन, इशरत का फोन दोपहर एक बजे से लेकर रात आठ बजे तकपूरे सात घंटे तक बंद था। पुलिस को यह संयोग नहीं, बल्कि सोचीसमझी योजना जैसी लगी। लेकिन इससे भी चौंकाने वाली बात तब सामने आई जब पुलिस ने देखा कि इशरत हर दिन एक खास नंबर पर देर रात तककभीकभी दोदो बजे तकघंटों बात करती थी।

जब उस नंबर की जांच की गई, तो पुलिस के होश उड़ गए।

वो नंबर किसी और का नहीं, बल्कि श्रेयांशु की मांशांता शर्माका था।

इसके बाद जब पुलिस ने दोनों के व्हाट्सएप चैट्स रिट्रीव किए, तो सबकुछ साफ़ हो गया। मेसेजेस किसी आम दोस्ती जैसे नहीं थेबल्कि उन चैट्स में ऐसी बातें और तस्वीरें थीं, जो किसी इमोशनल या फिजिकल रिलेशनशिप की ओर इशारा कर रही थीं। बिल्कुल किसी गर्लफ्रेंडबॉयफ्रेंड की तरह।

अब पुलिस के सामने एक चौंकाने वाला सच थाश्रेयांशु की मां शांता का अपनीदोस्तइशरत के साथ अफेयर था।

यही कनेक्शन उस मासूम के खून से सने सच तक ले जाने वाला था

परतें खुलती गईं: जबदोस्तीके पीछे छुपा था रिश्ता

जैसेजैसे पुलिस आगे बढ़ी, उन्होंने मोहल्ले के लोगों और पड़ोसियों से पूछताछ शुरू की। लेकिन हैरानी की बात ये थी कि किसी को भी शांता और इशरत के रिश्ते की सच्चाई का अंदाज़ा तक नहीं था

हर किसी को लगता था कि ये दोनों बस बचपन की बहुत अच्छी दोस्त हैं।
इशरत अक्सर शांता के घर आतीजाती थी, और शांता भी उसके घर जाया करती थी।
इतना ही नहींश्रेयांशु भी इशरत कोमौसीकहकर बुलाता था

सबकुछ एक साधारण रिश्ते की तरह दिखाई देता थालेकिन जब पुलिस ने पंकज शर्माश्रेयांशु के पितासे सीधा सवाल किया, तो उन्होंने वो सच बताया जिसने पुलिस को भी चौंका दिया।

पंकज ने स्वीकार किया कि उसे इन दोनों के रिश्ते के बारे में पहले से ही पता था।

लेकिन एक पिता, एक पति और एक समाज के हिस्से के तौर पर, अपने बेटे की परवरिश और बदनामी के डर से वह चुप रहा।

अब तक जो सिर्फ शक था, वो अब पूरी तरह यकीन में बदल रहा था।

साजिश की सुई: जब मां ही बनी अपने बेटे की कातिल

इतने सारे सुराग मिलने के बावजूद एक सवाल अब भी पुलिस को परेशान कर रहा थाइन सबका कनेक्शन श्रेयांशु के मर्डर से क्या है?

एक तरफ इशरत का फोन मर्डर के दिन दोपहर एक बजे से रात आठ बजे तक स्विच ऑफ था
दूसरी तरफ, वो उसी समय मोहल्ले में उस गली के पास CCTV फुटेज में दिखाई दी थी, जहां श्रेयांशु का घर था।

ये दोनों बातें अब इत्तेफ़ाक़ नहीं लग रही थीं।

पुलिस ने देर किए बिना शांता और इशरतदोनों को हिरासत में ले लिया।

इंटरोगेशन शुरू हुआ

और फिर कुछ ही घंटों में शांता टूट गई

उसने जो कबूल किया, उसे सुनकर पुलिस के होश उड़ गए

मैंने ही अपने बेटे को मारा हैऔर इसमें इशरत ने मेरा साथ दिया।

एक माँजिसने अपने बेटे को नौ महीने कोख में रखा, उसे पाला, पढ़ाया, वही उसकी कातिल निकली।

अब सवाल सिर्फ ये नहीं था कि उसने ऐसा किया
बल्कि असली सवाल ये थाएक माँ कैसे ऐसा कर सकती है?

एक बच्चे की आंखों ने देखी मां की सच्चाई, और फिर छीन ली गई उसकी मासूम सी ज़िंदगी

स्कूल से घर लौटते वक़्त आठ साल का मासूम श्रेयांशु उस मंज़र का गवाह बन गया, जिसे कोई भी बच्चा कभी देखे। उसने अपनी मां शांता को उसकी करीबी दोस्त इशरत परवीन के साथ एक बेहद आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया। वो दोनों इतनी गहराई से उस पल में डूबी थीं कि ना दरवाज़ा बंद करना याद रहा, ना ही यह ध्यान रहा कि श्रेयांशु का स्कूल से लौटने का समय हो गया है।

एक आठ साल के बच्चे के लिए वो पल समझ से परे था। वह घबरा गया, डर गया और अंदर ही अंदर टूटने लगा। उसने महसूस किया कि जो हो रहा है, वो ग़लत है। मगर किससे कहे? क्या कहे? उसकी आंखों के सामने मां का वो रूप था, जिसे वो शायद कभी भूल नहीं पाता।

इसी कश्मकश और ग़ुस्से ने उसे मां से उलझने पर मजबूर कर दिया। वह मां से झगड़ने लगा, सवाल करने लगा, और यही चीज़ शांता को खटकने लगी। शांता को डर था कि कहीं उसका बेटा किसी को ये बात बता दे, वरना उसकीइज़्ज़तऔर रिश्ता दोनों मिट्टी में मिल जाएंगे। और इस डर ने उसे उस हद तक पहुँचा दिया, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।

फिर जो हुआ, वो इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला था।

शांता ने अपने ही बेटे का सिर दीवार पर पटका, फिर टेबल से मारा, और फिर एक भारी मूर्ति से उसकी खोपड़ी पर वार किया। लेकिन उसका गुस्सा यहीं नहीं थमा। वो किचन गई, चाकू निकाला और बेटे की कलाई की नसें काट दीं। और तब तक पास बैठी रही, जब तक उसकी सांसे पूरी तरह थम नहीं गईं।

मां के हाथों मारे गए इस मासूम की कहानी एक CCTV कैमरे में तब ही कैद हो सकी क्योंकि इशरत जिस रास्ते से बाहर गई, वहां कैमरा लगा था। जबकि शांता दूसरी दिशा से निकली, जहां कोई कैमरा नहीं थावरना शायद उसकी क्रूरता भी उसी वक्त सबके सामने जाती।

माँ, जिसे दुनिया अपनी ममता और निस्वार्थ प्रेम का सबसे बड़ा उदाहरण मानती है, वही माँ जब अपने ही आठ साल के मासूम बच्चे को इस तरह से मार देती है, तो यह सवाल खड़ा होता है कि क्या रिश्तों का वास्तविक अर्थ सिर्फ़ स्वार्थ, डर और घृणा में बदल सकता है? शांता ने जिस बेहरमी से अपने बेटे श्रेयांशु को मौत के घाट उतार दिया, वो रिश्तों की उस पवित्रता को चूरचूर करने जैसा था, जिसे हम हमेशा केवल अपने बच्चों, बल्कि हर इंसान के भीतर देखते हैं। क्या कोई रिश्ता, इतना गहरा हो सकता है कि एक माँ अपने ही बच्चे को भूलकर उसकी जान ले ले?

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